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सिद्ध  : वि० [सं०] [भाव० सिद्धि, सिद्धता] १. (काम या बात) जिसका साधन या साधना हो चुकी हो। अच्छी तरह पूरा किया हुआ। जैसे—उद्देश्य या कार्य सिद्ध होना। २. (आध्यात्मिक साधन) जो पूरा हो चुका हो। जैसे—मंत्र सिद्ध होना। ३. जिसने पूरे काम में पूरी दक्षता या सफलता प्राप्त की हो। दक्ष और सफल। जैसे—सिद्धहस्त। ४. (व्यक्ति) जिसने योग की सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हों। जैसा—सिद्ध-पुरुष, सिद्ध-महात्मा। (बात, मत या विषय) जो तर्क प्रमाण आदि के द्वारा ठीक या सत्य मान लिया गया हो या माना जाता हो। (एस्टैब्लिश्ड) जैसे—(क) अब यह सिद्ध हो चुका है कि भारी चीजें भी हवा में उड़ सकती हैं। (ख) अब यह सिद्ध हो चुका है कि अणु-शक्ति के द्वारा बहुत बड़े-बड़े काम सहज में पूरे हो सकते हैं। ५. जो प्रमाण, युक्ति आदि के द्वारा ठीक ठहर चुका हो। प्रमाणित। (प्रूव्ड) जैसा—उन्होंने अपना पक्ष सिद्ध कर दिखलाया। ६. जो नियमों, विधियों, सिद्धांतों आदि के अनुसार ठीक हो। शुद्ध। जैसा—व्याकरण से सिद्ध प्रयोग अथवा शब्द का रूप। ७. (खाद्य पदार्थ) जो आग पर रखकर उबाला, पकाया या सिझाया गया हो। जैसा—सिद्ध अन्न। ८. (कथन या वचन) जो ठीक ठहरा या पूरा उतरा हो। जैसा—किसी का आशीर्वाद (भविष्यवाणी) सिद्ध होना। ९. (वाद या विवाद) जिसका निर्णय या फैसला हो चुका हो। १॰. (ऋण या देन) जो चुकाया जा चुका हो। ११. जो नियम, सिद्धांत आदि के अनुसार ठीक तरह से होता हो। जैसा—जन्म सिद्ध अधिकार, स्वभाव-सिद्ध बात। १२. जो किसी अभिप्राय या उद्देश्य के अनुकूल कर लिया गया हो। जैसे—उसे तो तुमनें खाली बातों से ही सिद्ध कर लिया। १३. बनाकर तैयार किया हुआ। १४. प्रसिद्ध विख्यात। पुं० १. वह जो किसी प्रकार की साधना पूरी करके उसमें पारंगत हो चुका हो। साधना में निष्णात। २. वह जिसने तपस्या, योग आदि के द्वारा किसी प्रकार की अलौकिक दक्षता, शक्ति या सिद्धि प्राप्त कर ली हो, अथवा जो मोक्ष का अधिकारी हो चुका हो। ३. वह जिसने अणिमा, महिमा आदि आठों सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हों और इसीलिये जिसमें अनेक प्रकार के अलौलिक तथा चमत्कार पूर्ण कृत्य करने की शक्ति आ गई हो। विशेष—मध्य युग में ऐसे लोग अजर-अमर तथा परम पवित्र धर्मात्मा तथा डाकिनियों, देवों यक्षों के स्वामी माने जाते थे। ४. ऐसा त्यागी विरक्त जो अध्यात्मिक दृष्टि से बहुत बड़ा महात्मा या संत हो अथवा माना जाता हो। मुहा०—सिद्ध-साधक बनना=एक व्यक्ति का सिद्ध का स्वांग रचना और दूसरे लोगों का उसकी अलौकिक सिद्धियों की प्रशंसा करके उसका लाभ कराना। विशेष दे० ‘साधक’। ५. एक प्रकार के गण देवता। ६. बौद्ध योगी। (नाथ संप्रदाय के अथवा अन्य हिंदू योगियों से भिन्न) ७. अर्हत। जिन। ८. ज्योतिष में एक प्रक्रार का योग जो सभी कार्यों के लिए शुभ माना गया है। ९. गुड़। काला धतूरा। ११. सफेद सरसों।
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सिद्ध-काम  : वि० [सं० ब० स०] जिसकी कामनाएँ पूरी हो गई हों। सफल मनोरथ।
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सिद्ध-कामेश्वरी  : स्त्री० [सं० ष० त०] कामाख्या अर्थात दुर्गा की एक मूर्ति या रूप।
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सिद्ध-क्षेत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. वह स्थान जहाँ योग या तंत्र प्रयोग जल्दी सिद्ध हो। २. दंडक वन के एक विशिष्ट क्षेत्र का नाम।
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सिद्ध-गंगा  : स्त्री० [सं० ष० त०] आकाश-गंगा। मंदाकिनी।
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सिद्ध-गति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०, ब० स०] जैन मतानुसार वे कर्म जिनसे मनुष्य सिद्ध बनता या होता हो।
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सिद्ध-गुटिका  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार की कल्पित मंत्र-सिद्ध गोली जिसे मुँह में रख लेने से अदृश्य होने आदि की अदभुत शक्ति आ जाती है।
