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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117
आईएसबीएन :978161301295

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

 

दृश्य - 2

(दुर्ग में शयनागार)

(डैसडेमोना शथ्या पर सो रही है; ऑथेलो दीप के साथ प्रवेश करता है।)

ऑथेलो : ओ मेरी आत्मा! यही कारण है, यही कारण है; ओ पवित्र नक्षत्रो! मैं तुम्हारे सामने इस जघन्य पातक को कहते हुए भी हिचकता हूँ। यह ऐसा ही कारण है। फिर भी मैं इसका रक्त नहीं बहाऊँगा। न इसकी हिम श्वेत त्वचा की ही हानि करूँगा और न इसकी स्निग्ध-श्वेत मर्मर की सुघड़ प्रतिमा जैसी देहयष्टि को ही विकृत करूँगा। किन्तु इसे मरना ही होगा, अन्यथा यह न जाने कितने लोगों को छलेगी! दीप बुझा दूँ और फिर यह दीपक भी बुझा दूँ! ओ ज्वलंत आलोक! यदि मैं तुझे बुझाता हूं और फिर मुझे खेद होता है तो फिर प्रदीप्त भी कर सकता हूँ। किन्तु ओ प्रकृति की कौशल की पराकाष्ठा! एक बार यदि मैंने तुझे बुझा दिया तो तुझे फिर से प्रदीप्त करने के लिए मैं फिर वह दैवी ( प्रोमेथियस एक देवता था, जिसने मनुष्यों को अग्नि दी थी। यहाँ प्रोमोथियस अग्नि को अर्थ दैवी ज्वाला है।) ज्वाला कहां से लाऊँगा जो तू फिर लक-लककर उठे। एक बार गुलाब को तोड़ लेने के बाद तो वह मुरझाएगा ही, क्योंकि मैं उसे जीवंत शक्ति नहीं दे सकता। इसलिए मैं इसे सूंघ तो लूँ! (डैसडेमोना का चुंबन लेता है।) इससे पहले कि वह मुरझा जाए, मैं इसे वक्ष पर ही सूँघ लूँ! आह! गंधित श्वास! तू तो मुझे विवश कर रही है कि मैं न्याय के खड्ग का संचालन भी रोक दूँ। एक बार और! यद्यपि न्याय कहता है कि मेरे लिए तेरी मृत्यु आवश्यक है, किन्तु यदि मृत्यु के उपरान्त भी तू ऐसी सुन्दर दिखाई दी तो मैं तुझे फिर भी प्यार करूँगा। एक चुंबन और, यही अन्तिम है! तुझ जैसा रूप इतना घातक और भयानक तो कभी नहीं था! तेरे भाग्य पर आँसू बहाए बिना मैं नहीं रह सकता, किन्तु मेरे आँसू मेरे हृदय को नहीं पिघलाते कि मैं अपना दृढ़ निश्चय ही बदल लूँ! आह निठुर आँसुओ! कितनी दैवी वेदना है! यह वहीं प्रहार करती है जहाँ इसका संचित प्रेम है! यह तो जाग रही है!

डैसडेमोना : कौन है? ऑथेलो?

ऑथेलो : हाँ डैसडेमोना!

डैसडेमोना : क्या आप शय्या पर आएँगे स्वामी?

ऑथेलो : आज रात तुमने प्रार्थना कर ली डैसडेमोना?

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