नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
|
0 |
समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
जब गांव के मंदिर में आरती होती है, घंटे बजते हैं, तो मैं अक्सर रोता हूं- जोर-जोर से रोता हूं। लोग समझते हैं यह अपशकुन है, पर नहीं, हम ईश्वर से यही कहते हैं कि ये घंटे बजाने वाले, आरती करने वाले हमारे जैसे निष्कपट और निष्ठावान नहीं हैं, अपने स्वार्थ के लिये भक्तों को छल रहे हैं। वैसे भी हमारे रोने से किसी का बुरा समय नहीं आ जाता वरन् सिर पर आ गये बुरे समय से हम मानव को रो-रोकर आगाह करते हैं।
हम जिस निष्ठा से अपने स्वामी या उसके परिवारीजनों के प्रति अनुरक्त रहते हैं वह प्रेम का सर्वोच्च उदाहरण है, धर्म का सबसे बड़ा विग्रह है। यह हमारा कथन नहीं है। यह बात चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने अपनी पुस्तक ´महाभारत´ में कही है। हमें इस स्वामिभक्ति का पुरस्कार भी मिलता है। अमेरिका में एक स्वान-प्रेमी स्वामी सिडनी अल्तमान ने अपनी 55 लाख डालर की सारी संपत्ति अपने प्यारे कुत्ते समांता के नाम कर दी और पत्नी को संपत्ति से वंचित कर दिया। उसने पत्नी के लिये 60 हजार डालर वार्षिक आय की व्यवस्था जरूर की, परंतु यह शर्त लगा दी कि वह समांता की ठीक से देखभाल करे।
लोग हम पर दोष लगाते हैं कि हम रंगभेद नहीं कर पाते अर्थात् पूरी तरह से वर्ण-अंधत्व से पीड़ित हैं। यह आरोप सही है। हम वस्तुओं की पहचान अपनी घ्राणशक्ति से करते हैं, उनके रंग हमें नहीं दिखाई देते। हमारे लिये क्या काला, क्या गोरा- सभी समान हैं। मनुष्य रंगभेद करने में सक्षम है। इसी कारण उसने संसार में कितनी घृणा फैलायी है, लोगों को गुलाम बनाया है, उनका शोषण किया है, उनके अधिकारों का हरण किया है।
|