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सिद्ध-ग्रह  : पुं० [सं० मध्य प० स०] उन्माद या पागलपन का विशेष प्रकार।
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सिद्ध-जल  : पुं० [सं० ब० स०] औटाया हुआ पानी। २. काँजी।
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सिद्ध-देव  : पुं० [सं० कर्म० स०] शिव। महादेव।
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सिद्ध-धातु  : पुं० [सं० कर्म० स०] पारा। पारद।
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सिद्ध-नाथ  : पुं० [सं० ष० त०] सिद्धेश्वर। महादेव।
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सिद्ध-पक्ष  : पुं० [सं० कर्म० स०] किसी तर्क का वह अंश जो सिद्ध हो चुका हो और इसीलिये मान्य हो।
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सिद्ध-पथ  : पुं० [सं०] अंतरिक्ष।
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सिद्ध-पीठ  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. वह स्थान जहाँ योग या आध्यात्मिक अथवा तांत्रिक साधन सहज में सम्पन्न होता हो। २. कोई ऐसा स्थान जहाँ पहुँचने पर कोई कामना या कार्य प्रायः सहज में सिद्ध होता हो।
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सिद्ध-पुर  : पुं० [सं० ष० त०] एक कल्पित नगर जो किसी के मत से पृथ्वी के उत्तरी छोर पर और किसी के मत से पाताल में है। (ज्योतिष)
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सिद्ध-पुष्प  : पुं० [सं० ब० स०] करबीर। कनेर।
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सिद्ध-भूमि  : स्त्री० [सं० कर्म० स०, ष० त०] सिद्ध-पीठ। सिद्ध-क्षेत्र।
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सिद्ध-मातृका  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. एक देवी का नाम। २. एक प्रकार की प्राचीन लिपि।
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सिद्ध-यामल  : पुं० [सं०] तंत्र शास्त्र का एक प्रसिद्ध ग्रंथ।
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सिद्ध-योग  : पुं० [सं० मध्य० स०] ज्योतिष में एक प्रकार का योग जो सर्व कार्य सिद्ध करने वाला माना गया है।
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सिद्ध-योगी (गिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] शिव। महादेव।
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सिद्ध-रस  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. पारा। पारद। २. वह योगी जिसने पारा सिद्ध कर लिया अर्थात रसायन बना लिया हो।
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सिद्ध-रसायन  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह रसौषध जिसके सेवन से दीर्घ जीवन और यथेष्ट शक्ति प्राप्त होती है।
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सिद्ध-वस्ति  : पुं० [सं०] तैल आदि की वस्ति या पिचकारी। (आयुर्वेद)
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सिद्ध-विद्या  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] एक महाविद्या।
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सिद्ध-विनायक  : पुं० [सं० मध्य० स०] गणेश की एक मूर्ति।
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सिद्ध-शिला  : स्त्री० [सं० ब० स०] ऊर्ध्व लोक का एक स्थान। (जैन)।
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सिद्ध-सरित्  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. आकाश गंगा। २. गंगा।
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सिद्ध-सलिल  : पुं० [सं० ब० स०] काँजी। २. सिद्ध-जल।
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सिद्ध-साधक  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. शिव। २. कल्प-वृक्ष जो सब प्रकार के मनोरथ सिद्ध करने वाला माना गया है। ३. ऐसे दो व्यक्ति जिनमें से एक तो झूठ मठ सिद्ध या सत्पुरुष बन बैठा हो और दूसरा सबको उसकी सिद्धता विश्वास दिलाकर उसके फंदे में फसाता हो। विशेष—प्रायः ऐसा होता है कि कोई ढ़ोंगी और स्वार्थी व्यक्ति सिद्ध या महात्मा बनकर कहीं बैठ जाता है, और उसका कोई साथी लोक में उसका बड़प्पन या महत्व स्थापित करता फिरता और लोगों को लाकर उसके जाल में फसाँता है। इसी आधार पर उक्त पद अपने तीसरे अर्थ में प्रचलित हुआ है।
