बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी आओ बच्चो सुनो कहानीराजेश मेहरा
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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।
सबसे पहले तो राजू ने उन चीजों को इकट्ठा किया और एक कपड़े में बाँध कर पास के नाले में फ़ेंक दिया। बीरू उसे उन चीजो को हाथ ना लगाने के लिए कहता रहा लेकिन उसने फिर भी उसकी बात नहीं मानी। उनको फेंकने के बाद राजू बोला, "अच्छा बताओ मुझे कुछ हुआ, ये सब अंधविश्वास है और कुछ नहीं। आओ, अब घर चलें।"
राजू जब घर पहुँचा तो उसके किसी दोस्त ने उसकी माँ को उसके टोटके के पास जाने की बात बता दी थी। घर पहुँचते ही उसकी माँ ने उसे बहुत डांटा और उसको नहलाने के बाद उसको पवित्र करने के लिए उसकी नजर उतारी। इस पर राजू बोला, "माँ, मुझे कुछ नहीं हुआ है आप ऐसे ही परेशान हो रही हो।"
उसकी माँ ने उसे डाँटते हुए कहा, "तुम्हें कुछ नहीं पता आज के बाद तू ऐसी किसी भी चीज से दूर रहेगा वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
राजू को उसकी माँ ने बड़ी मुश्किल से छोड़ा लेकिन वह इस टोटके को करने वाले को सबक सिखाना चाहता था ताकि उसकी माँ और सब लोगों को विश्वास हो कि ये सब अंधविश्वास है और कुछ नहीं। राजू अब सतर्क होकर ये पता लगाने में जुट गया कि ये सब करता कौन है।
बहुत दिनों के बाद लोगों की बातों से पता लगा कि उनके मोहल्ले की नंदी मौसी के यहाँ कोई औलाद नहीं थी इसलिए ही वह ये सब काम करती है और उससे ये काम उसके पास आने वाला एक साधू करवाता है। अब राजू और भी सतर्क हो गया तथा उस साधू का नंदी मौसी के घर में आने का इन्तजार करने लगा। करीब एक महीना बीत गया और अगली अमावस्या भी आने वाली थी। पूरे मोहल्ले में दोबारा से टोटका होने की बातें होने लगीं। अमावस्या से एक दिन पहले वो साधू नंदी मौसी के घर में करीब एक घंटा रहा और फिर वहाँ से चल दिया।
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