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जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो

प्लेटो

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10545
आईएसबीएन :9781613016329

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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...

संवादों का प्रकथन

यूनान में दर्शन का जन्म केवल मानसिक कौतूहल की संतुष्टि के लिए हुआ था। दर्शन विद्वानों के एक समुदाय तक सीमित था। जीवन से उसका कोई संबंध नहीं था। प्लेटो, जर्मन दार्शनिक कांट की तरह, चूंकि सिद्धांत और आचरण में भेद नहीं मानता था अतः उसके लिए यह स्थिति सोचनीय थी। सुकरात से उसके जुड़ने का मुख्य कारण यह था कि सुकरात दर्शन को आचरण की अभिव्यक्ति मानता था। इसी कारण प्लेटो ने अपने संवाद ग्रंथों में क्रीतिओस, प्रोटागोरस, पार्मेनिदीस, अल्किवियादिस जैसे ऐतिहासिक व्यक्तियों को पात्र के रूप में स्थान दिया है। साथ ही इन पात्रों के मुख से उन्हीं के व्यक्तित्व से मेल खाते हुए संवादों और विचारों का वर्णन किया है। इससे भिन्नताओं की व्याख्या भी हो गई है।

दार्शनिक विचारों को प्रतिदिन की बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत किए जाने से संवादों में साहित्यिक गरिमा आ गई है। संवादों के माध्यम से व्यक्त प्लेटो का दर्शन सामान्य जन के लिए भी बोधगम्य है।

अपोलाजी के अतिरिक्त प्लेटो अपने किसी भी संवाद में उपस्थित नहीं है। ऐसा कोई संकेत नहीं है कि अपने संवादों को प्लेटो ने सबसे पहले सुना है। कुछ संवादों में कोई सूत्रधार नहीं है। उन्हें विशुद्ध नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऐसे संवादो के नाम हैं - मेनो, गोर्गिअस, क्रीतो और यूथीफ्रो। कुछ संवादों यथा लाज, खारमीदिस, रिपब्लिक का सूत्रधार सुकरात है जिनमें वह प्रथम पुरुष में बोलता है। प्रोतागोरस नामक संवाद नाटकीय शैली में प्रारंभ होता है परंतु शीघ्र ही सुकरात एक सोफिस्ट के साथ वार्ता करता दिखाई देता है। प्रोतागोरस, जिसके नाम से इस संवाद का शीर्षक है, नामक सोफिस्ट से की गई पूर्व चर्चा का सूत्र जोड़ा जाता है। इसी वार्ता के साथ संवाद समाप्त होता है।

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