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यायावर  : पुं० [सं०√या (गति)+य़ङ्+वरच्] १. अश्वमेघ का घोड़ा। २. वह साधु या संन्यासी जो किसी एक स्थान पर टिककर न रहता हो, बराबर घूमता-फिरता हो। ३. उक्त प्रकार के मुनियों का एक गण या वर्ग। ४. वह जिसके रहने का कोई निश्चित स्थान न हो और जो खान-पान आदि के सुभीते के विचार से अपना डेरा कभी कहीं और कभी कहीं लगाता हो। खाना-बदोश। (नोमड) ५. जरत्कारु मुनि का एक नाम। ६. याचना। ७. वह ब्राह्मण जिसके यहाँ गार्हपत्य अग्नि बराबर रहती हो। साग्नि ब्राह्मण।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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