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इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


शेरशाह स्वयं एक ऊंचे स्थान पर खड़े होकर देखता कि कोई सैनिक जान-बूझकर फसल को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा है। तारीखें दाऊदी में जिक्र है कि मालवा से प्रस्थान करते वक्त शेरशाह ने एक ऊंट सवार को खेत से हरे मटर तोड़ते देख लिया। उसे दंड यह दिया गया कि पहले उसकी नाक में एक छिद्र किया गया फिर उसके पैर बांधकर उसे उल्टा लटका दिया गया। जब तक सेना चलती रही वह इसी दशा में घिसटता रहा। उसके बाद किसी सैनिक ने कभी फसल को छुआ तक नहीं।

जब वह शत्रु के क्षेत्रों को जीत लेता तब उसके सैनिक न तो वहां के कृषकों को लूटते और न ही उन्हें दास बना सकते थे। शत्रु देश के निवासी भी शेरशाह की दानशीलता, न्यायप्रियता और उदारता से इतने प्रभावित थे कि वे समय-समय पर उसकी सेना को रसद पहुंचाते थे।

शेरशाह ने राजस्व प्रशासन की प्राचीनकाल से, ‘जब हिंदुत्व की पवित्र विधि निर्मित हुई थी’, चली आ रही व्यवस्था को कभी समाप्त नहीं किया। शेरशाह ने दो व्यवस्थाएं- मापन और बंटाई- जारी रखीं। मापन की व्यवस्था में सारी कृषि भूमि की क्षेत्रमिति करवा के उसके आधार पर भू-राजस्व निर्धारित किया जाता था। दूसरी व्यवस्था बंटाई (हिस्सेदारी) की थी जिसमें उपज का निर्धारित भाग राजा को देना होता था। जिस स्थान पर जैसी व्यवस्था चली आ रही थी उसे जारी रखा गया। जैसे मालवा, राजपूताना, पश्चिमी पंजाब में बंटाई-व्यवस्था पूर्ववत चलती रही। हां, शेरशाह ने क्रिया-विधि को व्यवस्थित अवश्य कर दिया। उसने जमीनों के नक्शे बनवाए, मिल्कियत का वर्गीकरण कराया। कृषि भूमि और परती (कृषि अयोग्य) भूमि के मापन का कार्य उसने अहमद खान को सौंपा जिसने ब्राह्मणों की मदद से यह काम पूरा किया। इस सर्वेक्षण के आधार पर एक रजिस्टर (खसरा-खतौनी) तैयार किया गया जिसमें मालिक के अधिकार और सारी खेतिहर जमीनों के माप और उसकी किस्में दर्ज की गईं। मापन के कार्य के लिए 32 अंक वाला शिकदारी गज और सन की डंडी काम में लाए गए। सन की डंडी के स्थान पर अकबर ने बांस के टुकड़ों का प्रयोग करवाया जो लोहे के छल्ले से जुड़े रहते थे। अकबरी (इलाही) गज 41 इंच का रखा गया था। शेरशाह ने भूमि को बीघों में विभक्त किया।

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