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सिद्ध-साधन  : पुं० [सं० ष० त०] १. सिद्ध प्राप्त करने के लिये योग या तंत्र की क्रिया करना। २. जो बात सिद्ध या प्रमाणित हो चुकी हो, उसे फिर से सिद्ध या प्रमाणित करना। ३. सफेद सरसों।
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सिद्ध-साधित  : वि० [सं० ब० स०] जिसने किसी कला, विद्या या शास्त्र का ठीक तरह से अध्ययन किये बिना ही केवल प्रयोग या व्यवहार के द्वारा उसमें थोड़ी बहुत योग्यता प्राप्त कर ली हो। अताई।
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सिद्ध-साध्य  : वि० [सं० ष० त०] १. जो सिद्ध किया जा चुका हो। प्रमाणित। २. जिसे संपादित कर दिया गया हो। पुं० एक प्रकार का मंत्र।
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सिद्ध-सिंधु  : पुं० [सं०] आकाश गंगा।
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सिद्ध-सेन  : पुं० [सं० तृ० स०] १. कार्तिकेय। २. संगीत में कर्णाटकी पद्धति का एक राग।
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सिद्ध-सेवित  : पुं० [सं० तृ० त०] शिव का एक रूप।
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सिद्ध-स्थाली  : स्त्री० [सं० ष० त०] सिद्ध योगियों की वह बटलोई जिसके विषय में यह माना जाता है कि उसमें इच्छानुसार अपेक्षित अन्न निकाला जा सकता है।
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सिद्ध-हस्त  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसने कोई काम करते-करते उसमें कुशलता प्राप्त कर ली हो। जिसका हाथ किसी काम में मँजा हो। २. जिसे कुछ विशेष प्रकार के काम करने का बहुत अच्छा अभ्यास हो।
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सिद्धई  : स्त्री० [सं० सिद्धि] पीसी और छानी हुई भांग। स्त्री० [सं० सिद्ध+ई (प्रत्य०)] सिद्धता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सिद्धक  : वि० [सं० सिद्ध+कन] कार्य सिद्ध करने वाला। पुं० १. सँभालू। सिंदुवार वृक्ष। २. शाल वृक्ष। साखू।
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सिद्धक-साधक  : पुं० दे० ‘सिद्ध-साधक’।
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सिद्धकारी (रिन्)  : वि० [सं० सिद्ध√कृ (करना)+णिनि] [स्त्री० सिद्धकारिणी] धर्मशास्त्रों के अनुसार आचरण करनेवाला।
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सिद्धता  : स्त्री० [सं० सिद्ध+तल्-टाप्] १. सिद्ध होने की अवस्था या भाव। सिद्धि। २. पूर्णता।
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सिद्धत्व  : पुं० [सं० सिद्ध+त्व]=सिद्धता।
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सिद्धर  : पुं० [?] एक ब्राम्हण जो कंस की आज्ञा से कृष्ण को मारने आया था।
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सिद्धा  : स्त्री० [सं० सिद्ध-टाप्] १. सिद्ध की स्त्री। देवांगना। २. एक योगिनी। ३. चन्द्रशेखर के मत से आर्याछन्द का १ ५वाँ भेद जिसमें १ ३गुरु और ३१ लघु होते हैं। ४. ऋद्धि नामक औषधि।
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सिद्धाई  : स्त्री० [सं० सिद्ध+हिं० आई] सिद्ध होने की अवस्था, गुण या भाव। सिद्धता।
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सिद्धांगना  : स्त्री० [सं० ष० त०] सिद्ध नामक देवताओं की स्त्रियाँ।
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सिद्धाग्नि  : [सं० सिद्ध+अग्नि] १. खूब जलती हुई अग्नि। २. ऐसी पवित्र अग्नि जो दूसरों को भी पवित्र और शुद्ध कर दे।
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सिद्धांजन  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित अंजन जिसके विषय में यह माना जाता है कि इसे आँख में लगा लेने से भूमि के नीचे की वस्तुएँ (गड़े खजाने आदि) भी दिखाई देने लगती हैं।
