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व्याख्या  : स्त्री० [सं० वि+आ√ख्या√अङ्+टाप्] [भू० कृ० व्याख्यात] १. किसी कठिन या दुरूह उक्ति,पद वाक्य या विषय को अधिक बोधगम्य सरल या सुगम रूप से समझाने के लिए कही जानेवाली बात या किया जानेवाला विवेचन। किसी जटिल वाक्य आदि के अर्थ का स्पष्टीकरण। टीका। (एक्सप्लेनेशन)। २. किसी वाक्य, कथन आदि का अपनी बुद्धि या अपने दृष्टिकोण से लगाया जाने वाला अर्थ। अनुवचन। अर्थयन। (इन्टरप्रेटेशन)। ३. किसी विषय का कुछ विस्तार से किया हुआ वर्णन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
व्याख्यागम्य  : वि० [सं० तृ० त०] १. जिसकी व्याख्या हो सकती हो। २. जो व्याख्या होने पर ही समझ में आ सकता हो। पुं० वादी के अभियोग का ठीक-ठीक उत्तर न देकर इधर-उधर की बातें कहना।
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व्याख्यात  : भू० कृ० [सं० वि+आ√ख्या (प्रकाशित करना)+क्त] १. जिसकी व्याख्या हुई हो या की गई हो। २. जिसकी टीका हो चुकी हो। ३. वर्णित।
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व्याख्यातव्य  : वि० [सं० वि+आ√ख्या+तव्यम्] जिसकी व्याख्या करने की आवश्यकता हो।
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व्याख्याता (तृ)  : पुं० [सं० वि+आ√ख्या+तृच] १. वह जो किसी विषय की व्याख्या करता हो। व्याख्या करनेवाला। २. वह जो व्याख्यान देता या भाषण करता हो।
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व्याख्यान  : पुं० [सं० वि+आ√ख्या+ल्युट-अन] १. किसी गूढ़ या गंभीर बात की व्याख्या करने की क्रिया या भाव। २. ऐसा ग्रंथ जिसमें किसी धार्मिक या लौकिक विषय के किसी कठिन ग्रन्थ या गूढ़ विषय की व्याख्या की गई हो। ३. किसी गूढ विषय के संबंध में विस्तार-पूर्वक कही जानेवाली बातें। भाषण। वक्तृता। (लेक्चर)
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व्याख्यानशाला  : स्त्री [सं० ष० त०] वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार के व्याख्यान आदि होते हों।
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