शब्द का अर्थ
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शार :
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वि० [सं०√शृ+घञ्] १. चितकबरा। कई रंगों का। २. पीला। ३. नीले-पीले और हरे रंग का। पुं० १. एक प्रकार का पासा। २. वायु। हवा। ३. हिंसा। स्त्री० कुश। कुशा। |
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शारअ :
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पुं० [अ० शारिअ] १. बड़ी सड़क। राजमार्ग। २. लोगों को धर्म का मार्ग बतलानेवाला। धर्मशास्त्री। |
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शारक :
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स्त्री० [फा० मिलाओ, सं० शारिका] मैना। |
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शारंग :
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पुं०=सारंग। |
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शारंग-धनुष :
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पुं० [सं० ब० स०] १. सारंग नामक धनुष से सुशोभित अर्थात् विष्णु। २. श्रीकृष्ण। |
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शारंग-पानी :
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पुं०=शारंगपाणि। |
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शारंग-भृत् :
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पुं० [सं० शारंग√भृ (रखना)+क्विप्-तुक्] १. सारंग धनुष को धारण करने वाले विष्णु। २. श्रीकृष्ण। |
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शारंगक :
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पुं० [सं० शारंग+कन्] एक प्रकार का पक्षी। |
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शारंगपाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. हाथ में सारंग नामक धनुष धारण करनेवाले विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. रामचन्द्र। |
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शारंगवत :
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पुं० [सं० शारंग+मतुप-म=व] कुरु वर्ष नामक देश। |
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शारंगष्टा :
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स्त्री० [सं० शारंग, स्था (ठहरना)+क-टाप्] १. काक जंघा। २. मकोय। ३. गुंजा। घुँघची। |
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शारंगी :
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स्त्री० [सं० शारंग-ङीष्] सारंगी नामक बाजा। |
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शारणिक :
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वि० [सं० शरण+ठक्-इक] १. शरण देनेवाला। २. शरण चाहनेवाला। शरणार्थी। |
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शारद :
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वि० [सं० शरद्+अण्] १. शरद संबंधी। २. शरद ऋतु में होनेवाला। ३. नवीन। ४. वार्षिक। ५. शालीन। पुं० १. वर्ष। साल। २. बादल। मेघ। ३. सफेद कमल। ४. मौलसिरी। ५. काँस नामक तृण। ६. हरी मूँग। ७. एक प्रकार का रोग। |
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शारदा :
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स्त्री० [सं० शारद-टाप्] १. सरस्वती। २. भारत की एक प्राचीन लिपि जो दसवें शताब्दी के लगभग पंजाब और कश्मीर में प्रचलित हुई थी। आज-कल की कश्मीरी, गुरुमुखी और टाकरी लिपियाँ इसी से निकली हैं। ३. एक प्रकार की वीणा। ४. दुर्गा। ५. ब्राह्मी। ६. अनंतमूल। |
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शारदाभरण :
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पुं० [सं० ब० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग। |
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शारदिक :
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पुं० [सं० शरद्+ठञ्-इक] १. शरद् ऋतु में होनेवाला ज्वर। २. शरद् की धूप। ३. श्राद्ध। ४. बीमारी। रोग। |
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शारदी :
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स्त्री० [सं० शारद-ङीष्] १. जलपीपल। २. छतिवन। सप्तपर्णी। ३. आश्विन मास की पूर्णिमा। पुं० [सं० शारदिन्] १. अपराजिता। २. सफेद कमल। ३. अन्न, फल आदि। वि० शरद काल का। |
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शारदीय :
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वि० [सं० शरद+छण्-ईय] [स्त्री० शारदीय] शरद्काल का। शरद ऋतु संबंधी। जैसे—शरदीय नवरात्र। |
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शारदीय महापूजा :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] शरद्काल में होनेवाली दुर्गा की पूजा। नवरात्रि की दुर्गापूजा। |
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शारद्य :
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वि० [सं० शारद्+यत्] शरद् काल का। शरद् ऋतु संबंधी। |
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शारि :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+इञ्] १. पासा, शतरंज आदि खेलने की गोटी। मोहरा। चौसर, शतरंज आदि की विसात। कपट। छल। ४. मैना पक्षी। ५. एक प्रकार के गीत। |
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शारिका :
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स्त्री० [सं० शारि+कन्-टाप्] १. मैना चिड़िया। २. चौसर शतरंज आदि के खेल। ३. सारंगी बजाने की कमानी। वीणा, सारंगी आदि कोई बाजा। ५. दुर्गा। |