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सिद्धांत  : पुं० [सं० सिद्ध+अंत, ब० स०] १. किसी विषय का वह अंत अर्थात अंतिम निर्णय या निश्चय जो पूरी तरह से ठीक सिद्ध या प्रमाणित हो चुका हो और इसलिए जिसमें किसी प्रकार के परिवर्तन के लिए अवकाश न रह गया हो। २. किसी विषय में तर्क-वितर्क, विचार-विमर्श आदि के उपरांत निश्चित किया हुआ ऐसा मत जो सभी दृष्टियों से ठीक माना जाता हो। असूल। उसूल। (प्रिंसिपुल) ३. कला, विज्ञान, शास्त्र आदि के संबंध में ऐसी कोई मूल बात या मत जो किसी विद्वान द्वारा प्रतिपादित या स्थापित हो और जिसे बहुत से लोग ठीक मानते हैं। उपपत्ति। (थिअरी) ४. धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि क्षेत्रों में वे सुविचारित तत्त्व जिनका प्रचलन किसी विशिष्ट वर्ग में प्रायः सर्वमान्य होता है। मत। (डाक्ट्रिन) ५. कोई ऐसा ग्रन्थ जिसमें उक्त प्रकार की बातें या मत निरूपित हों। जैसे—सूर्य-सिद्धांत। ६. साधारण बोलचाल में किसी बात या विषय का तत्वार्थ या साराँश। मतलब की या सारभूत बात।
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सिद्धांत-वाद  : पुं० [सं० सिद्धांत√वद् (बोलना)+घञ्] यह विचार प्रणाली कि अपने सिद्धांत का दृढ़तापूर्वक पालन करना चाहिए।
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सिद्धांत-वादी (दिन्)  : वि० [सं० सिद्धांत√वद् (कहना)+णिनि] सिद्धांतवाद संबंधी। पुं० वह जो अपने मान्य सिद्धांतों के अनुसार चलता हो।
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सिद्धांतज्ञ  : वि० [सं० सिद्धांत√ज्ञा (जानना)+क] सिद्धांत की बात जानने वाला। तत्वज्ञ। विद्वान। २. दे० ‘सिद्धांतवादी’।
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सिद्धांताचार  : पुं० [सं० ष० त०] तांत्रिको का आचार अर्थात एकाग्र चित्त से शक्ति की उपासना करना।
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सिद्धांतित  : भू० कृ० [सं० सिद्धांत+इतच्] तर्क आदि के द्वारा प्रमाणित। साबित।
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सिद्धांती  : वि० [सं० सिद्धांत] १. शास्त्रों आदि के सिद्धांत जानने वाला। २. अपने सिद्धांत पर दृढ़ रहने वाला। पं० तर्क शास्त्र का ज्ञाता या पंडित।
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सिद्धांतीय  : वि० [सं० सिद्धांत+छ+ईय] सिद्धांत-संबंधी।
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सिद्धान्न  : पुं० [सं० कर्म० स०] पकाया हुआ अन्न। जैसा—भात, रोटी आदि।
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सिद्धापगा  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. आकाशगंगा। २. गंगा नदी।
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सिद्धापिका  : स्त्री० [सं०] जैनों की चौबीस देवियों में से एक जो अर्हता का आदेश कार्यान्वित करती है।
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सिद्धांबा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] दुर्गा।
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सिद्धारि  : पु० [सं० ब० स०] एक प्रकार का मंत्र।
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सिद्धार्थ  : वि० [सं० ब० स०] जिसका अर्थ अर्थात उद्देश्य या कामनाएँ पूर्ण हो चुकी हों। सफल मनोरथ। पूर्णकाम। पुं० १. गौतम बुद्ध का एक नाम। २. स्कंद का कार्तिकेय का एक अनुचर। ३. ज्योतिष में, साठ संवत्सरों में से एक। ४. महावीर स्वामी के पिता। (जैन)
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सिद्धार्थक  : पुं० [सं० सिद्धार्थ+कन्] १. श्वेत सर्षप। सफेद सरसों। २. एक प्रकार का मरहम।
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सिद्धार्था  : स्त्री० [सं० सिद्धार्थ-टाप्] १. जैनों के चौथे अर्हत की माता का नाम। २. सफेद सरसों।
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सिद्धासन  : पुं० [सं० मध्य० स०] ८४ आसनों में से एक। (हठ योग)
