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बन  : पुं० [सं० वन०] १. वह पर्वतीय या मैदानी क्षेत्र जिसमें न तो मनुष्य रहते हों और न जिसमें खेती-बारी होती हो, बल्कि जिसमें प्रकृति-प्रदत्त पेड़-पौधों तथा जंगली जानवरों की बहुलता हो। जंगल। कानन। पद—बन की धातु-गेरू नामक लाल मिट्टी। २. समूह। ३. जल। पानी। ४. उपवन। बगीचा। ५. निराने या नींदने की मजदूरी। निरौनी। निंदाई। ६. वह अन्न जो किसान लोग मजदूरों को खेत काटने की मजदूरी के रूप में देते हैं। ७. कपास का पौधा। उदाहरण—सनु सूक्यौ पीतौ बनौ ऊखौ लई उखारि।—बिहारी। ८. वह भेंट जो किसान लोग अपने जमींदार को किसी उत्सव के उपलक्ष्य में देते हैं। शादियाना। ९. दे० वन। पुं०=बंद। स्त्री० [हिं० बनाना] १. सज-धज। बनावट। २. बाना। भेस।
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बन-आलू  : पुं० [हिं० बन+आलू] जमींकंद की जाति का एक कंद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बन-ककड़ी  : स्त्री० [सं० वन-कर्कटी] एक पौधा जिसका गोंद दवा के काम आता है।
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बन-कंडा  : पुं० [हिं० बन+कंडा] वह कंडा या गोहरी जो पाथकर न बनायी गयी हो बल्कि जंगल मे गाय भैस आदि के गोबर के सूख जाने पर आप से आप बनी हो।
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बन-कल्ला  : पुं० [हिं० बन+कल्ला] एक प्रकार का जंगली पेड़।
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बन-कस  : पुं० [हिं० वन+कुश] एक प्रकार की घास जिसे वनकुस, बँभनी, मोप और बाभर भी कहते हैं। इससे रस्सियाँ बनायी जाती है।
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बन-तुलसी  : स्त्री० [हिं० बन+तुलसी] बर्बर नाम का पौधा जिसकी पत्ती और मंजरी तुलसी की सी होती है। बर्बरी।
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बन-पति  : पुं० [स० वनपति] सिंह। शेर।
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बन-पती  : स्त्री०=वनस्पति। उदाहरण—भएउ बसंत राती बनपती।—जायसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बन-पथ  : पुं० [सं० वनपथ] १. समुद्र। २. ऐसा रास्ता जिसमें नदियाँ या जलाशय बहुत पड़ते हों। ३. ऐसा रास्ता जिसमें जंगल बहुत पड़ते हों।
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बन-पाट  : पुं० [हिं० बन+पाट] जंगली सन। जंगली पटुआ।
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बन-पाती  : स्त्री०=वनस्पति।
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बन-पाल  : पुं० [सं० वनपाल] बन या बाग का रक्षक। माली।
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बन-पिंडालू  : पुं० [हिं० बन+पिंडालू] एक प्रकार का मझोले जंगली वृक्ष। इसकी लकड़ी कंघी, कमलदान या नक्काशीदार चीजें बनाने के काम आती है।
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बन-फूल  : पुं० [हिं० वन+फूल०] जंगली वृक्षों के फूल।
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बन-फ़्शई  : वि० [फा०] १२. नीले रंग का। २. हलका हरा। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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बन-बास  : पुं० [सं० बन-वास] १. बन में जाकर रहने की क्रिया या अवस्था। २. प्राचीन भारत में, एक प्रकार का देश-निकाले का दंड।
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बन-बासी  : वि० [हिं० बनबास] १. बन में रहनेवाला। जंगली। २. बन में जाकर बसा हुआ। ३. जिसे बनबास (दंड) मिला हो।
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बन-बिलार  : पुं०=बन-बिलाव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बन-मानुस  : पुं० [हिं० बन-मानुष] बंदरों से कुछ उन्नत और मनुष्य से मिलते-जुलते जंगली जंतुओं का वर्ग जिसमें गोरिल्ला, चिम्पैंजी, औरंग, ऊटंग आदि जन्तु हैं।
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बनउर  : पुं० १.=बिनौला। २.=ओला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनक  : स्त्री० [सं० वन+क (प्रत्यय)] वन की उपज। जंगल की पैदावार। जैसे—गोंद, लकड़ी शहद आदि। स्त्री० [?] एक प्रकार का साटन। स्त्री०=बानक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनकटी  : स्त्री० [हिं० वन (जंगल)+काटना] १. जंगल काटकर उसे आबादी करने, खेती-बारी अथवा रहने के योग्य बनाने का हक। २. एक प्रकार का पहाडी बाँस जिससे टोकरे बनाये जाते हैं।
