जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
प्रदीप अपने अग्रज कृष्ण बल्लभ द्विवेदी की छत्र-छाया में रहते थे। भाई के व्यक्तित्व का उन पर गहन प्रभाव पड़ा। कृष्ण बल्लभ बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे। उनका दखल कई विधाओं पर था। वे अनुवादक, गद्यकार और कवि थे। उनके द्वारा अनूदित तीन यूरोपीय उपन्यास समादृत हो चुके थे। तत्कालीन प्रतिष्ठित पत्रिका ‘सरस्वती’ में उनका लेख ‘हमारी सभ्यता’ प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुका था और वे गद्यकार के रूप में जमने लगे थे। ‘पागल प्यार’ नामक 180 पंक्तियों की उनकी कविता ‘चांद’ पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी थी। पर उनकी मुख्य विधा गद्य ही रही। अग्रज की इस गंभीर सारस्वत साधना का गहन प्रभाव प्रदीप पर पड़ा। एक बार आकाशवाणी पर साक्षात्कार के दौरान कृष्ण बल्लभ द्विवेदी से जब यह प्रश्न पूछा गया कि उनकी वास्तविक लेखन-विधा गद्य है या पद्य तो उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘हम दो भाई हैं। भाइयों में प्रायः संपत्ति का बटवारा हुआ करता है, अतः मैंने गद्य भाग स्वयं ले लिया है और पद्य की विरासत अनुज के लिए छोड़ दी है।’’
पद्य प्रदीप की सहजवृत्ति के अनुकूल था, अतः उन्होंने कविता चुनी। इलाहाबाद में 1933 से 1935 तक का समय उनकी गीत-यात्रा का प्रस्थान बिंदु रहा। वे गीत लिखते और मधुर कंठ से उन्हें सुनाते। कंठ का स्वर उन्हें अपने पिता से मिला जो अच्छे गायक थे। इसी कालखंड में उन्होनें अपना उपनाम ‘प्रदीप’ रखा। अब उनका पूरा नाम हो गया था- पं. रामचन्द्र नारायण द्विवेदी ‘प्रदीप’।
प्रदीप ने राष्ट्रीय चेतना के वाहक गीत लिखे जिनकी पृष्ठभूमि में उनका व्यक्तिगत अनुभव था। वे 1931 से ही स्वतंत्रता-आंदोलन में भाग लेने लगे थे। कई बार लाठियां खाईं। हाथ-पैर टूटे और महीनों अस्पताल में रहे। देशभक्ति के बीज यहीं पड़े जो बाद में फिल्म नगरी में गीतों के रूप में प्रस्फुटित होकर पूरे देश के श्रोताओं को आंदोलित करते रहे।
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