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इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...

वाणिज्यिक क्रिया कलाप

देश में आने वाली सारी विदेशी वस्तुओं पर दो स्थानों पर चुंगी लगती थी। यदि आयात बंगाल की तरफ से होता था तो सीकरी गली नामक स्थान पर उस पर चुंगी लगती थी और उत्तर पश्चिम में खुरासान के मार्ग से आयात होने पर सीमांत चैकियों पर उनसे एक बार कर लिया जाता था। दूसरी बार इन वस्तुओं पर विक्रय के स्थान पर कर लिया जाता था। अन्य किसी स्थान पर व्यापारियों से कर लेने का अधिकार किसी कर्मचारी को न था। इन उपायों से वाणिज्यिक क्रियाकलापों को बहुत प्रोत्साहन मिला। यात्राकालीन सुविधा व्यवस्था ने व्यापारियों और सौदागरों को बहुत लाभान्वित किया।

शेरशाह ने सिक्कों की ढलाई में भी बहुत सुधार किए। उसके दो प्रकार के सिक्के मुख्य थे। चांदी का रुपया 178 ग्रेन और तांबे का रुपया (दाम) 380 ग्रेन का था। टकसालों की संख्या बढ़कर 23 कर दी गई। उनमें से कुछ टकसालें आगरा, ग्वालियर, उज्जैन, लखनऊ, शेरगढ़ (सासाराम), आबू, बक्कर (सिंध) में थीं। इन टकसारों के नाम से पता चलता है कि उसके साम्राज्य का विस्तार कहां तक था। ‘रुपया’ नाम का सिक्का सबसे पहले शेरशाह ने चलाया। उसके सिक्कों पर फारसी और देवनागरी में उसका नाम खुदा रहता था। उसके कई सिक्के ‘ऊं’ और ‘स्वास्तिक’ चिह्न वाले पाए गए हैं।

मानक बांटों (तौल) का प्रचलन हुआ, वस्तुओं के मूल्य निर्धारित हुए और उनकी गुणवत्ता पर जोर दिया गया।

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