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बनकर  : पुं० [सं० बनकर] १. शत्रु के चलाये हुए हथियार को निष्फल करने की एक युक्ति। २. सूर्य। (डिं०)। पुं० [स० वन+कर] वह कर जो जंगल में होनेवाली वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर लगता है।
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बनकोरा  : पुं० [देश] लोनिया का साग। लोनी।
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बनखंड  : पुं० [स० वनखंड] १. वन का कोई खण्ड या भाग। २. वन्य प्रदेश।
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बनखंडी  : स्त्री० [हिं० वन+खंडा=टुकड़ा] १. वन का कोई खंड या भाग। २. छोटा जंगल या वन। वि० वन या जंगल में रहने या होनेवाला।
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बनखरा  : पुं० [हिं० वन+खरा०] वह भूमि जिसमें पिछली फसल में कपास बोयी गयी हो।
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बनखोर  : पुं० [देश] कौंर नामक वृक्ष।
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बनगाव  : पुं० [हिं० वन+फा० गाव=हिं० गौ०] १. एक प्रकार का बड़ा हिरन जिसे रोझ भी कहते हैं। २. एक प्रकार का जंगली तेंदू (वृक्ष)।
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बनगोभी  : स्त्री० [हिं० बन+गोभी] एक तरह की जंगली घास।
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बनचर  : पुं० [स० वनचर] १. जंगल में रहनेवाला पशु। वन्य पशु। २. वन या जंगल में रहनेवाला आदमी। जंगली मनुष्य। ३. जल में रहनेवाले जीव-जन्तु। वि० वन में रहनेवाला।
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बनचरी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की जंगली घास जिसकी पत्तियाँ ज्वार की पत्तियों की तरह होती है। बरो। पुं०=बनचर। वि० बनचर का। बनचर संबंधी। जैसे—बनचरी रंग ढंग।
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बनचारी  : वि० [सं० बनचारिन्] वन में घूमने-फिरने या रहनेवाला। पुं० १. वन में रहनेवाले पशु, मनुष्य आदि। २. जल में रहनेवाले जीव-जन्तु। जलचर।
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बनचौर  : स्त्री० [स० बन+चमरी] पर्वतीय प्रदेशों में होनेवाली एक तरह की गाय जिसकी पूँछ की चँबर बनायी जाती है। सुरागाय।
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बनचौरी  : स्त्री०=बनचौर।
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बनज  : पुं० [स० वनज०] जंगल में होने या रहनेवाला जीव। वि० दे० ‘वनज’। पुं०=वाणिज्य। (व्यापार)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनजना  : सं० [हिं० बनज] १. व्यापार करना। २. किसी के साथ किसी तरह की बात-चीत या लेन-देन निश्चित करना। जैसे—किसी की लड़की के साथ अपना लड़का बनजना (अर्थात् ब्याह पक्का करना)। स० १. व्यापार करने के लिए कोई चीज खरीदना। २. किसी को इस प्रकार वश में करना कि मानो उसे मोल ले लिया गया हो। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनजर  : स्त्री०=बंजर।
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बनजरिया  : स्त्री० [हि० बन+जारना=जलाना] भूमि का वह टुकड़ा जो जंगल को जला या काटकर खेती-बारी के लिए उपयुक्त बनाया गया हो।
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बनजात  : पुं० [सं० वनजात०] कमल।
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बनजारा  : पुं० [हि० वनिक+हारा] १. वह व्यक्ति जो बैलों पर अन्न लादकर बेचने के लिए एक देश से दूसरे देश को जाता है। टाँडा लादनेवाला। व्यक्ति। टँडैया। बंजारा। २. व्यापारी। सौदागर।
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बनजी  : पुं० [सं० वाणिज्य] १. व्यापार या रोजगार करनेवाला। सौदागर। २. वाणिज्य। व्यापार।
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बनज्योत्स्ना  : स्त्री० [सं० वनज्योत्स्ना] माधवी लता।
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बनड़ा  : पुं० [?] बिलावन राग का एक भेद। यह झूमड़ा ताल पर गाया जाता है। पुं० [हिं० बना=दूल्हा] विवाह के समय वर-पक्ष में गाया जानेवाला एक प्रकार का गीत।
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बनड़ा-जैत  : पुं० [हिं० बनड़ा+सं० जयत] एक शालक राग जो रूपक ताल पर गाया जाता है।
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बनड़ा-देवगरी  : पुं० [हिं० बनड़ा+सं० देवगिरि] एक शालकराग जो एकताले पर गाया जाता है।
