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बस  : अव्य० [फा०] १. यथेष्ट है कि। पर्याप्त है कि। जैसे—बस इतनी ही दया चाहिए। २. समाप्ति का सूचक एक अव्यय। जैसे—अब बस करोगे या नहीं। ३. इतना मात्रा। केवल। सिर्फ। वि० १. यथेष्ट। पर्याप्त। २. समाप्त। खत्म। पुं० [सं० वश] १. अधिकार या शक्ति। जैसे—(क) यह हमारे बस की बात नहीं हैं। (ख) वह तो अब पूरी तरह से तुम्हारे बस में है। मुहावरा—(किसी को) बस करना= दे० नीचे बस में करना। (किसी के आगे या सामने) बस चलना= किसी के मुकाबले में अधिकार या शक्ति का काम करना। जैसे—ईश्वर की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता। मुहावरा—(किसी को) बस में करना या लाना=किसी को इस प्रकार अपने अधिकार में लेना कि वह अपनी इच्छा के अनुसार कोई काम न कर सके। स्त्री० [अ० ओमनी बस का संक्षिप्त रूप] प्रायः किसी नगर की सीमा के अंदर किसी निश्चित पथ पर चलनेवाली बड़ी मोटर गाड़ी जो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सवाँरियाँ उतारती तथा चढ़ाती चलती हैं।
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बस  : पुं० [सं० तुष] अनाज आदि कें ऊपर का छिलका। भूसी।
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बसकर  : वि० [सं० वशीकर] [स्त्री० बसकरी] १. किसी को अपने वश में कर लेनेवाला। वशीकर। २. परम आकर्षक और मनोहर। उदाहरण—बसुधा की बसकरी मधुरता सुधा पगी बतरानि।—रहीम। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बसंत  : पुं० [सं० वसंत] [वि० बसंती] वसंत ऋतु। पद—उल्लूबसंत= निरा या बहुत बड़ा मूर्ख।
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बसत  : स्त्री० [सं० वास] बसा हुआ स्थान। बस्ती। स्त्री०=वस्तु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसंत-मुखारी  : पुं० [सं० बसंत+मुखी] संगीत में एक प्रकार का राग।
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बसंत-विहार  : पुं० [सं० बसन्त+हिं० बहार] एक प्रकार का संकर राग जो बसंत और बहार के योग से बनता है।
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बसंतर  : पुं०=बसंदर (अग्नि)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसतर  : पुं०=वस्त्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसंता  : पुं० [सं० बसन्त] भूरे रंग की एक प्रकार की चिड़िया। पुं० [सं० वास] कहीं बसने या रहनेवाला। निवासी।
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बसति  : स्त्री०=वस्ती। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसंती  : वि० [हिं० बसंत] १. वसंत ऋतु संबंधी। २. बसंत ऋतु में होनेवाला। ३. सरसों के फूल का तरह का। पीला। जैसे—बसंती सेहरा। पुं० १. सरसों के फूल की तरह का चमकदार और खुलता पीला रंग। (क्रीम) २. पीला केवड़ा। स्त्री० एक प्रकार की चेचक यामाता। (रोर)।
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बसंदर  : पुं० [सं० वैश्वानर] अग्नि। आग।
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बसदेवा  : पुं० [सं० वासुदेव] एक जाति जो भीख माँगने का पेशा करती है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसन  : पुं० [सं० वस्=प्रेम करना] स्त्री का पति। उदाहरण—बसन हीन नहि सोह सुरारी।—तुलसी।
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बसना  : स० [सं० वसन=निवास करना] १. जीव-जन्तुओं पक्षियों, आदि का बिल या घोंसला बनाकर अथवा मनुष्यों का गुफा, झोपड़ी मकान आदि बनाकर उसमें निवास करना या रहना। जैसे—किसी समय यहाँ जंगली जानवर बसते थे, पर अब तो यहाँ मनुष्य बस गये हैं। २. घर, नगर या किसी प्रकार के स्थान की ऐसी स्थिति में होना कि उसमें प्राणी या मनुष्य निवास करते हों। जैसे—यह गाँव पहले तो उजड़ चला था, पर अब यह धीरे-धीरे फिर से बसने लगा है। ३. घर या मकान के संबंध में कुटुम्बियों और धन-धान्य से भर-पूरा और सुखपूर्ण होना। जैसे—चाहे