जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
लेखन पर बाह्य प्रभाव
यूरोप की दार्शनिक परंपरा का लक्षण वर्णन करने का सबसे सुरक्षित तरीका यही है- प्लेटो को श्रृखंला में पाद-टिप्पणियों में उद्धृत करना। यद्दपि अन्य दार्शनिकों की लोकप्रियता घटती-बढ़ती रही है पर प्लेटो के ग्रंथों को, जब से वे लिखे गए, पाठकों का अभाव कभी नहीं रहा। प्लेटो के विचारों की तुलना उसके सबसे प्रसिद्ध शिष्य अरस्तू से की जाती है जिसकी पश्चिमी मध्य युग में ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि प्लेटो की छवि को ग्रहण लग गया और शास्त्रीय दर्शनशास्त्री अरस्तू को ही ‘दार्शनिक’ कहने लगे। तथापि कुस्तुनतुनिया साम्राज्य में प्लेटो का अध्ययन चलता रहा।
मध्ययुगीन शास्त्रीय दार्शनिकों की प्लेटो के ग्रंथों तक पहुंच नहीं थी और न ही वे उन्हें पढ़ने के लिए ग्रीक भाषा जानते थे। पश्चिमी सभ्यता के लिए प्लेटो की रचनाएं खो गई थीं। तिमैओस के अतिरिक्त प्लेटो की सभी कृतियां मध्ययुग तक पश्चिमी संसार के लिए अप्राप्य रहीं। इन्हें मध्य-पूर्व के मुसलमान विद्वानों द्वारा सुरक्षित रखा गया। 1438 ई. में जार्ज जेमिसतोस प्लथोन ने फ्लोरेंस में प्लेटो और सुकरात के साम्य और वैषम्य पर भाषण दिया। मध्ययुगीन विद्वानों को अरबी और फारसी के विद्वानों द्वारा किए गए अनुवादों से लेटिन में हुए अनुवाद के द्वारा ही प्लेटो के बारे में पता चला। इन विद्वानों ने प्राचीन ग्रंथों का मात्र अनुवाद ही नहीं किया अपितु प्लेटो और अरस्तू के साहित्य पर टिप्पणियां लिखकर और व्याख्या करके मूल साहित्य को बढ़ा भी दिया। सांस्कृतिक नवयुग में, शास्त्रीय सभ्यता के प्रति सामान्य अभिरुचि जाग्रत होने पर, प्लेटो के दर्शन का पश्चिम में पुनः विस्तार हुआ। प्रारंभिक आधुनिक वैज्ञानिकों और कलाकारों ने शास्त्रीय विचारधारा को त्यागकर पुनर्जागरण पर पल्लवन किया और प्लेटो के दर्शन को वैज्ञानिक और कला-संबंधी प्रगति के लिए आधार माना। 19वीं शताब्दी तक प्लेटो की ख्याति पुनः स्थापित होकर अरस्तू की ख्याति के बराबर आ गई।
अरस्तू और डायोगेनीज इस बात से सहमत हैं कि प्लेटो का हेराक्लीतोस के दर्शन से या उसके शिष्यों से संबंध रहा है। इसका प्रभाव प्लेटो की इस परिपक्व अवधारणा में देखा जा सकता हैं कि यह चेतन संसार सतत परिवर्तनशील है।
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