शब्द का अर्थ
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विद्या :
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स्त्री० [सं०] १. अध्ययन, शिक्षा आदि से अर्जित किया जानेवाला ज्ञान। इल्म। २. पुस्तकों, ग्रन्थों आदि में सुरक्षित ज्ञान। इल्म। ३. किसी तथ्य या विषय का विशिष्ट और व्यवस्थित ज्ञान। ४. किसी गंभीर और ज्ञातव्य विषय का कोई विभाग या शाखा। ५. किसी कार्य या व्यापार की वे सब बातें जिनका ज्ञान उस कार्य के सम्पादन के लिए आवश्यक हो। ६. कौशल या चातुर्य से भरा हुआ ज्ञान। जैसे— ठगविद्या। ७. दुर्गा। |
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समानार्थी शब्द-
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विद्या-गुरु :
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पुं० [सं०] वह गुरु जिससे विद्या पढ़ी हो। शिक्षक। (मंत्र देने वाले गुरु से भिन्न)। |
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विद्या-गृह :
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पुं० [सं०] विद्यालय। पाठशाला। |
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विद्या-दान :
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पुं० [सं०] किसी को विद्या देना या सिखाना। |
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विद्या-देवी :
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स्त्री० [सं०] १. सरस्वती। २. जैनों की एक देवी। |
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विद्या-मंदिर :
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पुं० [सं० ष० त०] विद्यालय। |
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विद्या-वृद्ध :
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वि० [सं० तृ० त०] विद्या या ज्ञान में औरों से बहुत आगे बढ़ा हुआ। |
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विद्या-व्रत :
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पुं० [सं० ष० त०] गुरु के यहाँ रहकर विद्या सीखने का व्रत। |
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विद्याकर :
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पुं० [सं०] विद्वान व्यक्ति। |
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विद्यात्व :
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पुं० [सं०] विद्या का भाव। |
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विद्याद्रोही :
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पुं० [सं०] १. विद्यार्थी २. विद्या-प्रेमी। उदाहरण-पहले दीच्छित विद्या दोही।—नूर-मोहम्मद। |
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विद्याधन :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. विद्या स्वीधन २. विद्या के बल से अर्जित किया हुआ धन। |
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विद्याधर :
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पुं० [सं० विद्या√धृ (धारण करना)+अच्] [स्त्री० विद्याधरी] १. एक प्रकार की देव योनि जिसके अंतर्गत खेचर, गन्धर्व, किन्नर आदि माने जाते हैं। २. वैद्यक में एक रसौषधि। ३. काम-शास्त्र में एक प्रकार का आसन या रति।—बन्ध। |
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विद्याधरी :
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स्त्री० [सं० विद्याधर+ङीष्] विद्याधर नामक देवता की स्त्री। |
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विद्याधारी :
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पुं० [सं० विद्याधर+इनि, विद्याधारिन्] एक प्रकार का वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में चार मगण होते हैं। |
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विद्याधि-देवता :
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स्त्री० [सं० ष० त०] विद्या की अधिष्ठात्री देवी, सरस्वती। |
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विद्याधिप :
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पुं० [सं० ष० त०] १. गुरु। शिक्षक। २. पंडित। विद्वान्। |
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विद्यापति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. राज-दरबार का सबसे बड़ा विद्वान। २. मिथिला के प्रसिद्ध कवि। |
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विद्यापीठ :
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[सं० ष० त०] १. शिक्षा का बड़ा और प्रमुख केन्द्र। २. ऐसा विद्यालय जिसमें ऊँचे दरजे की शिक्षा दी जाती हो। महाविद्यालय। |
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विद्यामहेश्वर :
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पुं० [सं० ष० त०] शिव। |
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विद्यारंभ :
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पुं० [सं०] हिंदुओं में, बालक को विद्या की पढ़ाई आरम्भ कराने का संस्कार। |
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विद्याराज :
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पुं० [सं०] विष्णु की एक मूर्ति। |
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विद्यार्थी :
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पुं० [सं० विद्या√अर्थ+णिनि] १. वह बालक जो प्राचीन काल में किसी आश्रम में जाकर गुरु से विद्या सीखता था। २. आजकल वह बालक या युवक जो किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता हो। ३. वह व्यक्ति जो सदा कुछ न कुछ और किसी न किसी विषय में जानने-सीखने को लालायित तथा प्रयत्नशील रहता है। |
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विद्यालय :
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पुं० [सं०] ऐसी शिक्षण संस्था जिसमें नियमित रूप से विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है। |
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विद्यावधू :
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स्त्री० [सं० ष० त०] सरस्वती। |
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विद्यावान् :
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वि० [सं० विद्या+मतुप्, म-व] विद्वान्। |
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