किसी का घर बसे या उजड़े तुम तो मौज करते रहो। मुहावरा—(किसी का) घर बसना=(क) विवाह होने पर घर में गृहिणी या पत्नी का आना। जैसे—पर-साल उसकी नौकरी लगी थी, इस साल घर भी बस गया। (ख) घर धन-धान्य और बाल-बच्चो से भरा-पूरा या युक्त होना। जैसे—पहले तो घर में पति-पत्नी दो ही आदमी थे पर अब बाल-बच्चे हो जाने से उसका घर बस गया है। (किसी का घर में) बसना=किसी का अपने घर में रहकर गृहस्थी के कर्त्तव्यों का सुखपूर्वकनिर्वाह और पालन करना। जैसे—यह औरत तो चार दिन भी घर में नही बसेगी, अर्थात् घर छोड़कर (किसी के साथ या योंही) कहीं निकल जायगी। उदाहरण—नारद का उपदेश सुनि कहहु बसेउ को गेह।—तुलसी। ४. कुछ समय तक कही अवस्थान करना। टिकना। ठहरना। जैसे—हम तो रमते राम है, जहाँ जी चाहा वहीं दस-पाँच दिन बस गये। ५. लाक्षणिक रूप में किसी चीज बात या व्यक्ति का ध्यान याविचार मन में दृढ़तापूर्वक जमना या बैठना। जैसे—(क) तुम्हारी बात मेरे मन में बस गयी है। (ख) उनके मन में तो भगवान् की भक्ति बसी हुई है। संयो० क्रि०—जाना। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग मन के सिवा आँखों के संबंध में भी होता है। जैसे—तुम्हारी सूरत मेरे आँखों में बसी हुई है। ६. स्थित होना। ७. बैठना। (क्व०) [हिं० बासना (गंध सेयुक्त करना) का अ०] किसी वस्तु का किसी प्रकार की गंध या वास से युक्त होना। महक से भरना। बासा जाना। जैसे—(क) इत्र से बसे हुए कपड़े या (सिर के ) बाल। (ख) गुलाब से बसी हुई गँड़िरियाँ या रेवड़ियाँ। पुं० [सं० बसन] १. वह कपड़ा जिसमें कोई वस्तु लपेटकर रखी जाय। वेष्ठन। जैसे—बहीखाते का बसना। २. वह थैली जिसमें दुकानदार अपने बटखरे आदि रखते हैं। ३. टाट आदि की वह जाली दार थैली जिसमें रुपए आदि भरकर रखे जाते हैं। ४. वह कोठी जहाँ ऋण आदि देने का कारबार होता है। पुं०=बासन (बरतन)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसनि  : स्त्री० [हिं० बसना] निवास। वास।
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बसर  : स्त्री० [फा०] १. जीवन-निर्वाह। २. गुजारा। निर्वाह।
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बसवार  : पुं० [सं० वास=गंध] छौंक। बघार।
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बसवास  : पुं० [हिं० बसना+सं० वास] १. निवास। रहना। २. ढंग , रहन सहन। ठहरने या रहने क सुभीता। पुं०=विश्वास। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसह  : पुं० [सं० वृषभ, प्रा० बसह] बैल।
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बसा  : स्त्री० [देश] १. बर्रै। भिंड़। २. एक प्रकार की मछली। स्त्री०=वसा (चरबी)।
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बसात  : स्त्री०=बिसात।
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बसाँधा  : वि० [हिं० वास=गंध] बासा या सुगंधित किया हुआ। सुवासित।
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बसाना  : स० [हिं० ‘बसना’ का स०] १. व्यक्ति के संबंध में रहने के लिए घर अथवा जीवन-निर्वाह के लिए उचित साधन या सुभीते देना। जैसे—शरणार्थियों को बसाने के लिए सरकार को बहुत अधिक धन व्यय करना पड़ा है। २. स्थान के संबंध में नये घर आदि बनाकर अथवा गाँव या बस्तियाँ बनाकर उनमें लोगों को स्थिर रूप में रखने की व्यवस्था करना। ३. घर-गृहस्थी या जीवन-यापन के साधनों से युक्त करना। मुहावरा—(अपना) घर बसाना=(क) विवाह करके पत्नी को घर में लाना। (ख) गृहस्थी की सब सामग्री इस प्रकार एकत्र करना कि कुटुम्ब के सब लोग सुख से रह सकें। (किसी का) घर बसाना=किसी का विवाह करा देना। ४. अस्थायी रूप से किसी को कहीं टिकाने या ठहराने की व्यवस्था करना। (क्व०) जैसे—इन यात्रियों को दो दिन लिए अपने यहाँ बसा लो उदाहरण—नुपूर जनि मुनिवर कल-हंसनि, रचे नीड़ दै बाँह बसायो।—तुलसी। ५. स्थिति में लाना। स्तान देना। उदाहरण—सुनि कै सुक सो हृदय बसायौ।