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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

विषय-क्रम

1. गधा गाथा
2. कौआ कथा
3. श्वान चरित
4. तोता तोताचश्म नहीं होता
5. चींटी चरितावली
6. अनोखी मछली : डॉल्फिन
7. मैं बांस हूं
8. घास और उसकी जड़
9. लाठी
10. दीवार का दर्द
11. गांठ
12. हमारे हाथ
13. हमारा अंगूठा
14. इंसान का सिर
15. लंगोट
16. बंदर और घड़ियाल
17. शरणस्थली
18. कॉरपोरेट जंगल
19. कूटनीति
20. शेर और खरगोश
21. ´अमर उजाला´ बंद करि देउ
22. जब विनोबा को घूंसा पड़ा
23. जूते के बल पर चंदा लिया
24. जब बापू ने हिंसा की वकालत की
25. खोजी पाठक
26. औरों से अलग
27. सद्-बुद्धि
28. अनूठे रहीम
29. ये बेचारे श्रोता
30. परख
31. आदत से मजबूर
32. मज़ाक

गधा गाथा

´गधा´ शब्द दिमाग में कौंधते ही या उसके दृष्टि के सामने साक्षात् प्रकट होते ही ज्यादातर लोगों को बड़े अमंगलकारी विचार आने लगते हैं। पहले ´गधा´ शब्द पर ही विचार कर लेते हैं फिर साक्षात् गधे पर। हिंदी तक गधा शब्द का आगमन सीधे संस्कृत से नहीं हुआ- बीच में दो पड़ाव पार करने पड़े। संस्कृत का ´गर्दभ´ (कर्कश ध्वनि करने वाला) पालि में ´गद्दभ´ बना फिर प्राकृत में ´गद्दह´ हुआ। हिंदी तक आते-आते इसने ´गदह´ और ´गधा´ का रूप ले लिया। इसके पर्याय हैं- उपक्रोष्टा, रासभ, गदहा, वैशाखनंदन, लंबकर्ण, ग्राम्याश्य आदि। कानों की विशालता को देखते हुए गधे के लिए अरबी और फ़ारसी में एक शब्द बना ´खर´, जो सीधे संस्कृत से लिया गया। अंग्रेजी का ´ऐस´ (गधा) शब्द उस वैदिक प्रयोग का स्मरण दिलाता है जब ´अश्व´ का अर्थ गधा भी था। वास्तव में अश्व का अर्थ घोड़ा न होकर ´तेज चलने वाला´ होता है। घोड़े से पहले गधे को ही तेज चलने वाला माना जाता था।

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