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बनत  : स्त्री० [हिं० बनना+त (प्रत्यय)] १. किसी चीज के बनने या बनाये जाने का ढंग, प्रक्रिया या भाव। २. किसी चीज की बनावट या रचना का विशिष्ट ढंग या प्रकार। अभिकल। भांत। (डिजाइन)। ३. पारस्परिक अनुकूलता या सामंजस्य। मेल। ४. गोटे-पट्टे की तरह की एक प्रकार की पतली पट्टी। बाँकड़ी।
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बनताई  : स्त्री० [हिं० बन+ताई (प्रत्यय)] १. वन या जंगल की सघनता। २. वन की भयंकरता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनतुरई  : स्त्री० [हि० वन+तुरई] बंदाल।
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बनद  : पुं० [सं० वनद] बादल। मेघ। वि० जल देनेवाला। जलद।
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बनदाम  : स्त्री० [सं० वनदाम] वन माला।
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बनदेवी  : स्त्री० [सं० वनदेवी] किसी वन की अधिष्ठात्री देवी।
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बनधातु  : स्त्री० [सं० बनधातु] गेरु या और कोई रंगीन मिट्टी।
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बनना  : अ० [सं० वर्णन; प्रा० वष्णन=चित्रित होना, रचा जाना] १. अनेक प्रकार के उपकरणों तत्त्वों आदि के योग से कोई नयी चीज तैयार होना अथवा किसी नये आकार या रूप में प्रस्तुत होकर असित्व में आना। जैसे—कल-कारखानों में कागज, चीनी या धातुओं की चीजें बनाना। पद—बना-बनाया=(क जो पहले से बनकर ठीक या तैयार हो। जैसे—बना-बनाया कुरता मिल गया। (ख) जिसमें पहले से ही पूर्णता हो, कोई कोर-कसर न हो। उदाहरण—मैं याचक बना-बनाया था।—मैथिलीशरण। मुहावरा—(किसी का) बना रहना-संसार में कुशलतापूर्वक जीवित रहना। जैसे—ईश्वर करे यह बालक बना रहे। (किसी का किसी स्थान पर) बना रहना=उपस्थित या वर्तमान रहना। जैसे—आप जब तक चाहें यहाँ बने रहें। २. किसी पदार्थ का ऐसे रूप में आना जिसमें वह व्यवहार में आ सके। काम मे आने के योग्य होना। जैसे—दाव या भोजन बनना। ३. किसी प्रकार के रूप परिवर्तन के द्वारा एक चीज से दूसरी नयी चीज तैयार होना। जैसे—चीनी से शरबत बनना, रूई से डोरा या सूत बनना। ४. उक्त के आधार पर पारस्परिक व्यवहार में किसी के साथ पहलेवाले भाव या संबंध के स्थान पर कोई दूसरा नया भाव या संबंध स्थापित होना। जैसे—(क) मित्र का शत्रु अथवा शत्रु का मित्र बनना। (ख) किसी का दत्तक पुत्र या मुँह-बोला भाई बनना। ५. आविष्कार आदि के द्वारा प्रस्तुत होकर सामने आना। जैसे—अब तो नित्य सैकड़ों तरह के नये-नये यंत्र बनने लगे हैं। ६. पहले की तुलना में अधिक अच्छी उन्नत या संतोषजनक अवस्था या दशा में आना या पहुँचना। जैसे—वे तो हमारे देखते-देखते बने हैं। पद—बनकर-अच्छी तरह से पूर्ण रूप से। भली-भाँति। उदाहरण—मनमोहन से बिछुरे इतही बनि कै न अबै दिन द्वै गये हैं।—पद्याकर। बनठनकर=खूब-बनाव सिंगार या सजावट करके। जैसे—आज-कल तो वह खूब बन-ठनकर घर से निकलते हैं। ७. किसी विशिष्ट प्रकारका अवसर योग या स्थिति प्राप्त होना। मुहावरा—बन आना=अच्छा अवसर योग या स्थिति होना। जैसे—उन लोगों के लड़ाई-झगड़े में तुम्हारी खूब बन आयी है। प्राणों पर आ बनना=ऐसी स्थिति आ पहुँचना कि प्राण जाने का भय हो। जान जाने तक की नौबत आना। जैसे—तुम्हारें अत्याचारों (या दुर्व्यवहारों) से तो मेरे प्राण पर आ बनी है। (किसी का) कुछ बन बैठना=वास्तविक अधिकार गुण योग्यता आदि का अभाव होने पर किसी पद या स्थिति का अधिकारी बन जाना अथवा यह प्रकट करना कि हम उपयुक्त या वास्तविक अधिकारी है। जैसे—वह कुछ सरदारों को अपनी ओर मिलाकर राजा (या शासक) बन बैठा। (हिं० के हो बैठना मुहा० की तरह प्रयुक्त) ८. किसी काम का ऐसी स्थिति में होना कि वह पूरा या सम्पन्न हो सके। सम्भव होना। जैसे—जिस तरह बने, उसकी जान बचाओ। ९. किसी प्रक्रिया से ऐसे रूप में आना जो बहुत ही उपयुक्त ठीक या सुन्दर जान पड़े। जैसे—(क) नयी बेल टँकने से यह साड़ी बन गयी हैं। (ख) दफ्ती पर चढ़ने और हाशिया लगने से यह तस्वीर बन गयी है। १॰. किसी प्रकार के दोष, विकार आदि दूर किये जाने पर या मरम्मत आदि होने पर किसी चीज का ठीक तरह काम में आने के योग्य होना। जैसे—पाँच रूपये में यह घड़ी बनकर ठीक हो जायगी। ११. किसी पद या स्थान पर नियुक्त या प्रतिष्ठित होकर नये अधिकार, मर्यादा आदि से युक्त होना। जैसे—किसी कार्यालय का व्यवस्थापक (या मंदिर का पुजारी) बनना। मुहावरा—बन बैठना=अधिकार ग्रहण करने या रूप धारण करके किसी पद या स्थान पर आसीन