जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
जब मिला मनवांछित अवसर
16 वर्ष की आयु होने पर सिकंदर की शिक्षा समाप्त हो गई। अरस्तू अपने गृह-नगर स्टैगिरा लौट गया जिसका पुनर्निर्माण हो चुका था।
फिलिप ने वाइजेन्टाइन के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। सिकंदर को राज्य का प्रति-शासक और उत्तराधिकारी बना कर, कुछ सेना मकदूनिया में छोड़ कर, वह चला गया। फिलिप की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर थेरस प्रदेश ने मकदूनिया के प्रति विद्रोह कर दिया। सिकंदर को मनःवांछित अवसर पहली बार मिला था। उसने त्वरित कार्रवाई करते हुए धावा बोल दिया और शत्रु को उसके घर से बेदखल कर दिया। थेरस को यूनान का उपनिवेश बना दिया। वहां उसने अलेक्जेंड्रोपोलिस (सिकंदर-नगर) नामक नगर की स्थापना की।
युद्ध से लौटने पर फिलिप ने सिकंदर की सराहना करते हुए कहा, ‘‘शाबास, बेटे! मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तुमने कच्ची उम्र में ही यह कारनामा कैसे कर डाला।’’
सिकंदर ने विनम्रता से कहा, ‘‘जो प्रयत्न करते हैं उनके लिए भला क्या असंभव है।’’
फिलिप ने कहा, ‘‘सूचना मिली है कि थे्रस का विद्रोह पूरी तरह दबा नहीं है। अब वे नगर की दक्षिण दिशा में सक्रिय हो उठे हैं। तुम सेना लेकर जाओ और उसे समूल नष्ट कर दो। पेरीन्थस नगर ने फिर सिर उठाया है। वहां मैं जाऊंगा। तुम मुझे पेरीन्थस नगर में ही मिलना।’’
सिकंदर ने कहा, ‘‘आपका बैरी ज्यादा बलवान है अतः आप अधिक सेना लेकर जाएं। मुझे ज्यादा सेना की जरूरत नहीं है क्योंकि थेरस एक बार मुझसे पराजित हो चुका है।’’
दोनों अपने-अपने लक्ष्य की ओर चल पड़े।
सिकंदर ने थेरस के विद्रोह को जड़ से उखाड़ फेंका। वहां से वह पेरीन्थस पहुंचा, जहां भयंकर युद्ध चल रहा था। इसी दौरान फिलिप फंस गया। सिकंदर ने अति कुशलता से पिता की जान बताई। दोनों ने मिलकर युद्ध जीत लिया।
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