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बढ़ना  : अ० [सं० वर्द्धन, प्रा० वड्ढन] १. आकार, क्षेत्र, विस्तार व्याप्ति सीमा आदि में अधिकता या वृद्धि होना। जितना या जैसा पहले रहा हो, उससे अधिक होना। जैसे—(क) पेड़-पौधों या बच्चों का बढ़ना। (ख) कर्मचारियों की छुट्टियाँ बढ़ना। (ग) दाढ़ी या नाखूनों का बढ़ना। २. परिमाण, मात्रा, संख्या आदि में अधिकता या वृद्धि होना। जैसे—(क) घर का खर्च बढ़ना। (ख) देश की जन-संख्या बढ़ना। (ग) नदी में जल बढ़ना। ३. कार्य-क्षेत्र, गुण आदि का विस्तार होना। व्याप्ति में अधिकता या वृद्धि होना। जैसे—(क) झगड़ा-तकरार या वैर-विरोध बढ़ना। (ख) प्रभाव-क्षेत्र या व्यापार बढ़ना। ४. तीव्रता, प्रबलता वेग शक्ति आदि में अधिकता या वृद्धि होना। जैसे—(क) किसी चलनेवाली चीज की चाल बढ़ना। (ख) रोग या विकार बढ़ना। ५. किसी प्रकार की उन्नति या तरक्की होना। जैसे—वह तो हमारे देखते-देखते इतना बढ़ा है। ६. आगे की ओर चलना या अग्रसर होना। जैसे—(क) आज-कल औद्योगिक क्षेत्र में अनेक पिछड़े हुए देश आगे बढ़ने लगे हैं। (ख) आका में गुड्डी या पतंग बढ़ना। (ग) तुम्हारें तो पैर ही नहीं बढ़ते। मुहावरा—बढ़ चलना=(क) उन्नति करना। (ख) अपनी योग्यता, सामर्थ्य आदि से अतिरिक्त आचरण या व्यवहार करना। (ग) अभिमान या ऐंठ दिखाना। इतराना। ७. प्रतियोगिता, होड़ आदि में किसी से आगे होना। जैसे—अब यह कई बातों में तुमसे बहुत आगे बढ़ गया है। ८. रोजगार या व्यापार में लाभ के रूप में धन प्राप्त होना। जैसे—चलो इस सौदे में हजार रुपए तो बढ़े।, अर्थात् हजार रुपए की आय या लाभ हुआ। ९. कुछ विशिष्ट प्रसंगों में मंगल-भाषित के रूप में कुछ समय के लिए किसी काम, चीज या बात का अन्त या समाप्ति होना। जैसे—(क) किसी स्त्री के हाथ की चूड़ियाँ बढ़ना, अर्थात् उतारी या तोड़ी जाना। (ख) दीया बढ़ना, अर्थात् बुझाया जाना, दुकान बढ़ना अर्थात् कुछ समय के लिए बन्द होना। स० बढ़ाना। विस्तृत करना। उदाहरण—स्रवन सुनत करुना सरिता भए बढैयो बसन उमंगी।—सूर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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