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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


अंगूठा पैमाने का भी काम देखता है। अंगूठे और कनिष्ठिका को फैलाने से जो दूरी आती है उसे बालिश्त कहते हैं। ´बालिश्त´ फारसी शब्द है जिसका एक अर्थ ´नौ इंच की नाप´ होता है।

अंगुलियों पर अंगूठे का ही शासन होता है। मुट्ठी बांधने पर यह अंगुलियों के ऊपर जा विराजता है। अंगूठा बाह्य चोट से न केवल अंगुलियों की रक्षा करता है उन्हें संगठित भी रखता है। प्रारंभ में बच्चों को अंगुलियों पर गिनती गिनना सिखाया जाता है। गिनती बोलते समय अंगुलियां तो अचल रहती हैं पर अंगूठा अंगुलियों के प्रत्येक पोर पर दौड़ता फिरता है।

अंगूठा अपराध से दूर रहता है। किसी को चपत या चांटा मारने का काम मुख्य रूप से अंगुलियों द्वारा किया जाता है। उस समय अंगूठा साथ रखते हुए भी अपराध से अलग रहता है। अंगुलियों के बहकाने पर किसी का गला दबाने की प्रक्रिया में एक बार उसने मुख्य भूमिका निभाई थी। जब से हत्याएं आग्नेय अस्त्रों से होने लगीं, इस कार्य का भार अंगुलियों को सौंपकर अंगूठा उस जघन्य अपराध से निवृत्त हो गया।

अंतर्यामी भगवान को भी मानव-हृदय में स्थित होने के लिए अंगूठे का रूप ग्रहण करना पड़ा। शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य शरीर के मध्यभाग अर्थात हृदयाकाश में परम पुरुष (परमात्मा) अंगुष्ठ-मात्र रूप में स्थित है- (´´अंगुष्ठमात्रः पुरुषो मध्य आत्मनि तिष्ठति।´´ कठोपनिषदः, द्वितीय अध्याय, प्रथम वल्ली, श्लोक 12)। स्वामी शंकराचार्य ने ´अंगुष्ठमात्र´ शब्द को परमात्मा का वाचक माना है।

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