होना। जैसे—उनके मरते ही उनका भतीजा मालिक बन बैठा। १२. आर्थिक क्षेत्र में, किसी प्रकार की प्राप्ति या लाभ होना। जैसे—चलो इस सौदे में १॰. रूपये बन गये। १३. आपस में यथेष्ठ मित्रता के भाव से और घनिष्ठापूर्वक आचरण निर्वाह या व्यवहार होना। जैसे—इधर कुछ दिनों से उन दोनों में खूब बनने लगी है। १४. अभिनय आदि में किसी में किसी पात्र की भूमिका में दर्शकों के सामने आना। किसी का रूप धारण करना। जैसे—मैं अकबर बनूँगा और तुम महाराणा प्रताप बनना। १५. समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने आपको अधिक उच्च कोटि का या योग्य सिद्ध करने के लिए प्रायः गम्भीर मुद्रा धारण करके औरों से कुछ अलग-अलग रहना। जैसे—अब तो बाबू साहब हम लोगों से बनने लगे हैं। १६. किसी के बढ़ावा देने या बहकाने पर अपने आपको अधिक योग्य या समर्थ समझने लगना। और फलतः दूसरों की दृष्टि में उपहासास्पद तथा मूर्ख सिद्ध होना। जैसे—आज पंडितों की सभा में शास्त्री जी खूब बने। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग प्रायः सकर्मक रूप में ही अधिक होता है। (जैसे—शास्त्री जी खूब बनाये गये) अकर्मक रूप में अपेक्षया कम ही होता है।
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बननिधि  : पुं० [सं० वननिधि] समुद्र।
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बनप्रिय  : पुं० [सं० बन-प्रिय, ब० स०] कोयल। कोकिल।
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बनफ्शा  : पुं० [फा० बनफ़्शा] एक प्रकार का वनस्पति जो नेपाल कश्मीर और हिमालय पर्वत के अनेक स्थानों में होती है और औषधि के काम आती है।
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बनबकरा  : पुं० [हिं० बन+बकरा] पर्वतीय प्रदेशों में होनेवाला एक तरह का बकरा।
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बनबाहन  : पुं० [सं० वनवाहन] जलयान। नाव नौका।
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बनबिलाव  : पुं० [हिं० बन+बिलाव-बिल्ली] बिल्ली की तरह का या उससे कुछ बड़ा और मटमैले रंग का एक जंगली हिंसक जंतु जो प्रायः झाड़ियों में रहता है और चिड़ियाँ पकड़कर खाता है। कुछ लोग इसलिए पालते हैं कि उससे चिड़ियों का शिकार करने मे बहुत सहायता मिलती है। इसके कानों का ऊपरी या बाहरी भाग काला होता है इसीलिए इसे ‘स्याहगोश’ भी कहते है।
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बनबुड़िया  : स्त्री०=पनडुब्बी।
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बनबेर  : पुं० [हिं०] एक प्रकार का जंगली बेर।
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बनमाल  : स्त्री०=बनमाला।
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बनमाला  : स्त्री० [सं० वन-माला] १. जंगली फूलों को पिरो कर बनायी हुई माला। २. पैरों तक लम्बी वह माला जो तुलसी की पत्तियों और कमल, पारजात और मंदार के फूलों को पिरो कर बनायी जाती है।
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बनमाली  : वि० [सं० बनमाली] जो बनमाला धारण करता या धारण किये हुए हो। पुं० १. श्रीकृष्ण। २. नारायण। विष्णु। ३. बादल। मेघ। ४. ऐसा प्रदेश जिसमें बहुत से वन या जंगल हों।
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बनमुरगा  : पुं० [हिं० बन+फा० मुर्ग] [स्त्री० बनमुर्गी] एक तरह का जंगली मुर्गा जो पालतू मुर्गों की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है।
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बनमुरगिया  : स्त्री० [हिं० बन+फा० मुर्ग,+हिं० इया (प्रत्य०)] हिमालय की तराई में रहनेवाला एक प्रकार का पक्षी जिसका गला और छाती सफेद और सारा शरीर आसमानी रंग का होता है।
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बनमुर्गी  : स्त्री० [हिं०+फा०] कुकुटी नामक जंगली चिड़िया।
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बनरखा  : पं० [हिं० बन+रखना-रक्षा करना] १. जंगल और उसमें की सम्पत्ति की रक्षी करनेवाला व्यक्ति। २. एक जंगली जाति जो पशुपक्षी पकड़ने और मारने का कम करती है।
