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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

अपनी पत्नी की बात सुनकर हरी हिरन बोला, "हां, थोड़ी परेशानी की बात तो है क्योंकि राजा शेर सिंह जी द्वारा जब से पुराने सिक्कों को बंद करने का एलान हुआ है तब से सारे जानवर परेशान हैं कि वो अब अपना खाने-पीने का और अन्य जरूरी सामान कैसे खरीदेंगे क्योंकि सबके पास ज्यादातर वही सिक्के हैं।"

हरी हिरन की बात सुनकर उसकी पत्नी बोली, "बस इतनी बात है लेकिन ये भी तो सोचो कि इन सिक्कों के बंद करने से हम सबको कितना फायदा होगा। रही बात परेशानी की तो यदि हम जंगलवासी मिलजुल कर एक दूसरे का सहारा बनें तो इस परेशानी को आसानी से पार कर सकते हैं और अपने जंगल की तरक्की में सहयोग कर सकते हैं।" इतना कह कर हरी हिरन की पत्नी बाहर चली गई लेकिन हरी हिरन को उसकी मिलजुल कर परेशानी का सामना करने की बात अच्छी लगी और उसको एक युक्ति सूझी।

उसने उसी समय पंचायत बुलाई। सब जानवर जमा हो गए थे। हरी हिरन ने पंचायत में जमा जानवरों को संबोधित करना शुरू किया, "मित्रो यदि हम मिलजुल कर काम करें तो इस सिक्केबंदी की परेशानी को दूर कर सकते हैं।"

इतना सुनकर कालू कुत्ता बोला "वो कैसे?" इस पर हरी हिरन बोला, "देखो हम सब कुछ न कुछ काम करते हैं और हम सबका काम अलग अलग है जिससे कि हम अपना और अपने बच्चों का जीवन यापन करते हैं।"

इतना सुनकर मनु तोता उतावला होकर बोला, "लेकिन हम इससे अपनी परेशानी कैसे दूर कर सकते हैं?"

हरी हिरन थोड़ा मुस्कराया और बोला, "देखो हम ऐसे एक दूसरे की मदद से इस सिक्केबंदी से पार पा सकते हैं जैसे कि गौरी गाय दूध बेचती है और खेमू खरगोश सब्जी उगाता है और यदि हमारे पास सिक्के ना हों तो हम ना दूध खरीद सकते हैं ना ही सब्जियाँ। लेकिन यदि गौरी गाय बिना सिक्कों के अपना दूध खेमू खरगोश को दे और वो इसके बदले गौरी गाय को सब्जियाँ दे तो हम बिना सिक्कों के आपस में खाने-पीने और अन्य रोजमर्रा की चीजें ले सकते हैं और हमें सिक्कों की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।"

सब जानवर चुप थे इतने में मयूरी मोरनी बोली, "मैं समझ गई जैसे कि मैं दुकान चलाती हूँ और मेरे पास हर तरह का सामान है और यदि मुझे कपड़े चाहिए तो मैं अपने सामान को भानु भेड़ को देकर उससे कपड़े ले लूंगी जिससे उसकी और मेरी दोनों की जरूरतें पूरी हो जायेंगी।"

हरी हिरन बोला, "बिलकुल सही समझी हो।"

हर जानवर को समझ में आ गया था। अब हर जानवर एक दूसरे की मदद कर रहा था और उन्हें सिक्कों की जरूरत भी नहीं थी। राजा शेर सिंह ने जब इस योजना के बारे में सुना तो हरी हिरन को इनाम दिया।

।। समाप्त ।।

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