नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
अंगों और घटकों की सूक्ष्म संबद्धता हाथों के साथ रहती है। मन की दशा विचलित होने पर उसके प्रतिबिम्ब हाथ पर भी उभरने लगते हैं। दोनों हाथों में से दायां हाथ (प्रवेष्टक) अधिक संवेदनशील होता है। जांच-पड़ताल में डाक्टर उसी को पकड़ते हैं। बायां हाथ (सौम्य) कम संवेदनशील होता है। काम में कम प्रयुक्त होने के कारण उसके अंगूठे की रेखाएं कम घिसती हैं अतः स्पष्टता के लिए अंगूठा निशानी बाएं हाथ की ली जाती है। लेकिन आधुनिक शोधों ने अब बाएं यानी उल्टे हाथ को अति महत्वपूर्ण बना दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गुस्से पर काबू पाने के लिए, दाएं हाथ का उपयोग करने वाले व्यक्ति को खेलने (जैसे बैडमिंटन, कैरम आदि) वाद्य-यंत्रों को बजाने, रोजमर्रा के काम यथा दरवाजा खोलने, चाय के कप में चीनी मिलाने जैसे कामों को बाएं हाथ से करना चाहिए। शोध कहता है कि जिन लोगों ने अपने कम इस्तेमाल होने वाले हाथ का लगातार दो हफ्ते तक इस्तेमाल किया उन लोगों ने बेहतर स्वनियंत्रण कर अपने गुस्से पर काबू पाया।
पैदा होते ही बच्चा हाथ-पैर चलाने लगता है। रोते समय उसके हाथ निश्चल नहीं रहते वरन् आक्रोश, असहायता, ध्यान-आकर्षण की मुद्रा धारण कर लेते हैं जिसके निदर्शन हेतु वह हाथों को कभी पेट पर मारता है, कभी विस्तर पर पटकता हैं। हाथ मिलाने से शारीरिक विद्युत के आदान-प्रदान के साथ-साथ भाव संवेदनाओं का भी विनिमय होता है। जिस प्रकार मुख-मुद्रा से आतंरिक उभारों का परिचय मिलता है, होठ-कपोल अभिव्यक्तियों के प्रकटीकरण में सहायक होते है; भौहें अपने ढंग से व्यक्ति की मनःस्थिति, भाव संवेदन की परिचायिका होती हैं; मुख मनुष्य के व्यक्तित्व और कृतित्व का द्योतन करता है उसी प्रकार वाणी न होने, देखने-सुनने का आधार न होने पर भी बोलने, समझने, सुनने, देने-लेने के काम हाथ ही करता है। भाव संवेदना के असाधारण माध्यम हाथ का वाद्य-वादन, लेखन, शिल्प, व्यवसाय आदि में सबसे अधिक उपयोग होता है।
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