लोगों की राय

बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

Like this Hindi book 0

किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

राजू को चुप देखकर उन्होंने उसकी माँ से पूछा, "इसे क्या हुआ।"

राजू की माँ बोली, "आपने जो खाना ज्यादा मंगा लिया था उसके लिए वेटर से कुछ पूछ रहा था। वो वेटर सारे बचे खाने को फेंकने गया है इसलिए नाराज है।"

राजू बोला, "पापा, जितना खाना हमने छोड़ा है उतने में दो लोगों का पेट भर जाता।"

उसके पापा बोले, "बेटा, यदि हम इतना सोचने लगे तो हम खाना ही नहीं खा पाएंगे, कुछ थोड़ा बहुत तो बचता ही है।" इतना कहकर पापा बोले, "आओ चलें।"

राजू और उसकी माँ उनके पीछे चल दिए। इतने में राजू रेस्टोरेंट के मैनेजर के पास पहुँचा और बोला, "अंकल, आप रोज ही इस रेस्टोरेंट का खाना फेंकते हैं?" तो मैनेजर ने कहा, "हां बेटा, इतना तो हर कोई छोड़ ही देता है।"

राजू बोला, "अंकल, आपको पता है दुनिया में खाना न मिलने की वजह से कितने लोग मरते हैं।"

इस पर मैनेजर बोला, "बेटा, पता है लेकिन सबकी जिम्मेदारी हमारी थोड़ी है।"

लेकिन अंकल कल से आप इस फेकने वाले खाने को किसी को दीजिये और फिर उनके चेहरे पर जो मुस्कान आएगी वो आपको कहीं नहीं मिलेगी और जब वो इस खाने को खाकर आपको दुआएं देंगे तो आपको भी आपके इस काम पर गर्व होगा।

मैनेजर उस छोटे राजू की बात ध्यान से सुन रहा था और आश्चर्यचकित था। राजू बोला, "आप रुकिए ये खाना फेंकना मत।"

राजू भाग कर बाहर गया और वहाँ खड़े तीन-चार भिखारी बच्चों को लाया।"

राजू ने मैनेजर से कहा, "ये खाना इनको दीजिये।"

मैनेजर ने वह खाना उन गरीब भिखारी बच्चों को दिया तो वो लोग भूख के कारण उस खाने को जल्दी खा गए और वो अब मुस्कुरा रहे थे और मैनेजर को हाथ जोड़कर चले गए। वो बच्चे मस्ती से जा रहे थे।

राजू बोला, "देखा अंकल, कुछ नहीं करना पड़ा। बस उनको बुलाया और खिला दिया। इससे भोजन का आदर भी हुआ और गरीब का पेट भी भर गया।"

मैनेजर अब शर्मिंदा होकर बोला, "बेटा, तुमने मेरी आँखें खोल दीं। कल से मैं खाना नहीं फेंकूंगा और किसी गरीब को दूंगा।"

राजू की माँ और उसके पिता दूर से सब देख रहे थे उनकी आँखों में भी आंसू थे।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book