नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
दरअसल तोते को बेवफा सिद्ध करने में रंगीलाल का बहुत बड़ा हाथ है। ये जनाब वही हैं जिन्होंने आज से लगभग नौ सौ साल पहले ´किस्सा तोता मैना´ नाम पुस्तक प्रणीत की थी। पुस्तक घर-घर में पढ़ी गई और इतनी प्रसिद्ध हुई कि ईरान तक जा पहुंची। इसमें तोता-मैना की नोंक-झोंक दर्ज है। स्त्री-पुरुष के माध्यम से वे एक दूसरे पर बेवफाई का आरोप लगाते हैं। स्त्री जाति की होने के नाते पाठकों की पूरी सहानुभूति मैना को मिली और लोक में तोता बेवफा सिद्ध हो गया।
परंतु एक संघर्षशील लेखक तोते की इस नियति को स्वीकार नहीं कर पाए। सुना है वे ´किस्सा-तोता-मैना´ भाग-2 लिख रहे हैं जिसमें अकाट्य प्रमाणों से तोते को वफादार सिद्ध किया गया है। पुस्तक अभी प्रड़यन-पीड़ा झेल रही है बाद में प्रकाशन-पीड़ा झेलेगी। बहरहाल किसी प्रकार प्राप्त किए गए इसी पुस्तक के कुछ अंश पाठकों के लाभार्थ यहां प्रस्तुत हैं।
अब्दुल हलीम ´शरर´ (1860-1926) की पुस्तक ´गुजिश्तां लखनऊ´ में वाजिद अली शाह के जमाने का एक किस्सा दर्ज है। लिखा है कि ´´मीर मुहम्मद अली नामक एक बुजुर्ग हुआ करते थे जिन्होंने तोतों से कबूतर का काम लेने या कहें साधने में खास कामयाबी हासिल की थी। तोता स्वभाव से ही बड़ा बेवफा होता है। जिदंगी भर रखिए और पालिए लेकिन पिंजड़े से उड़ा तो फिर उधर का रुख ही नहीं करता। ´तोता-चश्मी´ नाम ही बेवफाई का हो गया है। पिंजड़े से छूटते ही वह किसी के बस का नहीं होता। मगर मीर साहब ने खुदा जाने किस तदबीर से उनका स्वभाव बदल दिया। वे दस-बारह तोतों की टुकड़ी उड़ाते और क्या मजाल कि वह सीटी बजाकर ´आऽऽऽ´ करें और तोते आसमान से सीधे पिंजड़े में न जा उतरें। मीर साहब उन तोतों को रोज हुसैनाबाद लाकर उड़ाते।´´
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