नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
आम धारणा है कि चींटियां हमारे किसी काम की नहीं होतीं। वे हमें काटकर कष्ट ही देती हैं। पर ऐसी बात नहीं है। चींटियों की जीवन शैली से मानव जाति ने बहुत कुछ सीखा है। स्थापत्य कला और घर बनाने का हुनर हमारे पूर्वजों ने चींटियों से ही सीखा था। यहां तक कि दौ पैरों पर चलने की कला मानव ने चींटियों से ही प्राप्त की है। चींटियों से मानव ने लगनशीलता सीखी है। सुरंग बनाने का विचार भी चींटियों से ही ग्रहण किया गया। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए चींटीं जाति ने अपनी सेवाएं दी हैं। चींटियों से बनी दवाई के प्रयोग से चीन में कई लाख गठिया के रोगी ठीक हो चुके हैं। इस औषघि का वार्षिक व्यापार अरबों रुपयों का है। इस कारण चीन में चींटियों की मांग इतनी बढ़ गई है कि कुछ लोग अपने घरों में चींटी-पालन करने में लगे हैं।
चलते-चलते एक चेतावनी- चींटियों को, और विशेषकर जब आप देश के बाहर हों, निरीह या तुच्छ प्राणी समझने की भूल कभी न करें। मध्य और दक्षिणी अफ्रीका में पाई जाने वाली एक प्रजाति विशेष की चींटियां मांसाहारी होती हैं। इन्हें आसानी से मसला नहीं जा सकता। ये अपने शिकार की तलाश में लाखों के समूह में निकलती हैं। जब कोई शिकार उनके पंजे में फंस जाता है, फिर वह जीवित नहीं बच पाता। अभी तक तो यही ज्ञात है कि हमारे देश की चींटियां शाकाहारी होती हैं, इसी कारण धर्मप्राण लोग उनके लिए आटा बुरकते दिखाई पड़ जाते हैं। चींटियों का जीवित रहना मानव जाति के लिए अत्यावश्यक है। अगर चींटियां इस दुनियां से खत्म हो जाएं तो संसार अस्त-व्यस्त हो जाएगा, मिट्टी में लम्बे समय तक जीवन की संभावना समाप्त हो जाएगी। सूखी पत्तियां, मृत कीड़े और छोटे जानवर पृथ्वी की सतह पर कूड़े की तरह हो जाएंगे। कई जीवनाधार खाद्य पदार्थ खत्म हो जाएंगे। कितने ही पुष्पीय पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी।
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