जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
स्कूल की प्रातःकालीन बैठकों में अरस्तू अपने दार्शनिक मित्रों के साथ तत्वज्ञान की चर्चा करता। मध्यान्ह के समय वह साहित्यशास्त्र, वाग्मिता और तर्क विद्या जैसे सरल विषयों से संबंधित समस्याओं की व्याख्या करता। लीकियम में एक विशाल पुस्तकालय, उद्यान और संग्रहालय की उसने स्थापना की। पुस्तकालय बनाने के साथ उसने पुस्तकों के वर्गीकरण के सिद्धांत का निर्माण किया।
सामूहिक भोज की व्यवस्था तथा महीने में कम से कम एक बार परिसंवाद का आयोजन लीकियम के विशेष आकर्षण थे। अनेक वर्षों तक विभिन्न विषयों से संबंधित सामग्री एकत्र करने, प्रयोग करने तथा अध्यापन का कार्य अरस्तू ने लगन से किया। जो भी अरस्तू ने पढ़ाया, उसका सार आज भी उसके नाम से प्रचलित विभिन्न ग्रंथों में सुरक्षित देखा जा सकता है। ये ग्रंथ जिस स्थिति में आज उपलब्ध हैं उससे लगता है कि ये भावी पीढ़ी के लिए नहीं लिखे गए थे। वे किसी विशेष अवसर पर दिए जाने वाले भाषण के लिए टिप्पणियों-जैसे लगते हैं।
अरस्तू का प्रमुख उद्देश्य तो अध्यापन था, पर साथ ही उसका लेखन और शोध जारी था। प्लेटों के डायलाग्स के समान परिपूर्ण कृतियां उसने नहीं लिखी। किंतु जो कुछ उसने छोड़ा है वह उसका अपना है किसी अन्य की टिप्पणियां नहीं। अरस्तू द्वारा छोड़े गए विवरणों में यत्र-तत्र ऐसे स्पष्ट और साहित्यिक सौंदर्य से युक्त गद्य के दर्शन होते हैं जिससे उसकी साहित्यिक प्रतिभा का अनुमान होता है। अरस्तू ने विज्ञान और मनोविज्ञान की ऐसी शब्दावलियों का आविष्कार किया जिसके बिना आज हम विज्ञान की किसी शाखा के बारे में सोच भी नहीं सकते। कुछ नमूने देखें-मीन, मेक्सिम, केटेगरी, इनर्जी, एक्चुअलिटी, मोटिव, एण्ड, प्रिंसिपल, फार्म आदि। मनोविज्ञान शास्त्र के अपरिहार्य सिक्के अरस्तू के मस्तिष्क रूपी टकसाल में ढ़ाले गए थे। अरस्तू के लिए कहा जाता है कि वह भावी पीढ़ी के प्रति उदासीन था परंतु उससे बढ़कर भावी पीढ़ी के विचारों पर प्रभाव डालने वाला कोई नहीं हुआ।
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