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शारिका कवच :
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पुं० [सं० ष० त०] दुर्गा का एक कवच जो रुद्रयामल तन्त्र में है। |
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शारित :
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वि० [सं० शारि+इतच्] चित्र-विचित्र। रंग-बिरंगा। |
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शारिपट्ट :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शतरंज, चौसर आदि खेलने की बिसात। |
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शारिफल :
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पुं० [सं० ष० त० स०]=शारिपट्ट। |
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शारिवा :
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स्त्री० [सं० शारि√वन् (पृथक् करना)+ड-टाप्]अनंतमूल। सालसा। दुरालभा। २. जवासा। धमासा। |
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शारी :
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स्त्री० [सं० शारि-ङीष्] १. कुश नामक घास। २. एक प्रकार का पक्षी। २. मूँज। पुं० १. गोटी। मोहरा। २. गेंद। |
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शारीर :
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वि० [सं० शरीर+अण्] १. शरीर संबंधी। शरीर का। २. शरीर से उत्पन्न। पुं० १. जीवात्मा। २. साँड़। ३. गृह। मल। |
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शारीर विज्ञान (शास्त्र) :
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पुं० [सं० ब० स०] वह शास्त्र जिसमें जीवों की शारीरिक रचना और उनके बाहरी तथा भीतरी सभी अंगों, अस्थियों, नाड़ियों और उनके कार्यों आदि का विवेचन होता है। (एनाटमी)। |
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शारीर शास्त्र :
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पुं० [सं०] आधुनिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें प्राणियों और वनस्पतियों के अंगों और उपांगों का व्यवच्छेदन करके उनकी क्रियाओं आदि का अध्ययन किया जाता है (एनाटमी)। |
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शारीर-विद्या :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०]=शरीर विज्ञान। |
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शारीरक :
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वि० [सं० शरीर+कन्-अण्] १. शरीर से उत्पन्न। २. शरीर संबंधी। ३. शरीर में स्थित। पुं० १. आत्मा। २. आत्मा संबंधी। अन्वेषण। |
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शारीरक भाष्य :
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पुं० [सं० मध्य०, स०] शंकराचार्य का किया हुआ ब्रह्मसूत्र का भाष्य। |
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शारीरक-सूत्र :
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पुं० [सं० कर्म० स०] वेदव्यास कृत वेदांत सूत्र। |
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शारीरतत्त्व :
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पुं० [सं० शरीर-तत्त्व, ष० त० स०+अण्] शरीर विज्ञान। |
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शारीरव्रण :
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पुं० [सं० ब० स०] वह रोग जो वात, पित्त, कफ और रक्त के विकार से उत्पन्न हो। |
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शारीरिक :
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वि० [सं० शरीर+ठक्-इक] १. शरीर-संबंधी। २. भौतिक। |
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शारीरिकीय :
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वि० [सं० शारीरिक+छ-ईय]=शारीरिक। |
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शारीरिविधान :
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पुं० [सं० ब० स०] १. वह शास्त्र जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि जीव किस प्रकार से उत्पन्न होते और बढ़ते है। २. शारीर विज्ञान। |
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शारुक :
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वि० [सं०√शृ (हिंसा करना)+उकञ्] हत्या का नाश करनेवाला। |
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शार्क :
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पुं० [सं० शृ+कन्—अण्] चीनी। शर्करा। स्त्री० [अं०] एक प्रकार की बड़ी हिंसक मछली जो समुद्रों में रहती है। |
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शार्कक :
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पुं० [सं० शार्क+कन्] १. दूध का फेन। दुग्धफेन। २. चीनी का डला। ३. मांस का टुकड़ा। |
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शार्कर :
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पुं० [सं० शर्करा+अण्] १. दूध का फेन। २. लोध। ३. कंकरीली या पथरीली जगह। वि० १. जिसमें कंकड़, पत्थर आदि हों। २. शर्करा या चीनी से बना हुआ। |
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शार्करक :
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पुं० [सं० शार्कर+कन्] १. वह स्थान जो कंकड़ों और पत्थरों से भरा हो। कंकरीली-पथरीली जगह। २. चीनी बनाने का स्थान। खंडसार। वि० कंकड़ पत्थर आदि से भरा हुआ। |
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शार्करमय :