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बनरा  : पुं० [हिं० बनना] [स्त्री० बनरी] १. वर। दुल्हा। २. विवाह के समय गाये जानेवाले एक प्रकार के गीत। पुं०=बंदर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनराज  : पुं० [सं० बन-राज, ष० त०] १. बन का राजा अर्थात् सिंह। २. बहुत बड़ा वृक्ष। पुं०=वृन्दावन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनराय  : पुं०=वनराज। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनराह  : पुं० [सं० वन+राज] घना या बड़ा जंगल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनरी  : स्त्री० [हिं० बरना का स्त्री०] नयी ब्याही हुई बधू। दुल्हन। स्त्री०=बंदरी (मादा बंदर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनरीठा  : पुं० [हिं० वन+रीठा] एक प्रकार का जंगली रीठे का वृक्ष जिसके बीजों से लोग कपड़े तथा केश धोते हैं।
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बनरीहा  : स्त्री० [हिं० वन+रीहा (रीस) या सं० रूह-पौधा।] एक प्रकार का पौधा जिसकी घास को बटकर रस्सी बनायी जाती है। रीसा।
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बनरुह  : पुं० [सं० वनरुह] १. जंगली पेड़। २. कमल।
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बनरुहिया  : स्त्री० [सं० वनरुह] एक तरह का पौधा और उसकी कपास।
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बनरोहू  : पुं० [हिं०] एक प्रकार का चौपाया जो देखने में बड़ी छिपकली की तरह होता है। (पैग्मेलिन)।
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बनवना  : स०=बनाना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनवरा  : पुं०=बिनौला।
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बनवसन  : पुं० [सं० वनवसन] वृक्ष की छाल का बना हुआ कपड़ा।
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बनवा  : पुं० [सं० वन-जल+वा (प्रत्यय)] पनडुब्बी नामक जल-पक्षी। पुं० [?] एक प्रकार का बछनाग (विष)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनवाना  : स० [हिं० बनाना का प्रे० रूप] बनाने का काम दूसरे से कराना। किसी को कुछ बनाने में प्रवृत्त करना।
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बनवारी  : पुं०=वनमाली (श्रीकृष्ण)।
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बनवासी  : वि० पुं०=वनवासी।
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बनवैया  : वि० [हिं० बनाना+वैया (प्रत्यय)] बनानेवाला। वि० [हिं० बनवाना+वैया (प्रत्यय)] बनवानेवाला।
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बनसपती  : स्त्री०=वनस्पति।
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बनसार  : पुं० [सं० वन+शाला] समुद्र तट का वह स्थान जहाँ से जहाज पर चढ़ा या जहाँ से जहाज से उतरा जाता है।
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बनसी  : स्त्री० [हिं० बंसी] १. बाँसुरी। २. मछलियाँ फँसाने की कँटिया। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनस्थली  : स्त्री०=वनस्थली (वन की भूमि)।
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बनस्पति  : पुं०=वनस्पति।
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बनहटी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की छोटी नाव।
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बनहरदी  : स्त्री० [सं० वन हरिद्रा] दारुहलदी।
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बना  : पुं० [?] एक प्रकार का छंद जिसमें १0, ८ और १४ के विश्राम से ३२ मात्राएँ होती है। इसे दंडकला भी कहते हैं पुं० [हिं० बनना] [स्त्री० बनी] दूल्हा। वर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बना-बनत  : स्त्री० [हिं० बनना] वर और कन्या का सम्बन्ध स्थिर करने से पहले उनकी जन्म-पत्रियों का गणित ज्योतिष के अनुसार किया जानेवाला मिलान। क्रि० प्र०—निकालना।—बनाना।—मिलाना।
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बनाइ  : अव्य० [हिं० बनाकर-अच्छी तरह] १. अच्छी तरह। भली-भाँति (दे० बनाना के अंतर्गत पर बनाकर) २. अधिकता से। ३. निपट। बिलकुल। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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बनाउ  : पुं०=बनाव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनाउरि  : स्त्री०=वाणाविल (वाणों की पंक्ति)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनाग्नि  : स्त्री० [सं० बनाग्नि] वन में लगनेवाली आग। दावानल।
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बनात  : स्त्री० [हिं० बनाना] [वि० बनाती] एक प्रकार का बढ़िया तथा रंगीन ऊनी कपड़ा।
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बनाती  : वि० [हिं० बनात+ई (प्रत्यय)] १. बनात संबंधी। २. बनात का बना हुआ।
