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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117
आईएसबीएन :978161301295

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

ऑथेलो : एन्शेन्ट (इआगो) तुम उन्हें रास्ता बताओ, क्योंकि तुम इस स्थान से अधिक परिचित हो...

(इआगो और सेवकों का प्रस्थान)

और जब तक वह आती है, जिस ईमानदारी से मैं परमात्मा के सामने अपने अपराधों को स्वीकार करता हूँ, उसी भाँति आपके गम्भीर विचारार्थ बताऊँगा कि मैंने किन उपायों से उस सुन्दरी के प्रेम को प्राप्त किया, किस प्रकार वह मेरी बनी!

ड्यूक : ठीक है ऑथेलो! बता सकते हो।

ऑथेलो : उसके पिता मुझसे स्नेह करते थे और बहुधा अपने यहाँ निमन्त्रित करते थे। किस प्रकार मेरा पवित्र जीवन व्यतीत हुआ, यह बार-बार पूछा करते थे। वे विभिन्न युद्ध, घेरे और दुस्साहस के वर्णन सुनते थे; वे सब जो मैंने जीवन में स्वयं देखे थे। मैं अपने लड़कपन से अब तक की कहानियाँ उन्हें सुनाया करता था। और इसी में कभी मैं उन भयानक खतरों की बात सुनाता जिनमें से मैं बाल-बाल बचा था। कभी भूमि और समुद्र के वक्ष पर किए गए दुस्साहसों को सुनाता। विकराल घेरों में से जीवन-रक्षा के लोमहर्षक वर्णन सुनाता कि कब मैं बन्दी बना, किस प्रकार वहाँ से छूटा और इन यात्राओं में मुझ पर क्या कुछ गुज़रा। मुझे तो गुलाम बनाकर बेचा गया था। और इन्हीं यात्रा-विवरणों में बहुधा मुझे विशाल गुहाओं, रेगिस्तानों, अनगढ़ चट्टानों, खानों और गगनचुम्बी पर्वतों के वर्णन भी सुनाने पड़ते। वे नरभक्षी जो एक-दूसरे को खाते थे, और वे मनुष्य जिनके सिर उनके वक्षस्थल में उगते थे, कभी-कभी मेरा विषय बन जाते। डैसडेमोना को इन बातों में बड़ी रुचि थी; वह बड़े ध्यान से सुनती थी। और जब कभी घरेलू धन्धों के बुला भी ली जाती थी तो जहाँ तक हो सकता जल्दी से जल्दी काम करके आने की चेष्टा करती और मेरे जीवन की कथा को बड़े ध्यान से सुनती थी। अपने में उसकी इतनी दिलचस्पी देखकर एक बार मैंने ऐसा सुअवसर पाया जब वह मेरी जीवन-गाथा सुनने को तत्पर थी। उस समय उसने मुझसे प्रार्थना की कि मैं उसे अपनी पूरी जीवन-गाथा सुनाऊँ क्योंकि अभी तक वह जहाँ-तहाँ से ही सुन पाई थी, सो भी पूरा ध्यान देकर नहीं। मैंने स्वीकार कर लिया और तब अपने तारुण्य में झेली हुई कुछ दुःखद घटनाएँ सुनाईं। वह रोने लगी। जब मेरी कथा समाप्त हुई, उसके मुख से लम्बी आहें निकलीं, मानो वे ही मेरे लिए उपहार थीं। उसने अत्यन्त गद्गद् स्वर से स्वीकार किया कि मेरी कथा अत्यन्त रोचक, विचित्र ही नहीं, वरन्, अद्भुत रूप से करुण भी थी। उसने कहा, अच्छा होता वह उसे नहीं सुनती, और फिर भी वह यही चाहती थी कि ऐसा व्यक्ति ही परमात्मा की असीम कृपा से उसका पति हो। उसने मुझे हृदय से धन्यवाद दिया और आभार स्वीकार करके कहा कि यदि कोई मेरा मित्र ही उसे प्यार करता हो तो मैं मित्र को भी यह कहानियाँ सुना दूँ, और ये कथाएँ ही उसका प्रेम जीतने के लिए काफी थीं। इससे मुझे प्रकट रूप से इंगित मिल गया और मैंने उसके सामने प्रेम प्रकट कर दिया। स्पष्ट ही जो खतरे मैंने उठाए थे, उनके कारण वह मुझसे प्रेम करती थी और मैं इस भावना से पराभूत हो गया कि वह मुझपर करुणा करती थी। यही है वह जादू, जिसका मैंने उसपर प्रयोग किया था। यह लीजिए, डैसडेमोना आ गई है; जो कुछ मैने कहा है, वह भी उसका समर्थन करेगी।

(डैसडेमोना, इआगो और सेवकों का प्रवेश)

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