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पुं० [सं० शार्कर-मयट्] प्राचीन काल की एक प्रकार की शराब जो चीनी और जौ से बनाई जाती थी। |
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शार्करी-धान :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्राचीन देश जो उत्तर दिशा में था। |
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शार्करीय :
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वि० [सं० शर्करा+छण्-ईय] शार्करीक। |
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शार्ग :
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पुं० [सं० शुंग+अण्] १. धनुष। कमान। २. विष्णु के हाथ में रहनेवाला धनुष। ३. अदरक। आदी। ४. एक प्रकार का साग। ५. धनुर्धारी। वि० १. श्रृंग-सम्बन्धी। श्रृंग का। २. सींग का बना हुआ। |
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शार्गंक :
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पुं० [सं० शार्ग+कन्] पक्षी। चिड़िया। |
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शार्गंधन्वा (न्वन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष चलाता हो। कमनैत। |
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शार्गधर :
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पु० [सं० ष० त० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। |
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शार्गपाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष चलाता हो। कमनैत। |
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शार्गंभृत् :
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पुं० [सं० शार्ग्र√भू+क्विप्—तुक्] विष्णु। |
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शार्गवैदिक :
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पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का स्थावर विष। |
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शार्गांयुध :
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पुं० [सं० ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. धनुर्धारी। कमनैत। |
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शार्गी (ग्ङिन्) :
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पुं० [सं० शार्ग्ङ+इनि] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. धनुर्धर। कमनैत। |
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शार्गेष्टा :
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स्त्री० [सं० शार्ग√स्था (ठहरना)+क-टाप्] १. काक जंघा। २. घुँघची। |
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शार्गेष्ठा :
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स्त्री० [सं०] १. महाकरंज। २. लता करंज। |
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शार्दुल-कंद :
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पुं० [सं० ब० स०] जंगली प्याज। |
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शार्दूल :
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पुं० [सं०√शृ (हिंसा करना)+उलच्-दुकच्, निपा० सिद्ध] १. चीता। बाघ। २. केसरी। सिंह। ३. राक्षस। ४. शरभ नामक जंतु। ५. एक प्रकार का पक्षी। ६. यजुर्वेद की एक शाखा। ७. चित्रक या चीता नामक वृक्ष। ८. दोहे का एक भेद जिसमें ६ गुरु और ३६ लघु मात्राएं होती हैं। वि० सर्वश्रेष्ठ। |
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शार्दूल-ललित :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसका प्रत्येक पद अठारह अक्षरों का होता है और उनका क्रम इस प्रकार है-म, स, ज, स, त, स। |
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शार्दूल-लसित :
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पुं० [सं० ब० स०]=शार्दूलललित। |
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शार्दूल-वाहन :
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पुं० [सं० ब० स०] एक जिन (जैन)। |
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शार्दूल-विक्रीडित :
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पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसका प्रत्येक पद १९ अक्षरों का होता है। उनका क्रम इस प्रकार है-म, स, ज, स, त, त, एक गुरु। |
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शार्दूलज :
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पुं० [सं० शार्दूल√जन् (उत्पन्न करना)+ड] व्याघ्र-नख नामक गंध-द्रव्य। वि० शार्दूल से उत्पन्न। |
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शार्यात :
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पुं० [सं० शर्यात्य+अण्] १. वैदिक काल के एक प्राचीन राजर्षि। २. एक प्रकार का साग। |
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शार्वर :
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पुं० [सं० शर्वर+अण्] बहुत अधिक अंधकार। |
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शार्वरिक :
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वि० [सं० शर्वरी+ठक्-इक] रात्रि संबंधी। रात का। |
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शार्वरी :
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स्त्री० [सं० शर्वरी+अण्-ङीष्] १. रात। २. लोच। पुं० [सं०शार्वरिन्] बृहस्पति के साठ संवत्सरों में से ३४वाँ संवत्सर। |
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