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बनान  : स्त्री० [हि० बनाना] बनाने की क्रिया, ढंग या भाव। बनावट।
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बनाना  : स० [हिं० बनना का स०] १. किसी चीज को अस्तित्व देना या सत्ता में लाना। रचना। जैसे—(क) ईश्वर ने यह संसार बनाया है। (ख) सरकार ने कानून बनाया है। २. भौतिक वस्तुओं के संबंध में उन्हें तैयार या प्रस्तुत करना। रचना। जैसे—(क) मकान या कारखाना बनाना। (ख) गंजी या मोजा बनाना। ३. अभौतिक तथा अमूर्त वस्तुओं के संबंध में विचार जगत से लाकर प्रत्यक्ष करना। जैसे—कविता बनाना। पद—बनाकर=खूब अच्छी तरह। भली-भाँति। जैसे—आज हम बनाकर तुम्हारी खबर लेगे। मुहावरा—(किसी व्यक्ति को) बनाये रखना-अच्छी दशा में अथवा ज्यों का त्यों रखना। रक्षापूर्वक रखना। (किसी व्यक्ति को) बनाये रखना=सकुशल, जीवित या वर्तमान रखना। जैसे—(क) ईश्वर आपको बनाये रखे (आर्शीवाद) (ख) किसी को अनुकूल या अपने प्रति दयालु रखना। जैसे—उन्हें बनाये रखने से तुम्हारा लाभ ही होगा। ४. ऐसे रूप में लाना कि वह ठीक तरह से काम मे आ सके अथवा भला और सुन्दर जान पड़े। ५. किसी विशिष्ट स्थिति में लाना। जैसे—उन्होंने अपने आपको बना लिया है अथवा अपने लड़के को बना दिया है। मुहावरा—बनाये न बनना=बहुत प्रयत्न करने पर भी कार्य की सिद्धि या सफलता न होना। जैसे—अब हमारे बनाये तो नही बनेगा। उदाहरण—जौ नहिं जाऊँ रहइ पछितावा। करत विचार न बनइ बनावा।—तुलसी। ६. आर्थिक क्षेत्र में उपार्जित या प्राप्त करना। लाभ करना। जैसे—उन्होने कपड़े के रोजगार में लाखों रुपये बना लिये है। ७. किसी पदार्थ के रूप आदि में कुछ विशिष्ट क्रियाओं के द्वारा ऐसा परिवर्तन करना कि वह नये प्रकार से काम में आ सके। जैसे—गुड़ से चीनी बनाना, चावल से भात बनाना, आटे से रोटी बनाना। ८. एक विशिष्ट रूप से दूसरे विपरीत या विरोधी रूप में लाना। जैसे—(क) मित्र को शत्रु अथवा शत्रु को मित्र बनाना। (ख) झूठ को सच बनाना। ९. दोष, विकार आदि दूर करके उचित या उपयुक्त दशा या रूप में लाना। जैसा होना चाहिए वैसा करना। जैसे—पछोड़ या पटककर अनाज बनाना। १॰. जो चीज किसी प्रकार बिगड़ गयी हो उसे ठीक करके ऐसा रूप देना कि वह अच्छी तरह काम दे सके। मरम्मत करना। जैसे—कलम बनाना, घड़ी बनाना। ११. किस प्रकार का आविष्कार करके कोई नयी चीज तैयार या प्रस्तुत करना। जैसे—नये तरह का इंजन या हवाई जहाज बनाना। १२. अंकन, लेखन आदि की सहायता से नयी रचना प्रस्तुत करना। जैसे—गजल या तसवीर बनाना। १३. किसी को किसी पद या स्थान पर आसीन अथवा प्रतिष्ठित, करके अधिकार, प्रतिष्ठा, मर्यादा आदि से युक्त करना। जैसे—(क) किसी को मठ का महंत या सभा का सभापति बनाना। (ख) अपना प्रतिनिधि बनाना। १४. किसी के साथ कोई नया पारिवारिक संबंध स्थापित करना। जैसे—किसी को अपना दामाद, भाई या लड़का बनाना। १५. बात-चीत में किसी की प्रशंसा करते हुए उसे बढ़ावा देते हुए ऐसी स्थिति में लाना कि वह आत्म-प्रशंसा करता-करता औरों की दृष्टि में उपहासास्पद और मूर्ख सिद्ध हो। जैसे—आज पंडित जी को लोगों ने खूब बनाया। १६. कोई विशिष्ट क्रिया या व्यापार सम्पन्न करना। जैसे—(क) खिलाड़ी का गोल बनाना। (ख) नाई का दाढ़ी बनाना। (ग) डाक्टर का आँख बनाना।
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बनाफर  : पुं० [सं० वन्यफल] राजपूत क्षत्रियों की एक शाखा।
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बनाम  : अव्य० [फा०] १. किसी के नाम पर। नाम से। जैसे—बनामे खुदा=ईश्वर के नाम पर। २. किसी के उद्देश्य के किसी के प्रति। ३. किसीके विरुद्ध। जैसे—यह दावा सरकार बनाम बेनीमाधव दायर हुआ है अर्थात् सरकार ने बेनीमाधव पर मुकदमा चलाया है।
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बनाय  : अव्य० [हिं० बनाकर=अच्छी तरह] १. अच्छी तरह बनाकर। २. ठीक ढंग से। अच्छी तरह। ३. पूरी तरह से। पूर्णतया।
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बनार  : पुं० [?] १. चाकसू नामक ओषधि का वृक्ष। २. काला सकौदा। कासमर्द। ३. एक मध्ययुगीन राज्य जो वर्तमान काशी की सीमा पर था। अव्य दे० ‘बनाय’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनारना  : स० [?] काटना, विशेषतःकाट-काटकर किसी चीज के टुकड़े करना।
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बनारस  : पुं० [सं० वाराणसी] [वि० बनारसी] हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ काशी का आधुनिक नाम।