—सूर। ६. लाक्षणिक रूप में किसी बात या व्यक्ति का ध्यान अथवा विचार अपने मन में दृढ़तापूर्वक स्थित करना। जैसे—यदि आपका उपेदश हृदय में बसा लोगे तो तुम्हारा बहुत बड़ा कल्याण होगा। ७. स्तापित करना। रखना। ८. बैठाना। (क्व० ) स० [हिं० बास+ना (प्रत्यय)] वास अर्थात् गंद से युक्त करना। जैसे—फूल से तेल बसाना। अ०=बसना। (गंध से युक्त होना) अ० [सं० वश] अधिकार, जोर या वश चलना। शक्ति या सामर्थ्य का काम देना या सफल सिद्द होना। उदाहरण—मिला रहे और ना मिलै तासों कहा बसाय।—कबीर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसारत  : स्त्री० [अ०] १. देखने की शक्ति। दृष्टि। २. अनुभव करने या समझने की शक्ति। समझ।
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बसाव  : पुं० [हिं० बसना+आव (प्रत्यय)] बसने की अवस्था, क्रिया या भाव। निवास। जैसे—बसाव शहर का, खेत नहर का।—कहा०।
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बसिऔरा  : पुं० [हिं० बासी] १. वर्ष की कुछ विशिष्ट तिथियाँ जिनमें स्त्रियाँ बासी भोजन खाती और बासी पानी पीती है बासी। २. वह भोजन जो उक्त तिथियों में खाने के लिए एक दिन पहले बनाकर रख लिया जाता है। ३. बासी खाने की प्रथा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसिया  : स्त्री०=बासी। स्त्री०=वंशी।
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बसियाना  : अ० [हिं० बासी, या बसिया+ना (प्रत्यय)] बासी हो जाना। स० किसी चीज को रखकर बासी करना। [हिं० बास] बास अर्थात् गंध से युक्त होना।
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बसिष्ठ  : पुं०=वशिष्ठ। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसीकत  : स्त्री० [हिं० बसना] १. बसने की क्रिया या भाव। २. बसने का स्थान। ३. बस्ती। आबादी।
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बसीकर  : वि०=वशीकर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसीकरन  : पुं०=वशीकरण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसीगत  : स्त्री०=बसीकत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसीठ  : पुं० [सं० अवसृष्ठ] १. दूत। पैगम्बर। ३. गाँव का मुखिया। ४. हल में का जुआठा।
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बसीठी  : स्त्री० [हिं० बसीठ] बसी होने की अवस्था या भाव। दूत का पद या भाव।
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बसीत  : पुं० [अ०] जहाज पर का एक यंत्र जिसमें सूर्य का अक्षांश जाना जाता है। कमान।
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बसीता  : पुं० १.=बस्ती। २.=बसाव। उदाहरण—जुद्ध जुरे जुरजोधन सों कहि कौन करै जमलोक बसीतों।—केशव।
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बसीना  : पुं० [हिं० बसना] बसने की क्रिया या भाव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसीला  : वि० [हिं० बास=गंध] १. वास अर्थात् गन्ध से युक्त। २. दुर्गंन्ध युक्त। बदबूदार।
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बसु  : पुं०=वसु।
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बसुकला  : स्त्री०=वसुकला (वर्ण वृत्त)।
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बसुदेव  : पुं०=वसुदेव।
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बसुमति  : स्त्री०=वसुमती।
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बसुरी  : स्त्री०=बाँसुरी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसुला  : पुं०=बसूला।
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बसुली  : स्त्री० १.=वसूली। २.=बाँसुरी।
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बसू  : पुं०=वसु।
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बसूला  : पुं० [सं० वाशी+ल (प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० बसूली] बढ़इयों का एक प्रसिद्ध औजार जिससे वे लकड़ी छीलते और गढ़ते हैं।
