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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
सिकंदर अभी मकदूनियां में ही था। अरस्तू के स्कूल के विषय में और उसके अनुसंधानों के विषय में ज्ञात होने पर उसे प्रसन्नता हुई। उसने ग्रंथ संग्रह करने के लिए अनुदान स्वरूप 800 टेलेंट (लगभग ढ़ाई मिलियन पौंड) गुरु को भेंट किए। सार्वजनिक धन से विज्ञान के उच्च-स्तरीय अध्ययन हेतु वित्त पोषण का संसार में यह पहला उदाहरण है। प्राणी विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए उसने अपने साम्राज्य के सभी शिकारियों, मछेरों, बहेलियों को यह आज्ञा जारी की थी कि जंतुओं-पक्षियों, मछलियों, कीटो से संबंधित जो महत्वपूर्ण जानकारी उन्हें है या मिले, उसे वे तुरंत अरस्तू को समर्पित करें। एक समय में ऐसे लोगों की संख्या एक हजार तक हो गई।
अरस्तू ने अपने शिष्य सिकंदर द्वारा दी गई आर्थिक सहायता और सुविधा का पूरा उपयोग किया। वह पहला अथवा संभवतः एकमात्र ऐसा प्राचीन यूनानी था जिसने गहन निष्ठा और उत्साह के साथ प्रकृति का सूक्ष्म अवलोकन कर एक सच्चे प्रकृति विज्ञानी की तरह कार्य किया। समुद्र फेनी मछलियों की आदतों का वर्णन; मच्छरों के जीवन चक्र का संक्षिप्त किंतु यथार्थ वृत्तांत अथवा उल्लू की आंखों के निरीक्षण; मधुमक्खी के लिंग के निर्धारण से अरस्तू का एक ऐसा चित्र उभरता है जो खुले आकाश के नीचे घंटों ध्यानमग्न, एकाग्र चित्त होकर अपने चतुर्दिक जीव-जंतुओं का अत्यंत सूक्ष्मता से अध्ययन कर रहा है। जीव विज्ञान से संबंधित अपने लेखों में उसने पक्षियों की 170, मछलियों की 169, स्तनपायी प्राणियों की 66 तथा 60 कीट जातियों का उल्लेख किया है। अरस्तू को जीव-जंतुओं से संबंधित चार विज्ञानों-पक्षी विज्ञान, मत्स्य विज्ञान, जंतु विज्ञान और कीट विज्ञान-का संस्थापक माना जा सकता है।
अरस्तू विचरण करने वाला मात्र एक शौकीन प्रकृति विज्ञानी ही नहीं था। प्रयोगशाला में भी कार्य करने में वह अत्यंत उत्साही और क्रियाशील था। उसने 100 से अधिक जीवों के भीतरी अंगों का विस्तृत वर्णन किया है। यह चीरफाड़ के पश्चात ही जानना संभव हुआ होगा। इनमें से 50 तो इतने अधिक सही है कि लगता है अरस्तू ने स्वयं विच्छेदन किया होगा।
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