ई-पुस्तकें >> ऑथेलो (नाटक) ऑथेलो (नाटक)रांगेय राघव
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Othello का हिन्दी रूपान्तर
इआगो : क्या वे भी कभी अपने ऊपर से अधिकार खो सकते हैं! मैं उनके निकट खड़ा रहा हूँ और उनके समीप ही तोपों के गोले सेना पर बरसते रहे हैं, उन्होंने अपने भाई पर भी गोला चलाया है, किन्तु फिर भी मैंने उन्हें विचलित नहीं देखा। वे सदैव स्थिर चेतस थे। उनके इतने क्रुद्ध होने का कोई कारण अवश्य रहा होगा। मैं जाता हूँ उनके पास!
डैसडेमोना : मैं कहती हूँ ज़रूर जाओ!
(इआगो का प्रस्थान)
अवश्य ही राज्य-सम्बन्धी कोई बात है। या तो वेनिस से कोई सँवाद आया है या कोई गुप्त षड्यन्त्र है जो हाल में ही साइप्रस में पकड़ा गया है जिसने उनके दृढ़ चित्त को विचलित कर दिया है। महत्त्वपूर्ण घटनाओं से विचलित बुद्धि होकर मनुष्य साधारण विषयों में झगड़ पड़ते हैं, जो किसी अन्य अवसर पर उन्हें क्रुद्ध नहीं कर पाते। उनपर तो वास्तव में उन्हें असली क्रोध होता भी नहीं। देखो न! हमारी छोटी उंगली में भी दर्द होता है तो सारे शरीर को वेदना की अनुभूति होने लगती है। नहीं! हमें मनुष्यों को अतिमानव नहीं समझना चाहिए, न उनसे ऐसे व्यवहार की आशा ही करनी चाहिए जैसा कि दूल्हा दुल्हन से करता है। मुझे ही दण्ड मिलना चाहिए। इमीलिया! मैं ही उनको अनावश्यक रूप से उत्तेजित करने वाली हूँ क्योंकि मैं उन्हें कठोर कह रही हूँ, किन्तु अब मैं देखती हूँ मैंने उन पर अनजाने ही मिथ्या दोषारोपण किया है और वे निर्दोष हैं।
इमीलिया : ईश्वर से प्रार्थना करो कि किसी राज्य-विषयक बात से ही वे ऐसे हैं, न कि तुमपर ईर्ष्या या सन्देह के कारण।
डैसडेमोना : कैसा बुरा दिन है! मैंने तो उन्हें कभी भी कुद्ध नहीं किया।
मीलिया : किन्तु ईर्ष्यालु व्यक्ति तो ऐसे उत्तर से सन्तुष्ट नहीं होते। वे किसी विशेष कारण से तो ईर्ष्या करते नहीं, वे तो ऐसे होते ही हैं क्योंकि होते ही वे ईर्ष्यालु हैं। ईर्ष्या एक राक्षसी है, जो स्वयं-जात और स्वयं को खाकर ही जीवित रहती है।
डैसडेमोना : ईश्वर ऑथेलो के मस्तिष्क को इसके प्रवाह से बचाए रखें!
इमीलिया : ऐसा ही हो।
डैसडेमोना : मैं उन्हें देखती हूँ। कैसियो! तुम इधर-उधर घूम लो! यदि मैं उन्हें ठीक पाऊँगी तो फिर तुम्हारी बात चलाऊँगी और जहाँ तक मुझसे हो सकेगा तुम्हारे लिए प्रयत्न करूँगी।
कैसियो : मैं हृदय से आपका आभार स्वीकार करता हूँ देवी!
(डैसडेमोना और इमीलिया का प्रस्थान)
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