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बुझना  : अ० [सं० उज्झति] १. जलते हुए पदार्थ का जलना बंद हो जाना। जलने का अंत या समाप्ति होना। जैसे—आग बुझना, दीया बुझना। २. किसी जलते या तपे हुए पदार्थ का पानी में पड़ने के कारण ठंडा होना। तपी हुई या गरम चीज का पानी में पड़कर ठंढ़ा होना। जैसे—(क) तपी हुई धातु का पानी बुझना। (ख) सफेदी करने के लिए पानी में चूना बुझना। ३. किसी प्रकार के ताप का पानी अथवा किसी और प्रकार के पदार्थ से शांत या समाप्त होना। जैसे—प्यास बुझना ४. किसी विशिष्ट प्रकार स प्रस्तुत किये हुए तरल पदार्थ में किसी चीज का इस प्रकार डूबाया जाना कि उसमें तरल पदार्थ का कुछ गुण या प्रभाव आ जाय। जैसे—जहर के पानी से छुरे या तलवार का बुझना। ५. चित्त का आवेग, उत्साह, बल आदि-आदि मंद पड़ना। जैसे—ज्यों-ज्यों बुढ़ाया आता है० त्यों त्यों जी बुझता जाता है। उदा०—शाम से ही बुझा सा रहता है, दिल हुआ है चिराग मुफलिस का।—मीर। मुहा०—बुझकर रह जाना= अप्रमाणित या लज्जित होकर चुप हो जाना। उदा०—महफिल चमक उठी और मियाँ मजनूँ बुझकर रह गये।—फिराक गोरखपुरी। ६. खाद्य पदार्थों का जलने, पकने आदि पर मात्रा या मान में पहले से बहुत कम हो जाना। जैसे—सेर भर साग पकाने पर बुझकर पाव भर रह गया। संयो० कि०—जाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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