जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
दीर्घकाल तक प्लेटो के ‘अलिखित विचारों’ पर विवाद रहा। प्लेटो पर लिखी गई कई पुस्तकों ने इसके महत्व को न्यून कर दिया। परंतु इन विचारों का प्रथम महत्वूपर्ण साक्षी अरस्तू था। वह लिखता है, ‘‘वास्तव में यह सत्य है कि सहभागियों का जो विवरण प्लेटो तिमैओस में देता है वह उससे भिन्न है जो वह मौखिक अध्यापन में कहता है।’’ अलिखित विचारों में प्लेटो के आधिभौतिकी से संबंधित अति महत्वपूर्ण विचार हैं जो उसने, कहते हैं, अति विश्वसनीय साथियों के समक्ष व्यक्त किए और जिन्हें सार्वजनिक नहीं होने दिया गया। उसके ‘अलिखित विचारों’ पर 19वीं शताब्दी से पहले कोई प्रश्न नहीं उठाया गया था।
विचारों को सार्वजनिक न करने का कारण अंशतः फैदो में दिया गया है जिसमें प्लेटो ज्ञान को लिखित रूप से संप्रेषित करने को त्रुटिपूर्ण मानता है। इसके स्थान पर वह मौखिक शब्दों को वरीयता देता है। वह कहता है, ‘‘जिसको सत्य, शिव और सुंदर का ज्ञान है वह गंभीरतापूर्वक कलम के माध्यम से बीज रूपी शब्दों को स्याही से नहीं लिखेगा क्योंकि लिखित शब्द विवादों से अपना बचाव नहीं कर सकते और न ही उसके माध्यम से सत्य को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है।’’ प्लेटो के इसी तर्क की सातवें पत्र में पुनरावृत्ति हुई है जिसमें कहा गया है, ‘‘प्रत्येक गंभीर व्यक्ति वास्तविक रूप से गंभीर विषयों से व्यवहार करते समय लिखने से दूर रहेगा।’’ इसी पत्र में वह आगे कहता है, ‘‘उन सभी लेखकों के लिए, जो मेरे उन विचारों के जानकार हैं जिनका मैं अध्ययन करता हूं, विश्वास से कह सकता हूं, उनका लिखित प्रबंध न तो था न कभी होगा।’’ ऐसी गोपनीयता इसलिए आवश्यक थी ताकि ‘‘उन्हें अनपेक्षित रूप से बुरा व्यवहार न मिले।’’
कहा जाता है कि ‘सत्’ पर भाषण देते हुए प्लेटो ने जनता के समक्ष इस ज्ञान का खुलासा कर दिया जिसमें ‘सत्’ की व्याख्या करते हुए उसे मूल तत्वशास्त्रीय सिद्धांत माना गया। बिना साक्षियों के इस भाषण के बारे में बताया कि उनमें से एक अरिस्टोजे़नोस भी था। उसने इस घटना का वर्णन इन शब्दों में किया-‘‘प्रत्येक व्यक्ति उन चीज़ों के बारे में जानने आया जो सामान्यतः लोगों के लिए हितकर मानी जाती है जैसे धन, अच्छा स्वास्थ्य, शारीरिक शक्ति और प्रसन्नता। लेकिन जब संख्याओं, ज्यामिति, नक्षत्र शास्त्र सहित गणतीय प्रस्तुतीकरण होने लगा और अंत में ‘सत्’ पर बात होने लगी तो श्रोताओं को यह बहुत अप्रत्याशित और अजीब लगा। अतः कुछ लोगों ने इसे महत्व नहीं दिया और कुछ ने इसे नकार दिया।
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