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अरस्तू का रचना संसार : लुप्त, विलुप्त, पुनरुद्धार
अरस्तू के नाम से जुड़ी रचनाओं को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। प्रथम वर्ग के अंतर्गत लोकप्रिय संवाद शैली में लिखी गई उनकी प्रारंभिक रचनाओं को रखा जा सकता है। प्लेटो से प्रभावित संवाद शैली में लिखे गए इन ग्रंथों को अरस्तू ने स्वयं लिखा था। दुर्भाग्य से यह प्रारंभिक कृतियां आज अनुपलब्ध हैं और केवल परवर्ती उद्धरण के माध्यम से, मैगस्थनीज (ईसा पूर्व 320) की इंडिका की तरह, इनके बारे में जानकारी मिलती है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अरस्तू के खोए हुए ग्रंथ उस काल के हैं जिसमें वह प्लेटो की अकादमी में था। उस समय अरस्तू प्लेटो से बहुत प्रभावित था और इसी कारण उसने अपने उस समय के ग्रंथों में संवाद शैली का प्रयोग किया है। इनमें से कई संवादों के नाम भी प्लेटों के संवादों से मिलते-जुलते हैं। कुछ नाम सूचित करते हैं कि वे अकादमी छोड़कर मकदूनिया जाने और वहां से ईसा पूर्व 335 में अंतिम बार एथेंस वापस आने के बीच वाले समय में लिखे गए होंगे। द्वितीय वर्ग के अन्तर्गत उन विवरणों और सामग्री का उल्लेख किया जा सकता है जिसका संकलन अरस्तू ने लीकियन के अध्यक्ष के रूप में वैज्ञानिक प्रबंध-ग्रंथों के रूप में किया था। प्राचीन विवरणों से पता चलता है कि अरस्तू ने अत्यंत बृहत् सामग्री जुटा रखी थी किंतु यह सामग्री भी अधिकांशतः विलुप्त हो चुकी है और पूर्ववर्ती उद्धरणों से ही इसका पता चलता है। तृतीय श्रेणी के अंर्तगत उन वैज्ञानिक और दार्शनिक कृतियों का उल्लेख किया जा सकता है जो आज तक सुरक्षित है। केवल राजनीति से संबंधित एथेनिओन पोलेतिया नामक ग्रंथ को छोड़कर समूर्ण अरस्तू साहित्य, जो प्रामाणिक हैं, इसी वर्ग में आता है।
विषय की दृष्टि से अरस्तू की कृतियों का वर्गीकरण चार प्रमुख वर्गों में किया जा सकता हैः
1. तर्क विद्या
2. सैद्धांतिक दर्शन शास्त्र (गणित, भौतिक विज्ञान, तत्व मीमांसा आदि विषय)
3. व्यावहारिक दर्शन अथवा राजनीति विद्या
4. कला और सौंदर्य विज्ञान
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