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सिद्धि  : स्त्री० [सं०] १. कोई काम या बात सिद्ध करने या होने की अवस्था या भाव। कोई काम ठीक तरह से पूरा करना या होना। २. कार्य का ठीक रूप में पूरा उतरना। ३. कोई ऐसा उद्देश्य पूरा होना अथवा किसी ऐसे लक्ष्य तक पहुँचना जिसके लिए विशेष परिश्रम और प्रयत्न किया गया हो। (अटेनमेंट) ४. ऐसी विशिष्ट क्षमता योग्यता या स्थिति जो उक्त प्रकार के परिश्रम या प्रयत्न के फल स्वरूप प्राप्त हुई हो। (अटेन्मेन्ट) ५. परिणाम या फल के रूप में होने वाली प्राप्ति, लाभ या सफलता। जैसा—इस प्रकार की कहा-सुनी से तो कोई सिद्धि होगी नहीं। ६. ऐसा तथ्य या निर्णय जिसके ठीक होने में कोई संदेह न रह गया हो। ७. वाद-विवाद, व्यवहार आदि का अंतिम निर्णय। झगड़े या मुकदमें का फैसला। ८. किसी प्रकार की समस्या की मीमांसा। ९. आपस में होने वाला किसी प्रकार का निर्णय। निश्चय। १॰. नाट्यशास्त्र में, वह स्थिति जिसमें कोई उद्देश्य पूरा करने वाले साधनों के प्रस्तुत होने का उल्लेख होता है। ११. छंदशास्त्र में छप्पय के ४१ वें भेद का नाम जिसमें ३॰ गुरु और ९२ लघु वर्ण और कुल १५२ मात्राएँ होती हैं। १२. तपस्या, तांत्रिक, उपासना, हठयोग की साधना आदि के फलस्वरूप साधक को प्राप्त होने वाली कोई विशिष्ट प्रकार की अलौकिक या लोकोत्तर क्षमता या शक्ति। विशेष-योग साधन से प्राप्त होने वाली ये आठ सिद्धियाँ कही गई हैं—अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। बौद्ध तंत्रों के अनुसार आठ सिद्धियाँ ये हैं—खड़्ग, अंजन, पादलेप, अंतर्धान, रस-रसायन, खेचर, भूचर, और पाताल। १३. खाघ पदार्थ या भोजन का आग पर पकाया जाना या पक कर तैयार होना। १४. दक्ष-प्रजापति की कन्या जो धर्म को ब्याही थी। १५. गणेश की एक पत्नी का नाम। १६. दुर्गा का एक नाम। १७. ऋण या परिशोध। कर्ज चुकता होना। १८. कार्य कुशलता। क्षमता। पटुता। १९. बुद्धि। २॰. सुख-समृद्धि। २१. मुक्ति। मोक्ष। २२. ऋद्धि या वृद्धि नामक औषधि। २३. विजया। भाँग।
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सिद्धि-गुटिका  : स्त्री० [सं० मध्य० स०]=सिद्ध गुटिका।
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सिद्धि-भूमि  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. ऐसी भूमि जहाँ लोगों को सिद्धियाँ प्राप्त हुई हों। सिद्धि-स्थान। २. ऐसा स्थान जहाँ तपस्या या धार्मिक साधन करने पर सहज में अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
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सिद्धि-योग  : पुं० [सं० ष० त०] ज्योतिष में, एक प्रकार का योग जो सब कार्य सहज में सिद्ध करने वाला माना जाता है।
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सिद्धि-योगिनी  : स्त्री० [सं०]=सिद्ध-योगिनी।
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सिद्धि-रस  : पुं०=सिद्ध-रस।
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सिद्धि-स्थान  : पुं० [सं० ष० त०] १. पुण्य स्थान। तीर्थ। २. आयुर्वेद के ग्रन्थों में, वह अंश जिसमें चिकित्सा-संबंधी बातों का विवेचन होता है। ३. दे० ‘सिद्धि-पीठ’ और ‘सिद्धि-भूमि’।
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सिद्धिद  : वि० [सं० सिद्धि√दा (देना)+क] सिद्धि देने वाला। पुं० १. वटुक भैरव का एक नाम। २. पुत्र-जीव नामक वृक्ष।
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सिद्धिदाता (तृ)  : वि० [सं० सिद्धि√दा (देना)+तृच्, ब० स०] [स्त्री० सिद्धिदात्री] सिद्धि देने या कार्य सिद्धि कराने वाला। पुं० गणेश का एक नाम।
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सिद्धीश्वर  : पुं० [सं० ष० त०] १. शिव। महादेव। २. एक प्राचीन पुण्य क्षेत्र।
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सिद्धेश्वर  : पुं० [सं० ब० स० या कर्म० स०] [स्त्री० सिद्धेश्वरी] १. बहुत बड़ा सिद्ध। महायोगी। २. महादेव। शिव। ३. गुलतुर्रा। शंखोदरी।
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सिद्धोदक  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्राचीन तीर्थ का नाम। २. काँजी।
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सिद्धौघ  : पुं० [सं० ब० स०] तांत्रिक के आचार्यों या गुरुओं का एक वर्ग।
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