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शब्द का अर्थ
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साँग :
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स्त्री० [सं० शक्ति] [अल्पा० साँगी] १. एक प्रकार की छोटी पतली बरछी। २. एकत प्रकार का औजार जो कूआँ खोदते समय पानी फोड़ने के काम में आता है। ३. भारी बोझ उठाने या खिसकाने के काम में आनेवाला एक प्रकार का डंडा। पुं० [हिं० स्वाँग] १. स्वाँग। २. जाटों में प्रचलित एक प्रकार का गीत काव्य। |
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सांग :
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वि० [सं० स+संग] अंग या अंगों से युक्त। पद—सांगोपांग। (दे०) |
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सांगतिक :
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वि० [सं० संगति+ठक्—इक] १. संगति-संबंघी। २. सामाजिक। पुं० १. अतिथि। २. वह जो किसी कारबार के सिलसिले में आया हो। अपरिचित। अजनबी। |
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सांगम :
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पुं० [सं० संगम+अण्]=संगम। |
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साँगर :
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पुं० [?] शमी वृक्ष। (राज०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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साँगरी :
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स्त्री० [फा० जंगार] कपड़े रँगने का एक प्रकार का रंग जो जंगार अर्थात् तूतिये से निकाला जाता है। |
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साँगी :
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पुं० [हिं० साँग] वह जो साँग नामक गीत काव्य लोगों को सुनाता हो। स्त्री० छोटी साँग (बरछी)। स्त्री० [सं० शंकु] १. बैलगाड़ी में गाड़ीवान के बैठने का स्थान। २. एक्के, गाड़ी आदि में जाली का वह छींका जिसमें छोटी छोटी आवश्यक चीजें रखी जाती हैं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सांगीत :
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पुं० [सं०] [संगीकिता। (ऑपेरा) पुं०=सेनापति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सांगोपाग :
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वि० [सं० अंग+उपांग] जो अपने सभी अंगों और उपांगों अव्य १. सभी अंगों और उपांगों सहित। २. अच्छी और पुरी तरह से। |
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सांग्रामिक :
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वि० [सं०] १. संग्राम या युद्ध-संबंधी। २. जो अस्त्र-शस्त्रों से युक्त या सम्पन्न हो। |
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