जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
बालक रामू का नाम रखा गया रामचन्द्र। पूरा नाम हुआ रामचन्द्र नारायण द्विवेदी। बाद में जब वे इलाहाबाद गए और कविता का अंकुर फूटा तो स्वयं अपना उपनाम ‘प्रदीप’ रख लिया। खैर, यह बाद की बात है अभी हम उनके परिवार को देख लें जहाँ से उन्हें गहरे संस्कार मिले और अपनी संभावनाओं का तूर्यनाद करने का अवसर मिला। हिमालय की चोटी से ललकारने वाले प्रदीप के पूर्वज हिमालय के धुर उत्तरी भाग से आए थे इसलिए वे उदीच्य (ब्राह्मण) कहलाते थे। सोलंकी राजवंश ने सिद्धपुर-पाटन में भव्य शिव मंदिर ‘रुद्रमहालय’ बनवाया था और मंदिर में विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा के लिए एक हजार उदीच्य ब्राह्मणों को बुलाया था। इसी अवसर पर प्रदीप के पूर्वज भी आए। फिर लौटकर नहीं गए, वहीं बस गए। कालांतर में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर सिद्धपुर को लूटा और रुद्रमहालय नष्ट कर दिया। प्रदीप के पूर्वज वहाँ से पलायन कर पहले गुजरात, फिर राजस्थान से होते हुए उज्जैन के बड़नगर पहुंचे जो तत्समय नौलाई कहलाता था।
नारायण राय भट्ट (दवे) के दो पुत्र थे। ज्येष्ठ कृष्ण वल्लभ अपने नाम के आगे भट्ट के स्थान पर ‘दवे’ का संस्कृत रूप ‘द्विवेदी’ लगाते थे। यही परिपाटी प्रदीप ने भी ग्रहण की। शेक्सपियर यह कहने के लिए बदनाम है कि ‘नाम में क्या धरा है’ पर उसने यह भी कहा है कि ‘अच्छा नाम आत्मा का आभूषण होता है।’ रामचंद्र ने कई नाम बदले।
परिवार का पालन-पोषण करने के लिए नारायण भट्ट पुरोहिती करने लगे। ‘अति मंदा कर्म’ होने के कारण यह काम उन्हें रुचिकर न लगा अतः व्यापार में हाथ डाला। उसमें भी मन न लगा तो ‘उत्तम खेती’ की ओर प्रवृत्त हुए। चामला नदी के किनारे गारखेरी स्थान पर तीन सौ बीघे जमीन खरीदकर खेती करने लगे। पर वे अपने पुत्रों को खेती में न खपाकर उच्च शिक्षा दिलवाना चाहते थे। दोनों भाई रतलाम (इंदौर) में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करते रहे फिर वे इलाहाबाद पहुंचे। यहाँ के क्रिश्चियन कालेज से प्रदीप ने 1935 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की।
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