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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


वे ध्यान के नभ से उतरे। देखा जानथिप्पी उनके पैरों के पास जमीन पर बैठी उनकी ओर देख रही है कि कब वे जमीन पर लौटें। बच्चा इधर-उधर घूमकर अपना मन बहला रहा था। पत्नी ने बहुत शांति से बातें की और वह रात वहीं व्यतीत की। सुकरात ने कठोर हृदय से बताया कि उनकी मृत्यु अभी उनसे एक महीने की दूरी पर है। इस बीच पत्नी चाहे तो सिर्फ एक बार और मिल सकती है।

सुबह जानथिप्पी बच्चे को लेकर घर लौट गई।

लगभग पूरे महीने जेल में सुकरात के पास मित्रों और शिष्यों का आना जाना बना रहा। उन्हें आसन्न मृत्यु के प्रति इतना निद्र्वद्व देखकर लोगों को आश्चर्य होता। महीने के अंतिम दिन सुकरात का मित्र क्रीटो आया और सुकरात से कहा आज की रात जेल में उनकी अंतिम रात है। उसने सुकरात के पलायन करने और यूनान के अन्य नगर में रहने का पूरा प्रबंध कर दिया है। वे क्रीटो की भावना का सम्मान करते हैं पर जेल से भागने के लिए सख्ती से मना कर देते हैं। कहते हैं कि उन्होंने सदा विवेक की आवाज सुनी है, उसी का आदेश मानता रहा हूं। अब दुर्भाग्य आ पड़ने पर उसका त्याग नहीं कर सकता। मृत्यु दंड सही हो या गलत मैं एथेंस का कानून नहीं भंग कर सकता। मृत्यु तो अंततः एक-न-एक दिन पकड़ेगी ही, उससे भागकर कहां जा सकता हूं।

एक माह का समय ऐसे उड़ गया जैसे पक्षियों का झुंड उड़ जाता है। सुकरात के विषपान वाले दिन फीडो और उसके साथी अपोलोडोरस, क्रीटो, क्रीटोवूलस तथा एथेंस के बाहर से आए थीबिस और मेगारा प्रातः ही जेल पहुंच गए। प्लेटो बीमारी के कारण नहीं आया। कदाचित उसमें अपने गुरु को मृत्यु के मुख में जाते हुए देखने का साहस नहीं था। क्रिटियस, एल्सिवियाडिस, ज़ेनोफोन आदि भी साहस नहीं संजो पाए अतः एथेंस के बाहर चले गए। जानथिप्पी बैठी रो रही थी। द्रवित सुकरात ने समझा-बुझाकर उसे तथा तीनों बच्चों को घर भिजवा दिया।

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