शब्द का अर्थ
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योजन :
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पुं० [सं०√युज्+णिच्+ल्युट-अन] १. जोड़ने, मिलाने आदि की क्रिया या भाव। योग। २. ईश्वर। परमात्मा। ३. दूरी नापने की एक पुरानी नाप जो किसी के मत से दो कोस की किसी के मत से चार कोस की और किसी के मत से आठ कोस की होती थी। |
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योजन-गंधा :
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स्त्री० [सं० ब० स०, टाप्] १. व्यास की माता और शांतनु की भार्या सत्यवती का एक नाम। २. सीता। ३. कस्तूरी। |
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योजन-गंधिका :
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स्त्री० [सं० योजनगंधा+क+टाप्-इत्व] १. योजनगंधा |
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योजन-पर्णी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] मंजीठ। |
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योजन-वल्ली :
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स्त्री० [सं० ब० स०] मंजीठ। |
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योजना :
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स्त्री० [सं०√युज्+णिच्+युच्-अन, टाप्] १. योग होना। मिलना। २. प्रयोग। व्यवहार। ३. किसी भावी कार्य के निष्पन्न करने का प्रस्तावित कार्य-क्रम। ऐसी रूपरेखा जिसके अनुसार कार्य किया जाने को हो (प्लैनिंग) ४. बनावट। रचना। ५. स्थिरता। ६. प्रबंध। |
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योजना-आयोग :
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पुं० [सं० ष० त०] वह प्रशासकीय संस्था जो राजकीय योजनाओं का संचालन करती है। (प्लैनिंग कमीशन) |
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योजनालय :
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पुं० [सं० योजना-आलय, ष० त०] वह भवन जिसमें योजनाएँ बनाई जाती हैं। |
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योजनीय :
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वि० [सं०√युज्+अनीयर्] १. जो मिलाने के योग्य हो। २. जो जोड़ा या मिलाया जाने को हो। ३. जो किसी काम या बात में लगाये जाने के योग्य हो। |
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