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वेष्ट  : पुं० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+घञ्] १. वृक्ष का किसी प्रकार का निर्यास। २. गोद। ३. धूपसरल नामक पेड़। ४. सुश्रुत के अनुसार मुँह में होनेवाला एक प्रकार का रोग। ५. ब्रह्म। ६. आकाश। ७. पगड़ी।
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वेष्टक  : वि० [सं०√वेष्ट्+ण्वुल्-अक] चारों ओर से घेरनेवाला। पुं० १. छाल। वल्कल। ३. कुम्हड़ा। ४. उष्णीय। पगड़ी। ४. चहार-दीवारी। परकोटा। ५. दे० वेष्ट।
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वेष्टन  : पुं० [सं०√वेष्ट+ल्युट-अन] १. कोई चीज किसी दूसरी चीज के चारों ओर लपेटना। २. इस प्रकार लपेटी जानेवाली चीज। ३. पगड़ी। ४. मुकुट। ५. कान का छेद।
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वेष्टनक  : पुं० [सं० वेष्टन√कै (प्रकाश करना)+क] कामशास्त्र में एक प्रकार का रतिबंध।
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वेष्टव्य  : वि० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+तव्यत्] घेरे या लपेटे जाने के योग्य।
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वेष्टसार  : पुं० [सं० ब० स०] १. श्रीवेष्ट। गंधबिरोजा। २. धूपसरल नामक वृक्ष।
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वेष्टित  : भू० कृ० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+क्त] १. चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ। २. कपड़े, रस्सी आदि से लिपटा या लपेटा हुआ। ३. रुका या रोका हुआ। रुद्ध। पुं० १. पगड़ी। २. एक प्रकार का रतिबंध। ३. नृत्य की एक मुद्रा।
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