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बनारसी  : वि० [हिं० बनारस+ई (प्रत्यय)] १. बनारस (नगर) संबंधी। २. बनारस में बनने, रहने या होनेवाला। जैसे—बनारसी साड़ी। पुं० बनारस का निवासी।
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बनारी  : स्त्री० [सं० प्रणाली] कोल्हू में नीचे की ओर लगी हुई नाली की वह लकड़ी जिससे रस-नीचे नांद में गिरता है।
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बनाल  : पुं०=बंदाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनाला  : पुं०=बंदाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनाव  : पुं० [हिं० बनना+आव (प्रत्यय)] १. बनने, या बनाये जाने की क्रिया या भाव। २. बनावट। रचना। ३. श्रृंगार। सजावट। पद—बनाव-सिंगार।
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बनाव-सिंगार  : पुं० [हिं० ] किसी चीज की विशेषतः शरीर की वह सजावट जो प्रायः दूसरों को आकृष्ट करने या उन पर प्रभाव डालने के लिए की जाती है।
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बनावट  : स्त्री० [हिं० बनाना+आवट (प्रत्यय)] [वि० बनावटी] १. किसी चीज के बनने या बनाये जाने का ढंग या प्रकार। रचने या रचे जाने की शैली। रूप-विधान। २. किसी वस्तु का वह रूप जो उसे बनाने या बनाये जाने पर प्राप्त होता है। रूप-रचना। गढ़न। जैसे—इन दोनों कमीजों की बनावट में बहुत थोड़ा अन्तर है। ३. किसी चीज को विशिष्ट और सुन्दर रूप में लाने की क्रिया या भाव। रूपाधान। (फार्मेशन)। ४. केवल दूसरों को दिखाने के लिए बनाया जानेवाला ऐसा आचरण, रूप या व्यवहार जिसमें तथ्य, दृढ़ता, वास्तविकता, सत्यता आदि का बहुत कुछ या सर्वथा अभाव हो। केवल दिखावटी आकार-प्रकार आचार-व्यवहार या रूप-रंग। ऊपरी दिखाबा। आडंम्बर। कृत्रिमता। जैसे—(क) यह उनकी वास्तविक सहानुभूति नहीं है, कोरी बनावट है। (ख) उसकी बनावट मे मत आना वह बहुत बड़ा धूर्त है। ५. वह दम्भपूर्ण मानसिक स्थिति जिसमें मनुष्य अपने आपको यथार्थ अथवा वास्तविकता से अधिक योग्य, सदाचारी आदि सिद्ध करने का प्रयत्न करता है। पाखंडपूर्ण, मिथ्या, आचरण और व्यवहार। (एफेकेटशन) जैसे—यों साधारणतः वे अच्छे विद्वान है पर उनमें बनावट इतनी अधिक है कि लोग उनकी बातों से घबराते हैं। ६. दे० ‘रचना’।
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बनावटी  : वि० [हिं० बनावट] १. जिसमें केवल बनावट हो तथ्य या वास्तविकता कुछ भी न हो। ऊपरी या बाहरी। जैसे—बनावटी हँसी। २. वास्तविक के अनुकरण पर बनाया हुआ। कृत्रिम। नकली। जैसे—बनावटी नगीना।
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बनावंत  : स्त्री० दे० ‘बना=बनत’।
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बनावन  : पुं० [हिं० बनाना] १. बनाने की क्रिया या भाव। २. अन्न में मिली हुई वे कंकड़ियाँ आदि जो बिनकर निकाली जाती है। ३. इस तरह बिनकर निकली हुई रद्दी चीजों का ढेर।
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बनावनहारा  : वि० पुं० [हिं० बनाना+हारा (प्रत्यय)] १. बनानेवाला। सुधारनेवाला।
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बनास  : स्त्री० [देश०] राजपूताने की एक नदी जो अर्वली पर्वत से निकलकर चम्बल नदी में गिरती है।
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बनासपती  : स्त्री०=वनस्पति। वि० वनस्पतियों से बनाया हुआ। जैसे—बनासपती घी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनि  : अव्य० [हिं० बनाना] पूर्णरूप से अच्छी तरह। बनाकर। उदाहरण—अमित काल मै कीन्ह मजूरी आजु दीन्ह विधि बनि भलि भूरी।—तुलसी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनिक  : पुं०=बणिक। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनिज  : पुं० [सं० वाणिज्य] १. रोजगार। व्यापार। २. व्यापार की वस्तु। सौदा। ३. ऐसा आसामी जिससे यथेष्ठ आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सके। ४. धनी या सम्पन्नी यात्री। (ठग)। क्रि० प्र०—फँसाना।
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बनिजना  : स० [सं० वाणिज्य, हिं० बनिज+ना (प्रत्यय)] १. खरीदना और बेचना। रोजगार करना। २. मोल लेना। खरीदना। ३. किसी को मूर्ख बनाकर कुछ रुपये ठगना।
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बनिजारा  : पुं०=बनजारा।
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बनिजारिन  : स्त्री ०=बनजारिन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनिजारी  : स्त्री०=बनजारिन।
