नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
राजनीति की तरह धर्मग्रंथों में हमारा उल्लेख मिलता है। बात रामायण काल की है। एक बार हमारे एक पूर्वज को स्वार्थसिद्धि नामक भिक्षु ने ऐसा डंडा मारा कि उसका सिर फट गया। राम-राज था अर्थात न्याय मिलने की पूरी आशा थी, इसलिये उस पूर्वज कुत्ते ने कानून अपने हाथ में नहीं लिया। सीधे जाकर रामजी के दरबार में गुहार लगायी। उससे रामजी ने ससम्मान कहा ´´सारमेय। तुम्हें जो कहना है उसे मेरे सामने कहो। यहां कोई भय नहीं है।´´ राजा हो तो ऐसा। पूर्वज ने पूरी घटना सुनाई । भिक्षु को बुलाकर दंड दिया गया।
देवताओं ने एक कुतिया पाल रखी थी, जिसका नाम देवसुनी था। उसने चार आंख वाले (यानी अत्यंत सतर्क) कुत्ते को जन्म दिया, जिसे यमराज ने मांग लिया और हमेशा के लिये अपने साथ रख लिया। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए भगवान भैरव देव ने हमें अपना वाहन बना लिया। हम लोग देवी-देवताओं के सदा विश्वस्त रहे। साक्षात धर्म हम लोगों के माध्यम से प्रकट होते रहे हैं। एक प्रसंग पर्याप्त होगा। ´महाभारत´ में वर्णन आता है कि युद्ध में विजयी होने के बाद पांडवों का राज्य स्थापित हुआ। दीर्घकाल तक वे शासन करते रहे। राज-भोगों से ऊबकर उन्होंने राज्य युयुत्स को सौंपा और द्रोपदी सहित पांचों पांडव हिमालय पर देह-त्याग करने चल पड़े। युधिष्ठिर ने एक कुत्ता भी अपने साथ ले लिया। हिमालय लांघकर सिर्फ युधिष्ठिर कुत्ते के साथ स्वर्ग-द्वार पर पहुंच गये। इंद्र ने युधिष्ठिर का स्वर्ग में स्वागत किया परंतु कुत्ते के प्रवेश पर रोक लगा दी। लेकिन युधिष्ठिर इस आदेश के विरुद्ध अड़ गये। अंततः इंद्र को झुकना पड़ा और युधिष्ठिर ने कुत्ते सहित स्वर्ग में प्रवेश किया। यहां एक रहस्य की बात बताता हूं, जो व्यासजी ने भी ´महाभारत´ में नहीं लिखी है। यह तो विदित ही है कि उस समय कुत्ते के भीतर धर्म विराजमान था, अतः युधिष्ठिर कुत्ते को स्वर्ग नहीं ले गये थे वरन् कुत्ता स्वयं युधिष्ठिर को साथ ले गया था।
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