लोगों की राय

इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

Like this Hindi book 0

अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


इन सरायों (विश्रामालयों) के आसपास गांव बसे होते। यदि नहीं होते तो बसा दिए जाते। कई गांवों का राजस्व सम्मिलित कर सरायों के रख-रखाव पर व्यय होता था। शेरशाह ने 1700 सरायों का निर्माण या जीर्णोंद्धार करवाया था।

ये सरायें डाक-चौकियों का काम भी देती थीं। यहां सदैव डाक ले जाने वाले हरकारे तैयार रहते। दो घोड़ों की भी व्यवस्था रहती। समीप के स्थानों पर डाक पैदल हरकारों द्वारा भेजी जाती। दूरस्थ स्थानों की डाक घुडसवार हरकारे ले जाते थे।

शेरशाह ने दिल्ली की पुरानी राजधानी को, जो यमुना नदी से बहुत दूर थी, नष्ट करवा दिया और उसके स्थान पर यमुना तट पर नई राजधानी का निर्माण कराया। उसने इसमें दो ऊंचे और सुदृढ़ दुर्ग बनवाए। एक में दिल्ली के शासक का कार्यालय बनाया गया और दूसरे में सैनिक रखे गए। उसने इसके चारो ओर एक प्राचीर बनवाई और छोटे दुर्ग में एक ऐसी सुंदर मस्जिद बनवाई जो नक्कासी और खूबसूरती के लिए आज भी जानी जाती है। दुर्ग का निर्माण अभी हो ही रहा था कि शेरशाह की अचानक मृत्यु हो गई। दुर्ग की महत्ता के विषय में शेरशाह ने एक बार स्वयं कहा था, ‘‘यदि मैं जीवित रहा तो प्रत्येक सरकार (प्रदेश) में उचित स्थान पर एक ऐसा दुर्ग बनवाऊंगा जहां उपद्रवियों के अत्याचारों से आम जनता को आसानी से सुरक्षित रखा जा सके। मैं समस्त कच्ची सरायों को गिरवाकर उनके स्थान पर ईंटों की सराय बनवाऊंगा। ऐसी सराएं न केवल यात्रियों के लिए सुखकर होगी वरन् उनके माल-असबाव की चोर-डाकुओं से सुरक्षा रहेगी।’’

शेरशाह ने कन्नौज के पुराने नगर और राजधानी को भी उजड़वा दिया और वहां एक पक्की ईंटों का दुर्ग बनवाया। जिस स्थान पर उसने हुमाऊं को 1540 में शिकस्त दी थी वहां शेरपुर नामक नगर बसाया।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book