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बनिजी  : वि० [सं० वणिज्] वाणिज्य-संबंधी। पुं० घूम-घूमकर सौदा बेचनेवाला व्यापारी। पेरीदार।
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बनित  : स्त्री० [हिं० बनना] बानक। बाना। वेश।
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बनिता  : स्त्री० [स० बनिता] १. स्त्री० औरत। २. जोरू पत्नी। भार्या।
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बनिनि  : स्त्री० [हिं० बनना] १. बनावट। २. बनाव-सिंगार। ३. सजावट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनिया  : पुं० [सं० वणिक्] [स्त्री० बनियाइन, बनैनी] १. व्यापार करने वाला व्यक्ति। व्यापारी। वैश्य। च आटा, दाल, नमक मिर्च आदि बेचनेवाला दुकानदार। मोदी। ३. लाक्षणिक अर्थ में, व्यापारिक मनोवृत्तिवाला फलतः स्वार्थी व्यक्ति।
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बनियाइन  : स्त्री० [अ० बैनियन] कमीज, कुरते आदि के नीचे पहनने का एक तरह का सिला हुआ कम लम्बा पहनावा। गंजी। स्त्री० हिं० ‘बनिया’ का स्त्री० । (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनिस्बत  : अव्य० [फा०] किसी की तुलना या मुकाबले में० अपेक्षया। जैसे—उस कपड़े की बनिस्बत यह कपड़ा कहीं अच्छा है।
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बनिहार  : पुं० [हिं० बन+हार (प्रत्यय) अथवा हिं० बन्नी] वह आदमी जो कुछ वेतन अथवा उपज का अंश लेकर दूसरों की जमीन जोतने, बोने, फसल आदि काटने और खेत की रखवाली का काम करता है।
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बनी  : स्त्री० [हिं० वन] १. वन का एक टुकड़ा। वनस्थली। २. बगीचा। वाटिका। उदाहरण—महादेव की सी बनी चित्र लेखी।—केशव। ३. एक प्रकार की कपास। स्त्री० [पुं० बना] १. दुल्हन। वधू। २. सुन्दरी। स्त्री। नायिका। पुं०=बनिया।
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बनीनी  : स्त्री० [हिं० बनी+ईनी (प्रत्यय)] १. वैश्य जाति की स्त्री। बनिये की स्त्री।
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बनीर  : पुं०=बानीर (बेंत)।
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बनेठी  : स्त्री० [हिं० बन+सं० यष्टि] एक तरह की छड़ी जिसके दोनों सिरों पर एक-एक लट्टू लगा रहता है। और जिसका उपयोग मुख्यतः पटेबाजी के खेलों में होता है।
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बनेला  : पुं० [देश०] रेशम बनानेवाला एक प्रकार का कीड़ा। वि० बनैला।
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बनैया  : वि० [हिं० बनाना] बनानेवाला। वि०=बनैला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनैल  : वि०=बनैला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनैला  : वि० [हिं० बन+ऐला (प्रत्यय)] जंगली। वन्य। पुं० जंगली सूअर।
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बनोबास  : पुं०=बनवास। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनौआ  : वि० [हिं० बनाना+औआ (प्रत्यय)] १. बना या बनाया हुआ। २. कृत्रिम। बनावटी।
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बनौट  : स्त्री०=बिनवट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनौरी  : स्त्री० [हिं० वन+औटी (प्रत्यय)] कापस के फूल का सा। कपासी। पुं० एक प्रकार का रंग जो कपास के रंग से मिलता-जुलता है। स्त्री०=बिनवट। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बनौरी  : स्त्री० [हिं० बन-जल+ओला] आकाश में बरसनेवाले हिमकण। ओला। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बन्ना  : पुं० [हिं० बनना या बना०] [स्त्री० बन्नी] १. लोकगीतों में, वर। दूल्हा। २. विशेषतः वह व्यक्ति जिसका विवाह हो रहा हो। ३. विवाह के समय में, वर पक्ष की स्त्रियों के द्वारा गाया जानेवाला एक तरह का लोकगीत। बनड़ा।
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बन्नात  : स्त्री०=बनात (एक तरह का ऊनी रंगीन कपड़ा)।
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बन्नी  : वि० [हिं० वन] वन में होनेवाला। जैसे—बन्नी खड़िया, बन्नी मिट्टी आदि। स्त्री० [हिं० बन्ना] १. दुल्हिन। २. कन्या जिसका विवाह हो रहा हो। स्त्री० [?] १. खेत में काम करनेवालों को मिलनेवाला खड़ी फसल का कुछ अंश। २. उतनी भूमि जिसमें उक्त अंश हो।
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बन्हि  : स्त्री०=बहिन (बहिन)।
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