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लीला  : स्त्री० [सं०√ली (लय)+क्विप्, ली√ला (आदान)+क+टाप्] १. कोई ऐसा काम या व्यवहार जो चित्त की उमंग से केवल मनोरंजन के लिए किया जाय। केलि। क्रीड़ा। खेल। जैसे—बाल-लीला। २. लड़कों का खेलवाड़। ३. लड़कों के खेलवाड़ की तरह का बहुत ही साधारण या सुगम काम। ४. किसी प्रकार के विलास की इच्छा और उसके फल-स्वरूप किये जानेवाला अनेक प्रकार के आचरण, कार्य या व्यवहार। जैसे—यह सब ईश्वर की लीला है। विशेष—दार्शनिक क्षेत्रों में माना जाता है कि लीला ऐसी वृत्ति या व्यापार है जिसका आनन्द प्राप्ति के सिवा और कोई अभिप्राय या उद्देश्य नहीं होता। इसीलिए कहते हैं-सृष्टि और प्रलय सब ईश्वर की लीला ही है अवतार धारण करने पर इस लोक में आकर भगवान् जो कृत्य करते है, उन सब की गिनती भी भक्ति मार्ग में लीलाओं में ही होती है। ५. लोक-व्यवहार में वे सब कृत्य जो भगवान् के किसी अवतार के कार्यों के अनुकरण पर अभिनय या नाटक के रूप में लोगों को दिखाये जाते हैं। जैसे—कृष्ण-लीला, रामलीला आदि। ६. उक्त प्रकार के अभिनय का कोई ऐसा अंग या अंश जो इकाई के रूप में अभिनीत होता है। जैसे—गो-चरण लीला, चीर हरण लीला, धनुष-यज्ञ लीला आदि। ७. श्रृंगारिक क्षेत्र में नायिकाओं का एक हाव जिसमें वे मधुर आंगिक चेष्टाओं के द्वारा नायक की बात-चीत, वेष-भूषा आदि का अनुकरण या नकल करती है। जैसे—(क गोपी का कृष्ण वेष धारण करके वंशी बजाना। (ख) पत्नी का अपने पति के वेष में कुरसी पर बैठना आदि। विशेष—साहित्य शास्त्र में इसकी गिनती नायिका के दस स्वभावज अलंकारों में की गई है। ८. कोई अदभुत या रहस्यपूर्ण काम या व्यापार। उदाहरण—छाया पथ में तारक द्युति सी मिल मिल की मृदु लीला।—प्रसाद। ९. कोई ऐसा काम, चीज या बात जो वास्तविक के अनुकरण पर केवल मनोविनोद के लिए बना हो या होता हो। (यौ० के आरम्भ में। (जैसे—लीलाकलह, लीलाभरण लीलालघु (दे०)। १॰. बारह मात्राओं का एक प्रकार का छंद जिसके अंत में एक जगण होता है। ११. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में भगण, नगण और एक गुरु होता है। १२. चौबीस मात्राओं का एक प्रकार का छंद जिसमें ७+७+७+३ के विराम से २४ मात्राएँ और अंत में सगण होता है। १३. विशेषक नामक छंद का दूसरा नाम। वि० [स्त्री० लीली]=नीला। पुं० नीले या काले रंग का घोड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लीला-कलह  : पुं० [सं० च० त०] वह कलह या लड़ाई झगड़ा जो वास्तविक न हो बल्कि केवल दूसरों के लिए या बनावटी हो। जैसे—चाण्क्य ने एक बार चन्द्रगुप्त के साथ लीला-कलह का आयोजन किया था।
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लीला-पुरुषोत्तम  : पुं० [सं० मध्य० स०] श्रीकृष्ण।
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लीला-भरण  : पुं० [सं० लीला-आभरण, च० स०] केवल क्रीड़ा या मनोविनोद के लिए बनाया हुआ किसी चीज का आभूषण। जैसे—फूलों का कंगन, फूलों की टोपी या मुकुट।
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लीला-स्थल  : पुं० [सं० ष० त०] लीला या क्रीड़ा करने का स्थान।
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लीलामय  : पुं० [सं० लीला+मयट्] क्रीड़ा से भरा हुआ। क्रीड़ायुक्त। जैसे—लीला-मय भगवान्।
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लीलायुध  : पुं० [सं० लीला-आयुध, त० त०] ऐसा आयुध जो वास्तविक न हो, बल्कि खेल या खिलवाड़ के लिए हो।
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लीलावतार  : पुं० [सं० लीला-अवतार, च० त०] भगवान् के वे सब अवतार जो इस पृथ्वी पर अब तक हुए हैं और जिनमें उन्होंने अनेक प्रकार की लीलाएँ की है। इनकी संख्या २४ मानी जाती है।
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लीलावती  : स्त्री० [सं० लीला+मतुप्+ङीष्] १. लीला या क्रीड़ा करनेवाली। विलासवती। २. प्रसिद्ध ज्योतिर्विद भास्कराचार्य की पत्नी का नाम जिसने लीलावती नाम की गणित की एक पुस्तक बनाई थी। पीछे भास्कराचार्य ने भी इस नाम की एक पुस्तक बनाई थी। ३. संपूर्ण जाति की एक रागिनी। (संगीत) ४. ३२ मात्राओं का एक प्रकार का छंद, जिसमें लघु-गुरु का विचार नहीं होता।
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लीलावान् (वत्)  : वि० [सं० लीला+मतुप्] १. क्रीड़ाशील। २. बहुत ही रमणीय तथा सुन्दर।
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