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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


यह आख्यान महाभारत में वर्णित उस मिथक की याद दिलाता है जिसमें बताया गया है कि एकचक्रा नगरी की सीमा पर एक गुफा में नरभक्षी राक्षस बकासुर रहता था। उसकी भूख शांत करने के लिए नगरी से प्रतिदिन एक व्यक्ति को भेजा जाता था। उन दिनों पांचों पांडव माता सहित उसी नगरी में रुके हुए थे। एक दिन भीम को जब स्थिति का ज्ञान हुआ तो भोजन के रूप में स्वयं जाकर उन्होंने बकासुर का वध कर दिया।

अस्तगत सूर्य की शिथिल किरणें पृथ्वी के आलिंगन से मुक्त होकर दूसरे दिन पुनः आने का वादा कर रही थीं। पक्षी चुपचाप अपने घोसलों को लौट रहे थे। सुकरात का घोंसला सदा के लिए छूट चुका था, पर उसमें बसेरा करने वाले लोग...।

उसी समय द्वार से आती कोमल आहटें सुनाई दीं। सिर उठाकर देखा तो पाया उनकी पत्नी जानथिप्पी उनके सबसे छोटे बेटे की अंगुली थामें उन्हीं की दिशा में आ रही है।

क्षण भर में वैवाहिक जीवन का समूचा परिदृश्य उनके मानस में कौंध गया। मां सतत आग्रह करती रहीं कि बेटा विवाह कर ले पर सुकरात यही कहकर टाल देते कि उनके जैसा फक्कड़ किसी की जिंदगी क्यों बरबाद करे ! मां चली गईं। कुछ समय बाद उनके शुभचिंतक विवाह का एक प्रस्ताव लेकर आए। लड़की उम्र में सुकरात से काफी कम थी, सुंदर थी पर थोड़ी गरम मिजाज थी। सुकरात ने यह सोचकर ‘हां’ कर दी कि कर्कशा स्त्री से सहिष्णुता का पाठ सीखेंगे। जानथिप्पी ने पति के फक्कड़पने की बात सुनी थी पर उनकी दार्शनिकता से प्रभावित थी। शादी होने के बाद जानथिप्पी ने उस अर्थहीन घर को संभाल लिया जिसे अभी तक उसकी सास संभाले थी। उसने सुकरात को तीन पुत्र दिए- लिम्प्रोक्लीज, सोफ्रोनिस्कोस (दादा के नाम पर) और नैनेक्जेनस। सुकरात जानते थे कि जानथिप्पी थोड़ी गर्म मिज़ाज जरूर थी पर उनका ध्यान खूब रखती थी। घर के प्रति उनकी उपेक्षा से वह चिड़चिड़ी जरूर हो गई थी पर उनसे प्यार भी करती थी। ज़नोफोन ने उसकी ‘गर्म मिज़ाजी’ को प्रचारित कर रखा था।

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