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बसूली  : स्त्री० [हिं० बसूला] १. छोटा बसूला। २. राजगीरों का एक औजार जिससे वे ईंटे गड़ते या तोड़ते हैं। स्त्री०=वसूली। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसेड़ा  : पुं० [हिं० बाँस+ड़ा(प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० बसेंड़ी] पतला बाँस। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसेढ़  : पुं० [हिं० बसना] १. बसने या रहने की जगह। २. दे० ‘बसेरा’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसेंधा  : वि० [हिं० वास=गंध] [स्त्री० बसेंधी] १. बसाया अर्थात् गंध या वास से युक्त किया हुआ। २. खुशबूदार। सुगंधित।
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बसेरा  : पुं० [हिं० बसना] १. वह स्थान जहाँ रहकर यात्री रात बिताते हैं। मार्ग में टिकने की जगह। २. वह स्थान जहाँ ठहरकर चिड़ियाँ रात बिताती है। मुहावरा—बसेरा लेना=रात बिताने के लिए कहीं टिकना या ठहरना। वि० विश्राम करने के लिए कहीं टिकने या ठहरनेवाला।
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बसेरी  : वि० [हि० बसेरा] १. बसेरा लेनेवाला। २. निवासी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसैधा  : वि०=बसेंधा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसैया  : वि० [हिं० बसना] बसनेवाला। रहनेवाला। वि० [हिं० बसाना] बसानेवाला। बसवैया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बसोबास  : पुं० [सं० वास+आवास] १. निवास। २. निवास स्थान। रहने की जगह।
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बसौंधी  : स्त्री० [हिं० बास+औँधी] अत्यधिक खौलाये हुए दूध का वह लच्छेदार रूप जिसमें दूध का अंश कम और मलाई का अंश अधिक होता है तथा जिसमें चीनी, मेवा आदि भी मिलाया गया होता है। रबड़ी।
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बस्ट  : पुं० [अ०] चित्र-कला और मूर्ति-कला में वह चित्र या वह मूर्ति, जिसमें किसी व्यक्ति के मुख और छाती के ऊपर के भाग की आकृति बनायी गयी हो।
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बस्त  : पुं० [सं०√वस्त (याचना करना)+घञ्] १. सूर्य। २. बकरा।
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बस्तर  : पुं०=वस्त्र (कपड़ा)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बस्ता  : पुं० [फा० बस्तः] १. कपड़े का वह चौकोर टुकड़ा जिसमें कागज के मुट्ठे, बही-खाते और पुस्तक आदि बाँधकर रखते हैं। बेठन। २. इस प्रकार बँधी हुई पुस्तक या कागज पत्र। क्रि० प्र०—बाँधना। ३. थैले या बेठन की तरह का वह उपकरण जिसमें विद्यार्थी अपनी पुस्तकें रखकर विद्यालय ले जाता है। जैसे—सब लड़के अपना-अपना बस्ता खोंले। मुहावरा—बस्ता बाँधना=उठाने या चलने की तैयारी कर पुस्तकें आदि बस्ते में बाँध या रखकर चलने को तैयार होना।
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बस्ताजिन  : पुं० [सं० वस्त-अजिन, ष० त] बकरे की खाल।
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बस्तांबु  : पुं० [सं० वस्तु-अंबु, ष० त] बकरे का मूत्र।
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बस्तार  : पुं० [फा० वस्तः] १. बहुत से मनुष्यों का एक जगह घर बनाकर रहने का भाव। आबादी। निवास। २. वह स्थान जहाँ बहुत से लोग घर बनाकर एक साथ रहते हों। क्रि० प्र०—बसना।—बसाना।
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बस्तु  : स्त्री०=वस्तु।
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बस्त्र  : पुं०=वस्त्र।
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बस्य  : वि०=वश्य।
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बस्साना  : अ० [सं० वास] वास अर्तात् दुर्गंध से युक्त होना।
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