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शब्द का अर्थ
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बोली :
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स्त्री० [हिं० बोलना] १. बोलने की क्रिया या भाव। २. किसी प्रकार के प्राणी केमुँह से निकला हुआ शब्द। मुँह से निकली हुई आवाज या बात। वाणी। जैसे—जानवरों या बच्चों की बोली। ३. ऐसी बात या वाक्य जिसका कुछ विशिष्ट अर्थ या अभिप्राय हो। ४. किसी भाषा की वह शाखा जो किसी छोटे क्षेत्र या वर्ग में बोली जाती हो। स्थानिक भाषा। विभाषा। जैसे—अवधी, मैथिली, ब्रज आदि की गिनती आधुनिक हिन्दी की बोलियों में ही होती है। क्रि० प्र०—बोलना। ५. विशिष्ट अर्थवाली कोई ऐसी उक्ति या कथन जिसमे किसी को चिढाने या लज्जित करने के लिए कोई कूट या गूढ़ व्यंग्य मिलता हो। पद—बोली ठोली (देखें)। मुहावरा—बोली या बोली ठोली छोड़ना, बोलना या मारना= किसी को चिढ़ाने के लिए व्यंग्यपूर्ण बात कहना। ६. नीलाम के द्वारा चीजों के बिकने का वह दाम जोकोई खरीदकर अपनी ओरसे लगाता है। जैसे—उस मकान पर हमारी भी पाँच हजार रुपयों की बोली हुई थी। क्रि० प्र०—बोलना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बोली ठोली :
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स्त्री० [हिं० बोली+अनु० ठोली] ताने या व्यंग्य से भरी हुई बात। बोली (देखें)। क्रि० प्र०—छोड़ना।—बोलना।—मारना।—सुनाना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बोलीदार :
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पुं० [हिं० बोली+फा० दार] वह असामी जिसे जोतने के लिए खेत यों ही जबानी कहकर दिया जाय, कोई लिखा-पढ़ी न की जाय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
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