नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
एकांत पाकर पंचतंत्रकार ने गीदड़ को ´लड़ाओ और (पूरे शिकार पर) राज करो´ की अंग्रेजी नीति सिखा दी थी। गीदड़ ने अपना स्वर धीमा और रहस्यमय बनाते हुए कहा, ´´स्नान के लिऐ जाने से पूर्व चूहे ने आपके विषय में जो बात मुझसे कही थी वहीं मेरे मन को व्यथित किए हुए है। आप तो जानते हैं कि मैं आपका कितना सम्मान करता हूं।´´
´´क्या कहा था उस भुनगे ने?´´ बाघ गुर्राया।
गीदड़ ने दुखी-सा होकर बताया, ´´उसने कहा था, ´जंगल के राजा के बल को धिक्कार है। आज मेरे बाहुबल का सहारा लेकर वह अपनी क्षुधा शांत करेगा।´ उसकी इस घमंड भरी और आपके प्रति अपमानपूर्ण बात से मेरा तो भोजन करने का मन कतई नहीं कर रहा है।´´
बाघ ने बुझे हुए स्वर में कहा, ´´यदि चूहे ने ऐसा कहा, तो ठीक ही कहा है। उसने तो मेरी आंखें खोल दीं। मैं ऐसा बूढ़ा भी नहीं हो गया हूं। आज से मैं अपने ही बाहुबल के भरोसे शिकार करूंगा, तभी भोजन को हाथ लगाऊंगा। अच्छा भाई, मैं चला, मेरा कहा-सुना माफ करना।´´
इतना कहकर बाघ वहां से जंगल के भीतर चला गया।
इसी समय चूहा स्नान करके आ गया। उसके आते ही गीदड़ ने कहा, ´´चूहे भाई, पहले नेवले की बात सुन लो फिर शिकार की ओर घूरना। नेवला कह रहा था कि तुम्हारे दांत लगने और बाघ के मारने से इस हरिण का मांस जहरीला हो गया है अतः वह तो इसे न खाएगा। इसके बदले उसने तुम्हें खाने की बात कही थी।´´
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