जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
मिस्र में देवता-पुत्र
ईसा पूर्व 332 में सिकंदर मिस्र पहुंचा। वहां उसका एक मुक्तिदाता के रूप में स्वागत किया गया। मिस्री जन गत 200 वर्षों से परसिया की गुलामी झेल रहे थे।
सिकंदर ने जाते ही ऐलान कर दिया, ‘‘न तो मुझे पिरामिडों से कुछ लेना-देना है और न ही फराहो की समाधियों के भीतर ताक-झांक करने की इच्छा है।’’
मिस्री जनता इससे बेहद खुश हो गई क्योंकि पारसीक लगातार समाधियों को अपवित्र करते रहे थे।
सिकंदर रहस्यात्मक प्रवृत्तियों का व्यक्ति था। वह मिस्र के दक्षिण-पश्चिम में स्थित लीबिया के मरुस्थल में सिबाह स्थित एमन के मंदिर में गया और मंदिर के आंतरिक कक्ष में अकेले पुजारी के साथ भीतर पहुंचा। वहां क्या हुआ किसी को ज्ञात नहीं हुआ किंतु इतना स्पष्ट है कि उसे यह अनुभव हुआ कि परमात्मा के साथ उसका कोई विशेष संबंध है और संसार भर में एकता स्थापित करना उसका ईश्वर-प्रदत्त कर्तव्य है। पुजारी ने बताया कि मंदिर की देववाणी द्वारा उसे देवता का पुत्र कहा गया है। इतना सुनते ही जनता ने उसे ‘ब्राह्मंड का नया स्वामी’ घोषित कर दिया। देवत्व धारण करने के लिए वह स्वयं को जीअस-एमन का सच्चा पुत्र कहने लगा। बाद में जारी सिक्कों में सिकंदर को देवता के रूप में मेष के सींग पकडे दिखाया गया है। ध्यान देने योग्य है कि मिस्री जनता ने सिकंदर को देवता नहीं माना क्योंकि ईसा पूर्व 13 सौ के बाद मिस्रियों का यह विश्वास भंग हो गया था कि फराहो देवता होता है।
मिस्र में सिकंदर ने सिकंदरिया नगर की तथा तीरोस के उत्तर में इसस के निकट अलेक्ज़ाद्रेता बंदरगाह की स्थापना की। ये दोनों नगर आज भी फल-फूल रहे हैं। अपने समय में सिकंदरिया नगर टालमी राजवंश की सम्पन्न राजधानी थी।
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