नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
तोता तोताचश्म नहीं होता
बचपन में एक कहानी सुनी थी कि एक जादूगर था जो किसी देश की राजकुमारी से शादी करना चाहता था परंतु राजकुमारी पड़ोसी देश के राजकुमार से प्यार करती थी। जादूगर अपने जादू के बल पर राजकुमारी का हरण कर लेता है और जंगल में बने अपने मकान में कैद कर लेता है। पहले शादी करने के लिए राजकुमारी को फुसलाता है, लालच देता है और अंत में कष्ट देता है। परंतु राजकुमारी फिर भी शादी से मना कर देती है। उधर राजकुमार एक बुढ़िया द्वारा दी गई जादुई तलवार लेकर जादूगर से भिड़ने पहुंच जाता है। किसी तरह उसकी राजकुमारी से एकांत में भेंट होती है तो वह बताती है कि काले पहाड़ के पीछे बनी बगीची में एक पेड़ पर टंगे पिजड़े में लालमन नामक एक तोता कैद है। जादूगर की जान उसी तोते में बसी है। तमाम कष्ट उठाकर राजकुमार वहां पहुंचता है और लकड़ी के पिंजड़े से निकालकर तोते को मार डालता है। उधर जादूगर भी मर जाता है। राजकुमारी-राजकुमार मिल जाते हैं।
इस कहानी में तोता निरपराध मारा जाता है। इससे द्रवित होकर दयालु परिवार तोते को पालने लगे और उसकी सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर लोहे की जाली बना दी जिसे आम भाषा में ´पिंजड़ा´ कहते हैं।
कई पीढ़ियों बाद पता चला कि तोता तो बेवफा जीव है। पिंजड़े में पड़े तोते को खिलाइए फिर जो चाहे बुलवाइए। पेट भरते ही आंखे फेर लेगा या पिंजड़ा खुला रहने पर फुर्र हो जाएगा। इसे ही तोताचश्म यानी अवसरवाद की संज्ञा दी गई है जैसे कि हमारी आज की राजनीति है जिसमें चुनाव होने तक नेता जनता के सामने नतमस्तक रहता है और कुर्सी मिलते ही मस्तक फेर लेता है।
अपने देश में एक बहुत बड़े साहित्यकार, संगीताचार्य, कवि, इतिहासकार हो चुके हैं। उन्होंने सात बादशाहों के नीचे शाही सेवा की। 1285 से 1325 के बीच उन्होंने इतिहास भी लिखा और कविताएं भी। कुछ कविताओं की रचना के लिए उनसे खास तौर पर कहा गया जबकि अन्य कविताएं उन्होंने अपने शाही आकाओं की प्रसन्नता के लिए लिखीं। उन्हें निष्पक्ष इतिहासकार नहीं माना गया। यहां तक कि अपनी मसनवी के लिए उन्होंने जिन विषयों का उपयोग किया वे उनके अपने चुने हुए नहीं थे। उनकी अवसरवादिता को देखते हुए फारसी कवि हाफिज शीराजी ने अमीर खुसरो को ´हिंदुस्तान का तोता´ कहा था। यानी ´तोता´ शब्द एक गाली के रूप में प्रयुक्त होने लगा।
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