ई-पुस्तकें >> ऑथेलो (नाटक) ऑथेलो (नाटक)रांगेय राघव
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Othello का हिन्दी रूपान्तर
ऑथेलो : यह व्यक्ति बहुत ही ईमानदार और मनुष्य-चरित्र की गहराइयों को जानता है। यदि मैं उसे दुश्चरित्र पाता हूँ तो निश्चय ही उससे सम्बन्ध-विच्छेद कर लूँगा और यद्यपि इसमें मेरा हृदय विदीर्ण हो जाएगा, मैं उसे जीवन के क्षेत्र में जुटने के लिए अकेला छोड़ दूँगा। सम्भवत: मैं कला ही नहीं, वे गुण भी नहीं जानता जिनसे ये सुन्दरियाँ प्रभावित होती हैं, और फिर मेरी उम्र भी तो ढलान पर आ गई है। पर फिर भी ये सब मामूली बातें हैं। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो उसे खो ही चुका हूँ। मुझे धोखा दिया गया है और मुझे तो उससे घृणा करके ही सान्त्वना मिल सकती हैं। मैं एक मेंढक बनकर अन्धेरे और गन्दगी में रहना पसन्द करूँगा, न कि ऐसी स्त्री के साथ जो अन्यों से प्रेम करती है। और यह बड़े लोगों के साथ कितना बड़ा अभिशाप है कि छोटे लोगों की भाँति वे पीड़ा और दुःखों से मुक्त नहीं रहते। यह भाग्य तो भृत्यों की भाँति अवश्यम्भावी हैं; मेरी स्त्री परपुरुष से प्रेम करे! यह लो! वह फिर आ रही है।
(डैसडेमोना और इमीलिया का प्रवेश)
यदि यह विश्वासघातिनी है तब ईश्वर ने नारी को अपनी आकृति में निर्माण करके अपना अपमान ही किया है। मैं इस पर विश्वास नहीं करता।
डैसडेमोना : ऑथेलो! तुम्हारे आमन्त्रित कुलीन द्वीपवासी प्रतीक्षा कर रहे हैं। भोजन तैयार है।
ऑथेलो : उफ़! मुझसे भूल हो गई।
डैसडेमोना : कैसी बात कर रहे हो? क्या तबीयत ठीक नहीं है?
ऑथेलो : मेरे सिर में दर्द हो रहा है।
डैसडेमोना : जागने के कारण ही हुआ है। अभी ठीक हो जाएगा। लाओ, मैं तुम्हारे सिर पर कपड़ा कसकर बाँध दूँ, घण्टे-भर में चला जाएगा।
ऑथेलो : नहीं, तुम्हारा रूमाल तो बहुत छोटा है।
(ऑथेलो रूमाल को हटाता है। रूमाल गिर जाता है।)
रहने दो! मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ।
डैसडेमोना : हाय! तुम्हारी तबीयत को न जाने क्या हो गया!
(ऑथेलो और डैसडेमोना का प्रस्थान)
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