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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
लेविस काम्पबेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शैली-विज्ञान का गहन प्रयोग करते हुए वस्तुनिष्ठता से सिद्ध किया कि सबसे अंत में लिखे जाने वाले संवाद ग्रंथ क्रितीओस, तिमैओस, लाज, स्टेट्समेन, फिलैबस, सोफिस्ट का एक वर्ग के रूप में समुच्चय हो सकता है, जबकि पर्मेनिदीस, फैडरोस, रिपब्लिक और थिएतितोस एक भिन्न वर्ग में थीं जिन्हें पहले लिखा गया। अरस्तू भी कहता है कि लाज को रिपब्लिक के बाद लिखा गया। परंतु यह सूची भी अंतिम नहीं है। इस पर भी विद्वानों ने उंगलिया उठाई हैं।
संवादों को छांटकर उनका वर्गीकरण करना एक अन्य लोकप्रिय उपाय है जिसे ‘अंतर्वस्तु विश्लेषण’ कहा जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न संवादों की दार्शनिक शैली और अंतर्वस्तु में अंतर और संभावनाएं तलाश की जाती हैं और उनकी गणना की जाती है। इन दोनों पद्धतियों के संबंध में विद्वानों की पूर्ण सहमति नहीं है और ऐसा नहीं लगता कि विद्वानों के विभिन्न मत कभी एकमत होंगे। आधुनिक विद्वान मानते हैं कि प्लेटो के संवादों के विभिन्न वर्ग बनाए जा सकते हैं और सुकरात के दर्शन पर लेख और पुस्तकों के लिए यह कहना असामान्य नहीं होगा यदि ‘सुकरात’ के द्वारा उसका तात्पर्य उस चरित्र से है जो प्लेटो के ‘प्रारंभिक’ या सुकरातीय संवादों में आया है। यथा, यह सुकरात ऐतिहासिक सुकरात है जिसकी हम खोज कर रहे हैं। इस प्रकार की गंभीर परख ग्रेगोरी ब्लासतोस की पुस्तक ‘सुकरात: आइरोनिस्ट एण्ड माॅरल फिलासफर’ में पाई जा सकती है जिसमें प्लेटो के प्रारंभिक संवादों के ‘सुकरात’ और बाद में संवादों में उसी नाम के चरित्र को देखा जा सकता है।
आज के विद्वान इस बात से असहमत हैं कि प्लेटो का लेखन सुनिश्चितता से काल-क्रमानुसार रखा जा सकता है यद्दपि उसके संवाद तीन भागों में विभाजित किए जाते हैं। संवादों के किए गए वर्ग आज भी विवादित हैं और ग्रंथों को क्रम देने की प्रक्रिया स्वीकार्य नहीं है। रचनाकाल के क्रमानुसार यह कहा गया है कि सभी प्रारंभिक संवादों में सुकरात उपस्थित है और इसे ऐतिहासिक सुकरात का सच्चा विवरण माना जाता है।
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