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साँच  : वि० [सं० सत्य] [स्त्री० साँची]=सच्चा (सत्य)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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साँचना  : स० [सं० संचय] १. संचित या एकत्र करना। उदा०—दे० ‘भाँड़ा’ (संपत्ति) में। २. किसी चीज में भरना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)अ० [?] १. किसी बड़े का कहीं आना। पदार्पण करना। पधारना। (गुज०, राज०) उदा०—सामलो घरे नू म्हारे साँचु दे।—मीराँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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साँचर  : पुं० [सं० सौंवर्चल] एक प्रकार का नमक। सौवर्चल लवण।
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साँचला  : वि० [हिं० साँच+ला (प्रत्य०)] [स्त्री० साँचली] जो सच बोलता हो। सच्चा। सत्यवादी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सांचा  : पुं० [सं० संचक] १. वह उपकरण जिसमें कोई तरल या गाढ़ा पदार्थ ढालकर किसी विशिष्ट आकार-प्रकार की कोई चीज बनाई जाती है। (मोल्ड) जैसे—ईंट या मूर्तियाँ बनाने का साँचा। मुहा०—(किसी चीज का) साँचे में ढला होना=अंग-प्रत्यंग से बहुत सुन्दर होना। रूप, आकार, आदि में बहुत सुन्दर होना। साँचे में ढालना=आकर्षक, प्रशंसनीय या सुन्दर रूप देना। उदा०—हमारे इश्क ने साँचे में तुमको ढाला है।—दाग। २. वह उपकरण जिसके ऊपर कोई चीज रख या लगाकर उसे कोई नया आकार या रूप दिया जाता है। कलबूत। फरमा। जैसे—जूता या पगड़ी बनाने का साँचा। विशेष—वस्तुतः साँचा वही होती है जिसका विवेचन ऊपर पहले अर्थ में किया गया है। दूसरे अर्थ में प्रयाः लोग भूल से उसका उपयोग करते हैं। दूसरा रूप वस्तुतः ‘कलबूत’ कहलाता है। ३. वह छोटी आकृति जो कोई बड़ी आकृति बनाने से पहले नमूने के तौर पर तैयार की जाती है और जिसके अनुकरण पर दूसरी बड़ी आकृति बनाई जाती है। प्रतिमान। (मॉडल) ४. कपड़े पर आकृति बनाने का रंगरेजों का ठप्पा।
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सांचारिक  : वि० [सं० संचर+ठक्—इक] १. संचार-संबंधी। २. जो संचार करता हो। ३. चलता हुआ। जंगम।
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साँचिया  : पुं० [हिं० साँचा+इया (प्रत्य०)] १. किसी चीज का साँचा बनानेवाला कारीगर। २. साँचे में ढालकर चीजें बनानेवाला कारीगर।
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साँचिला  : वि०=साँचा (सच्चा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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साँची  : स्त्री० [?] छपाई का वह प्रकार जिसमें पंक्तियाँ बेड़े अर्थात् लम्बाई के बल छापी जाती थीं। विशेष—अब यह प्रकार बहुत कुछ उठ-सा चला है। पुं० [साँची नगर] एक प्रकार का पान और उसकी बेल।
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