नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
भोज का नाम सुनकर सबके मुंह से लार टपकने लगी। उनमें से किसी ने भी प्रस्तुत योजना की इस शिथिलता की ओर ध्यान नहीं दिया कि चूहे का पहला दांत लगते ही हरिण जागकर भाग खड़ा होगा। कहानी में यह झोल उन्होंने सहन कर लिया क्योंकि इसका दोष पंचतंत्रकार के मत्थे जाने वाला था। अतः गीदड़ की बात पर आम सहमति बन गई। थोड़ी देर इधर-उधर तलाश करने के बाद हरिण एक वृक्ष के नीचे सोता दिखाई दिया। योजनानुसार चूहा अपने मिशन पर निकल पड़ा। उसने हरिण के पिछले पैर में काट खाया। जब तक वह समझे कि यह दंश कैसा है चूहे ने दूसरा पैर भी घायल कर दिया। व्याकुल होकर हरिण लंगड़ाते हुए भाग निकला। तभी घात लगाए बैठे बूढ़े बाघ ने लपक कर उसका काम तमाम कर दिया।
विजय की खुशियां मनाई जाने लगीं। इसी बीच गीदड़ ने हरिण को भरपूर नजर से देखा और मन ही मन हिसाब लगाया कि शिकार के पांच हिस्सों में उसका भाग इतना क्षुद्र होगा जिससे उसके परिवार का तो दूर उसका ही भला नहीं होगा। कहानी में पेंच डालने का उसने मन ही मन निर्णय कर लिया।
प्रकटतः उसने कहा, ´´भोजन करने से पहले आप लोग जाकर नदी में स्नान कर आइए, तब तक मैं शिकार की रखवाली करता हूं।´´
शिकार चूंकि गीदड़ के बुद्धि-चातुर्य के कारण ही हाथ आया था अतः बाघ, भेड़िए, नेवले और चूहे ने इस सुझाव पर कोई एतराज नहीं किया। करते भी कैसे, पंचतंत्रकार अपनी कलम के इशारे से उन्हें नदी की ओर जाने के लिए प्रेरित कर रहा था। अतः वे चारो चुपचाप स्नान करने के लिए चल पड़े।
स्नान करके सबसे पहले बाघ लौटा। उसने पहले शिकार पर निगाह डाली। उसे सही सलामत पाकर वह गीदड़ की ओर उन्मुख हुआ। गीदड़ मुंह लटकाए बैठा था और चिंतातुर दिखने का ढ़ोंग कर रहा था। बाघ ने पूछा, ´´महामते! किस सोच में डूबे हो! भोजन करने के बाद हम लोग मौज से घूमेंगे। अतः प्रसन्न होइए।´´
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