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साधना :
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स्त्री० [सं०] १. कोई कार्य सिद्ध या संपन्न करने की क्रिया। साधन। २. ऐसी आराधना तथा उपासना जो विशेष कष्ट सहन, परिश्रम तथा मनोयोगपूर्वक बहुत दिनों तक करनी पड़ती हो, अथवा जिसमें किसी विशिष्ट प्रकार की सिद्ध प्राप्त होती हो। जैसे—तंत्र या योग की साधना। ३. उक्त के आधार पर किसी बहुत बड़े तथा महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए विशेष त्याग, परिश्रम तथा मनोयोगपूर्वक बहुत दिनों तक किया जानेवाला प्रयत्न या प्रयास। जैसे—अधिकतर बड़े बड़े आविष्कार विशिष्ट साधना करने से होते हैं। स० [सं० साधना] १. विशेष परिश्रम तथा प्रयत्नपूर्वक निरंतर कोई कार्य करते हुए उसमें पारंगत या सिद्धहस्त होना। जैसे—योग साधना। २. किसी काम या बात का इस प्रकार अभ्यास करना कि वह ठीक तरह से, बहुत सहज में स्वाभाविक रूप से सम्पादित होने लगे। जैसे—दम साधना=दम या साँस रोकने का अभ्यास करना। ३. किसी चीज को ऐसी स्थिति में लाना कि वह ठीक तरह से और संतुलित रूप से अपने स्थान पर रहकर पूरा काम कर सके। जैसे—(क) गुड्डी या पतंग साधना=उसमें चिप्पी या पुल्ला लगाकर उसे संतुलित करना। (ख) तराजू या बटखरा साधना=यह देखना कि तराजू या बटखरा ठीक या पूरा तौलता है या नहीं। (ग) बाइसिकिल पर चढ़ने या रस्से पर चलने में शरीर साधना=शरीर को ऐसी अवस्था में रखना कि वह इधर-उधर गिरने न पाए। ४. शुद्ध या सत्य प्रमाणित करना। ५. निश्चित या पक्का करना। ठहराना। ६. किसी को अपनी ओर मिलाकर अपने अनुकूल या वश में करना। उदा०—गाधिराज को पुत्र साधि सब मित्र शत्रु बल।—केशव। स० [स० संधान, पु० हिं० संधानना] निशान लगाना। संधान करना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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