जीवनी/आत्मकथा >> प्लेटो प्लेटोसुधीर निगम
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पढ़िए महान दार्शनिक प्लेटो की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 12 हजार...
यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि प्लेटो ने संवादों को लिखना कब प्रारंभ किया। ऐसा प्रतीत होता है कि सुकरात के जीवन-काल में प्लेटो ने कुछ नहीं लिखा था। यद्दपि सभी संवादों में सुकरात ही प्रमुख वक्ता है-प्लेटो तो संवादों में एक-दो बार ही आता है। प्लेटो ने संवाद शैली इस कारण अपनाई कि संवाद में लेख की तुलना में पाठक का संपर्क अधिक व्यक्तियों के साथ एकदम हो जाता है और पाठक के स्वाभिमान को ठेस भी नहीं लगती। पाठक इस मधुर स्वप्न में रहता है कि संवाद का सुकरात अपने शिष्यों की कमियां निकलाकर उन्हें समझा रहा है और पाठक केवल निकट बैठा सुन रहा है। एक बात और। प्लेटो अपने गुरु पर अविचलित श्रद्धा रखता था। संवाद ग्रंथ गुरु सुकरात के प्रति शिष्य प्लेटो की श्रद्धांजलि थी। ऐसा करके वह संसार को दिखाना चाहता था कि वह जो कुछ कहता है सब सुकरात की ही शिक्षा की देन है।
दार्शनिक समस्याओं को स्पष्ट करने के लिए प्रभावी संवाद शैली के माध्यम से दलीलों को प्रतिपादित करने का एक अन्य कारण भी था। साहित्यिक माध्यम के जरिए प्लेटो यह प्रदर्शित करना चाहता था कि जैविक क्रिया के समान विचार भी एक सक्रिय एवं विकासशील प्रक्रिया है। यह दिखाने के लिए उसने इतना चिंतन इस कारण किया था कि उसने इस प्रक्रिया को साक्षात रूप से सुकरात के मस्तिष्क में अंकुरित और विकसित होते देखा था। जो कुछ उसने देखा और अनुभव किया उसे वह लिखित रूप देना चाहता था ताकि गुरु की सहज सर्जनात्मकता सुरक्षित रह सके।
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